Wednesday, 2 December 2015

A letter to THe GOD by Karan

मैं चाहता हुँ कि आप यह पत्र अवश्य पढ़े पर पढ़ने से पहलें यह जान लें....
पहला, पत्र की सारी बातें मेरी व्यक्तिगत सोच ह इसका किसी से कोई संबंध नहीं है। कोई धार्मिक या व्यैक्तिक ठैस पहुँचे उसके लिये क्षमा।।
दुसरे, कोई संवेदनापूर्ण कमेंट न करें।

A letter to the God by me....

प्रणाम प्रभु,

मैं करन हुँ!!
पहचाना?
हाँ, वहीं करन हुँ।।
याद करो कोई 25 वर्ष पहले तुमने मुझे धरती पर भेजा था। भेजने का फैसला तुम्हारा सही या गलत था यह मैं नहीं कहता!!!
पर मैं तो तुम से यह पुछता हुँ कि क्या तुमने कुछ गलत नहीं किया?
क्या तुम्हारी कारीगिरी में कोई दोष आ गया था उस वक्त?
या तुम्हारे पास संसाधनों की कमी थी!
खैर!! तुमने जैसे तैसे अपना काम तो कर दिया! मुझे धरती पर भेजकर छुटकारा पाया ना तुमने??

हाँ!! आज इतने सालों बाद तुम्हैं लिख रहा हुँ कि मैं सही सलामत पहुँच गया था।
बस एक बात से हैरान था कि तुमने मुझ में कमी क्यों रख दी? हैरान भी और दुखी भी!
करूँगा क्या मैं इस हालत में यहाँ?
पर जैसा नियम है संसार का कि चलना है मैं भी चल पड़ा जिंदगी की राह पर।
ठीक उस पंछी की उड़ान की तरह जिसका एक पर काट दिया गया हो और उड़ने के लिये छोड़ दिया हो।
मैं भी तुम्हारी बनाई इस दुनियाँ में चलने लगा था। पता है आसपास के लोग मुझे कौतुहल भरी नजरों से देखते थे कि जैसे मैं इंसान न होकर आठवाँ अजुबा हुँ।
पर तुम्हें एक बात का धन्यवाद जरूर दुँगा(आभार व्यक्त नहीं कर रहा हुँ) कि तुमने मुझे अच्छे इंसान के घर जन्म दिया जिन्हें मैं गर्व से माँ-बाप कह सका! वो भी तुम्हारे द्वारा सताये हुए थे पर उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहती थी।। बिना किसी हिचकिचाहट के मुझे अपनाया!
साथ ही मुझे सीखाना भी शुरू कर दिया कि दुनियाँ में कैसे जीना है!!!
पर
पर
तुम्हारे दिमाग की मैं क्या कहुँ?
शायद शतरंज खेल खेलने के मूड में थे तुम मेरे साथ।
और चाल भी बहुत शातिर!!
यकींन नहीं हुआ मुझे!!
मात्र सात साल का था मैं, क्या मुझे माँ की जरूरत नहीं थी??
ओहहह।।
तुम्हें तो मुझे हराना था ना! कुछ भी मंजूर था तुम्हें!
और मुझे उस समय ऐसा लगा कि जैसे मेरा एक हाथ भी काट दिया गया हो।
ह ह ह ह।।
फिर भी न जानें क्या मुझे खींच रहा था आगे की ओर।
चलना मंजूर थी मुझे!
मेरे पिता बहुत जिंदादिल इंसान थे, पूरी कोशिश करते कि मुझे माँ की कमी महसूस न हो! और साथ ही यह भी अहसास नहीं होने देते कि मैं आम मनुष्य कि जैसे काम नहीं कर सकता! हर परिस्थिति में मेरे साथ थे वो।
हमेशा आगे ही बढ़ने का हौंसला दिया था।
मुझे पूरा भरोसा था कि मेरी जीत पर वो बहुत खुश होंगे!!!!
ह ह ह ह।।
लेकिन तुम
हाँ प्रभु तुम!!
तुम तो तुम्हारे गेम पर थे ना!!
मेरी जीत से शायद तुम्हारे वजूद को खतरा महसूस हो रहा था।
हर हाल में तुम्हारा उद्देश्य मुझे हराना ही था।
हाँ लगभग 13 साल का था उस समय मैं।
तुम्हारी चाल तुमने चल दी!!
अब भला मैं क्या करता??
तुम्हारी नजरों में तो मेरी हार निश्चित थी।
लेकिन उस समय भी मुझे कुछ ओर ही मंजूर था।
कंधे पर मेरे एक हाथ आया था(धन्यवाद उसके लिये फिर से)।
बस फिर क्या मैं चल पड़ा फिर से!!
रेंगते हुए ही सही पर दिल बस जीतने का जुनुन था।
लेकिन तुम कहाँ मानने वाले थे और भी तुम्हारी बहुत चालें हुई है मुझे गिराने की।
सब यहाँ नहीं बता रहा हुँ। अगर बताई तो शायद दुनियाँ का तुम पर से विश्वास न उठ जायें।
बस तुम इतना सा जान लो(जानते तो हो ही) कि कैसे भी सही पर अब मैं दुनियाँ के साथ चल रहा हुँ। कभी गिरा भी तो फिर से उठ खड़ा हुआ लेकिन रूकने का नाम नहीं लिया!
न कोई गम था न खुशी!!
संवेदनाओं को एक ताक रख चुका था मैं।।
बस जुनुन था।।
लेकिन।।।
लेकिन यह क्या!!!!
जब लगभग मैं मंजिल के करीब आने को था तो तुमने अजीब सी यह चाल और चल दी!!
और इस चाल में मैं खुद बुरी तरह से ऊलझ गया हुँ!
मैं स्वीकार करता हुँ कि इस चाल का मेरे पास फिलहाल तो मेरे पास भी कोई हल नहीं है।
।।
कभी तो लगता है कि अब हारने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
पर फिर भी मैं कोशिश में हुँ कि कभी तो मेरी दहलीज पर जीत कदम रखेगी...
तब शायद.......
छोड़ो इन बातों ज्यादा अच्छा नहीं लगेगा।

सुनो प्रभु,
वैसे मेरा जहाँ तक इरादा है तो मैं जीतकर तुम्हारे पास आऊँगा! पर मानाकि मैं हारा भी तो तुम्हारे पास आकर जिन सवालों के जवाब चाहुँगा,
तुम नहीं दे पाओगे,
सिर्फ नजरें नीची रहेगी तुम्हारी...
तुम्हें उस समय तो हारना ही है...
फिर से प्रणाम स्वीकार करें..................

हाँ तुम्हारे माध्यम से ही मैं तुम्हारी इस कृति(संसार) से भी सभी विकलाँग साथियों की ओर से कहना चाहुँगा.....
क्यों तुम हैरान हो?
क्या मेरा यह रूप
तुम्हारी समझ से
परे है?
क्यों तुमने सिर्फ मुझे
अपनी संवेदनाओं के
काबिल समझा है?
क्या मैं तुम्हारी संवेदनाओं
के ही काबिल हुँ।
पर तुमने कभी
सोचा है
कटे हुए परों से भी
पंछी उड़ान भर लेता है
या दिल में उनके यहीं
अरमान होते है कि
वो भी उड़े दूर तक
सब पंछियों की तरह,
नाप लें सारी धरती,
यह आकाश भी।
पर उन्हें कभी जरूरत
नहीं रही संवेदनाओं की,
बस इक हौंसला चाहिये।
बस इक हौंसला!!
क्या तुम दे पाओगे??

                     शायद तुम्हारा
                           करन
Karan dc(2/12/2015-19:40)

12 comments:

  1. कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती

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    1. बिल्कुल सही बात कहीं मुकेश जी।।

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  2. मन की संवेदनाओं का शब्दों के साथ आपने जो तालमेल बैठाया है वो वाकई अद्भुत है, अपनी भावनाओं को शब्दों की थाली मे बहुत उम्दा तरीके से परोसा है।।

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  3. kya khub likha he aapne������

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  4. बेहद ही खतरनाक व खूबसूरत
    अद्भुत
    अकल्पनीय
    👌👌👌👌👌

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