उसका तो मन बहलाने का बहाना निकला।
जिसे प्यार समझा वो बस अफसाना निकला।
वक्त पर छोड़ दिया था फैसला जिंदगी का,
कंबख्त वक्त भी उसी का दीवाना निकला।
हम ठुकरा गये थे जुगनुओं को जिसकी खातिर,
वो चाँद न जाने क्यों मेरा बेगाना निकला।
सारे जहां में जिसे ढूंढता फिर रहा था मैं,
खुद में ही खुशियों का वो खजाना निकला।
मुसाफिर हुँ मैं रास्ता भटका हुआ ही सही करन,
उसी की तलाश में जानें क्यों यह दीवाना निकला।
©® जाँगीड़ करन kk
20_03_2017___19:00 PM
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