मैं तरन्नूम में खुशबू भर देता हुँ,
बिन लफ्ज़ के गुनगुना लेता हुँ।
कहां खोया है चाँद अमावस्या को,
अँधेरे में मैं मालुमात कर लेता हुँ।
आकाश भर सपने हैं मेरे दिल में तो,
मगर किसी अहसास को जता देता हुँ।
जिंदगी की उम्मीद जब खत्म हो जायें,
तो भी मैं कोई सूरज नया ढूँढ लेता हुँ।
कभी आईना जरा गौर से देखना तो स्वर,
मैं करन हुँ खुद को तुझमें बसा लेता हुँ।।
©® जाँगीड़ करन kk
22_03_2017__7:00AM
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