Tuesday 27 December 2016

Alone boy 2

#Alone_boy_2
एकांत में एक लड़का
पढ़ाई की मेज पर
हाथ में
दर्पण
लिये बैठता है।
और दर्पण में
देखता है,
सिर्फ अपने
बालों को।
ढुँढता है इनमें
एक दो
सफेद हुए बाल।
जब उखाड़ लेता है
वो बाल तो
हाथ में ले कर
गौर से
देखता है
सोचता है
काल के उस
खंड को
जिसने
सफेद किया इसको।
सोचता है उस वजह को
जिसके कारण
बाल सफेद हुए.....
जानता है वो
कि
इससे
सफेद बाल और बढ़ने है......
फिर भी,
एकांत में
सोचता है.....

#एकांत_मैं_लड़का

@जाँगीड़ करन

Monday 26 December 2016

Alone boy 1

#alone_boy

एकांत में
समंदर किनारे बैठकर
एक लड़का सोचता है,
जिंदगी के पिछले पन्नों को।
समंदर की लहरों के
आने जाने की
गति में ढुंढता है...
खुद को,
सपनों को,
हर लहर से
काल के एक खंड की
कल्पना करता है,
और ज्युहीं लहर
वापस जाती है तो
अपने गाल से उस
लहर के निशान को मिटाकर।
चल देता है घर,
सुना है कि वो हँसता बहुत है...
हाँ!!! अब
फिर से कोई सपना बुना है शायद...
कल फिर समंदर किनारे आना है उसे!!
#एकांत_मैं_लड़का

@जाँगीड़ करन

Sunday 25 December 2016

A letter to swar by music 15

Dear SWAR,

तराना मोहब्बत का सीखने निकला हुँ,
फिर मंजिल से दूर फिसलने निकला हुँ।
होठों के मिलन से जिंदगी की मदहोशी,
कोई महफिल ऐसी सजाने निकला हुँ।।"

देखो इधर साल का अंतिम सप्ताह चल रहा है और साल 2016 को मैंने अपनी जिंदगी का सबसे खराब साल पाया था, जहां साल में पूरे समय सिर्फ बेबसी दिखाई दी और कहीं कुछ टूटती आस ही दिखाई दी। मगर इस अंतिम सप्ताह में जिंदगी को कुछ नया देखने को मिला। हाँ।। हर वक्त खोया खोया रहने वाला मैं शायद तुम्हारे होठों पर छाने लगा हुँ। और मैं वर्तमान में जीने वाला इंसान हुँ आगे क्या होगा फर्क नहीं पड़ता। बस तुम्हारी चेहरे पर मुस्कान अच्छी लगी और पुराने नटखटपन वाले दिन याद आने लगे हैं। और मैं इस पल को जीना चाहता हुँ।
तुम जानती हो ना मैंने इंतजार भी किया है इस दिल के लिए, इस एक पल के लिए इतना लंबा इंतजार किया है। जबकि यह पल गुजर जाएगा थोड़ी ही देर में और फिर वापस बचेगी वहीं बेबसी और इंतजार। मगर मैं इस पल को जीना चाहता हुँ, इसे सजाना चाहता हुँ अपनी कल्पना से सजाना चाहता हुँ ताकि यह पल सदियों तक याद रखा जायें। जहां की हर जुबां पर यह पल छा जायें।
हाँ!!! तुमने ठीक सुना था बिल्कुल...
What?? What what  मत करो साहिबा,  हम यही कह रहे थे सच्ची।।। अब आँखें फाड़ फाड़ के दीवार को घूरना बंद करो, यह आदत है तुम्हारी जानता हूं मैं।।।
और पिछले खत में तुमने कहा कि मैं बदल गया हुँ। लेकिन मेरी जाना!!! मैं नहीं बदला हुँ, मैं आज भी वहीं संगीत हुँ जो सिर्फ तुम्हारे सुर पे बजता हुँ।।
और सुनो!!! मैं वो संगीत हुँ जिसे तुम हर जगह महसूस करोगे, अपने दिल में, घर के आंगन में, खेत की मेड़ पर, या झील के किनारे।।।
कभी आकाश में तारों के बीच मुझे देख पाओगे तुम।।
.......
और!!! सुनो कल कमरे में सामान व्यवस्थित कर रहा था तो कुछ ग्रीटिंग कार्ड्स मिलें हैं, करीब 3 साल हो गए हैं तुम्हारे लिए लाया था,  लेकिन आज तक उन पर कुछ नहीं लिख पाया, तुमने मौका ही नहीं दिया कि मैं कुछ लिखकर तुम्हें दुँ।  हाँ !! बड़े करीने से सजाकर आलमारी में रखें हैं। देखो अगर आकर ले जा सको तो।
और हाँ!!! इनकी एक प्यारी सी तस्वीर खींची है, पत्र के साथ भेज रहा हुँ।
........
तो सुनो पार्टनर!!!
तुम एक बार आओ ना!! फिर से।।
अरे!!!
सुन लिया तुम्हें बहुत काम है, मैं कह तो रहा हुँ कि मैं हेल्प कर दुँगा, तुम आओ तो सही।।
क्या कहा??
लोग क्या कहेंगे!!!
तो सुनो!! कोई कुछ कहे मुझे फर्क नहीं पड़ता है अब।। क्योंकि मैं जिस राह पर निकला हुँ, उसका परिणाम पहले ही मालूम कर चुका हुँ।। और मैं यह जानबुझकर कर रहा हुँ, शायद दिल की भी यही इच्छा है----

          "  किसी सुनी राह पर
              मुसाफिर
              फिर मिलो तो सही.......
              किसी पेड़ की
              छांव में
              उधड़ते ख्वाब सिलो तो।।"

With love & good regards
Yours
Music

©® जाँगीड़ करन kk
25_12_2016____5:00 evening

Thursday 22 December 2016

करार

बिन उसके उस पर एतबार कर लुँ,
बंद आंखों से उसका दीदार कर लुँ।

सासों का लश्कर बोलता है जहां तो,
धड़कनों का तुझसे इकरार कर लुँ।।

इक बार गर आ जायें सामने फिर वो,
हद से भी ज्यादा में उनसे प्यार कर लुँ।

जानें  को जब  जब वो हो जायें आतुर,
मैं खुद को मिलनें को बेकरार कर लुँ।।

कोई बात है जो दिल में चुभती है करन,
ग़ज़ल के स्वर से अब मैं करार कर लुँ।।
©® जाँगीड़ करन kk
22_12_2016___07:20 morning

Monday 19 December 2016

इक शायर

घर में रहकर बेघर होता है,
शायर शहर शहर होता है।

सबकी वाही वाही लूटकर
अकेले  में  मगर  रोता  है।।

लोग जिन्हें लफ़्ज समझते,
छालों का वो सफर होता है।

आज यहाँ कल देश पराया,
जानें  कब  किधर होता  है।

शांत समंदर के बैठ किनारे,
खुद  में  वो लहर  होता है।।

किस कश्ती की करूँ सवारी,
कैसा  हरदम  भरम होता है।

जिंदगी तो बन गई है करन,
बस होठों पर तो स्वर होता है।
©® जाँगीड़ करन kk
19_12_2016____7:30morning

Friday 16 December 2016

आशीर्वाद

और जैसे ही डॉक्टर ने कहा कि हम कामयाब हुए, यह सुनते ही रमेश बाबु के चेहरे पे अचानक आश्चर्य और खुशी एक साथ आ गई। खुशी तो इस बात की कि बेटा बच गया पर आश्चर्य इस बात का हो रहा था कि पिछले तीन दिन से O- खून के लिये भागादौड़ी की मगर खून नहीं मिला और अब मैं थक हार कर बैठ गया तो अचानक अब खून देने कौन आ गया। रमेश बाबु तुरंत डॉक्टर की तरफ भागे और एक ही प्रश्न किया कि खून कहाँ से आया?
डॉक्टर ने मुख्य दरवाजे की तरफ जाते हुए एक आदमी की तरफ इशारा किया और कहा 'वो लाल शर्ट वाले ने दिया'

रमेश बाबु तुरंत उस आदमी की तरफ दौड़ पड़े और पीछे से पुकारा, 'रूकिये'
वो आदमी जब पीछे मुड़ा तो चेहरा देखकर रमेश बाबु के पैरों तले की जमीन खिसक गई बस मुँह से इतना ही निकला, "तुम!!!!"
'हाँ बाबुजी।।. जब परसों के अखबार में पढ़ा तो बाहर था तुरंत रवाना हो गया, आज पहुँच पाया!! पर अब आप चिंता न करें राजकुमार को कुछ नहीं होगा।।
'मैं तुम्हारे अहसान का कर्ज कैसे चुका पाऊँगा' ,रमेश बाबु बोलें।।
'अरे!! बाबुजी कैसा अहसान!!! मैं तो अपने गुरू के आशीर्वाद की लाज रखने आया हुँ। वो नहीं रहे पर उनका आशीर्वाद आपके बेटे के साथ रहेगा' ,वो युवक अब कुछ टूटती आवाज में बोला।
रमेश बाबु की आँखों में पानी भर आया और वो उस युवक के सामने अपराध के स्वीकार करने की स्थिति में बोलें, 'मुझे माफ कर दो बेटा, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, अगर मैनें बेटे जन्म की पार्टी में तुम्हारे गुरू का अपमान न किया होता तो वो दुनियाँ छोड़ कर नहीं जाते'
युवक ने रमेश बाबु के हाथ पकड़ते हुए कहा, 'अरे!! क्या कर रहे है आप?? हम किन्नर तो हर रोज किसी न किसी से अपमानित होते है और हमारा क्या मान अपमान?? यह तो आप बड़े लोगों का होता है।।
'बस बेटा!! अब तो माफ कर दो' ,रमेश बाबु गिड़गिड़ायें।
युवक ने रमेश बाबु के हाथ जोड़कर जानें की अनुमति माँगी तो रमेश बाबु ने कहा, 'बेटा कुछ लेते..........

उनका वाक्य अधुरा ही रह गया कि बीच में ही युवक बोल पड़ा, 'मैं यहाँ समारोह में नहीं आया!! बाबुजी।। और हम खून नहीं बेचते है,!!! अच्छा चलता हुँ।।।
और वो युवक औझल हो गया।।
रमेश बाबु किंकर्तव्यमूढ़ होकर न जानें कितनी देर खड़े रहें।।
©® जाँगीड़ करन kk

8-12-2016

Sorry Damini

बचालो  मुझे  वो पुकार रही हमको,
सपनें में वो आत्मा बुला रही हमको।

इक बिटिया को जन्म देने वाली हुँ मैं,
कोख में मार दुँ इक माँ कह रही हमको।

क्या मैं वहशी नजरों के लिये बनी हुँ,
हर बिटिया चीखकर बता रही हमको।

बहुत स्नेह की जरूरत है उसको तो,
दर्द के मारे ही वो सता रही हमको।

दामन में हमारे कितने दाग है करन,
दामिनी हर पल धिक्कार रही हमको।
©® जाँगीड़ करन kk
16_12_2016___7:30morning

Wednesday 14 December 2016

लिख रहा हुँ

मैं उस दर पे बंदगी लिख रहा हुँ,
छोड़ भरम सारे सादगी लिख रहा हुँ।

जहाँ रास्ते बदल जाते है सफर में,
मोड़ की मैं बदनसीबी लिख रहा हुँ।

जुगनुँ की रोशनाई से परे है जो,
चाँद की वो चाँदनी लिख रहा हुँ।

रिश्तों की अहमियत कब समझोगे,
दिल की मैं तिशनगी लिख रहा हुँ।

हर  हर्फ की अपनी  ही कहानी है,
मैं एक शेर में जिंदगी लिख रहा हुँ।

एक स्वर पर न्यौछावर है करन तो,
मैं  गीत  से  दीवानगी लिख रहा हुँ।।
©® जाँगीड़ करन kk
14_12_2016___07:20morning

Saturday 10 December 2016

काजल

मोहब्बत के दिन याद आने लगे है।
वो फिर से सज सँवर जाने लगे है।।

जब से कदम रखा है उन्होनें बाग में,
पतझड़ में भी फूल खिल जाने लगे है।

जब जिंदगी की तप रही ऊलझनों में,
अपनी जुल्फों से घटा बरसाने लगे है।

कैसे  रोकुँ  हुस्न से खुद को बचाने,
हर रोज मुझे अब आजमाने लगे है।

भला कोई अब कैसे बच पाये करन,
काजल  से  वो  कत्ल कराने लगे है।
©® जाँगीड़ करन kk
10_12_2016___6:00morning

Tuesday 6 December 2016

ऊजाले का स्वर

अंधियारी रात के बाद,
तारों की बारात के बाद,
उजाले ने
पैर अपने
पसारे है
तुमने
घुँघट जरा
हटाया है शायद.....

किसी छोर से,
कहीं ओर से,
आवाज आती है,
खनक की,
कि पनघट पर,
तुमने
कदम अपने
रख दिये है शायद......

कहीं दूर से,
उस सदूर से,
हवाएँ,
लेकर आई है,
खुशबु की सौगात,
कहीं तुम में,
जुल्फें अपनी
बिखेर दी है शायद......

किसी पेड़ पर,
या खेत की मेड़ पर,
चिड़िया भी
चहकी है अब,
तुमने स्वर
अपना
उनको
सुना दिया है शायद.......

©® जाँगीड़ करन kk
06/12/2016___6:30AM

फोटो साभार इंटरनेट

Saturday 3 December 2016

मदहोश दिल

तेरी जुल्फों से खेलों कि खुद पे बारिश कर दुँ,
तेरे दामन में सो जाऊँ खुद को गुलाब कर दुँ।

तेरे होठों के प्याले से जब जाम छलकता हो,
मैं क्यों खुद की राह मयखाने की ओर कर दुँ।

तेरे चेहरे की ही रंगत है या चाँद की परछाई है,
मैं इसे निहारते हुए न्यौछावर सारी रात कर दुँ।

गुलाब खुद तुमसे अपना नूर माँगने आता है जब,
मैं अपनी नजरों का रूख कहीं और कैसे कर दुँ।

जो तुम अपनी पायल का स्वर सुना दो मुझको,
मैं खो के धुन इसकी खुद को मदहोश कर दुँ।।
©® जाँगीड़ करन kk
03/12/2016__20:00pm

Thursday 1 December 2016

अरदास

कोई चलता है मोहब्बत की प्यास लिये,
कोई छलता है जिंदगी की आस लिये।

हर पल नजरें दरवाजे पे ही टिकी हुई,
पलकें झपकती है तेरा ही आभास लिये।

अंधेरी रातों में वीराने का तुम्हें डर कैसा,
बेधड़क चलो संग जुगनु का प्रकाश लिये।

कोई मुस्कुराने की वजह तो ढूँढ लें तु भी,
क्यों हर वक्त रहता है चेहरा उदास लिये।

हे जगदाता विश्वविधाता सुन ले तु मेरी भी,
आया करन अब द्वार पे तेरे अरदास लिये।।
©® जाँगीड़ करन KK
01-12-2016__07:30 morning

Sunday 27 November 2016

A letter to swar by music 14

Dear SWAR,
कल्पना, तुमने भी काफी सुना होगा इसके बारे में। हाँ, वहीं कल्पना जो उस परमात्मा ने करके ही यह संसार बनाया था। इस संसार में जीव जंतु, पक्षी, नर, सूरज, चाँद, तारे, धरती, समंदर, झील, नदी, नालें, जंगल सब उसकी कल्पना का ही साकार रूप है। और इन सबकी अपनी अलग अलग पहचान है, रूप है, रंग है, कला है यह सब भी उसकी अपनी कल्पना का काम है......
और इस काल्पनिक सत्यता के बीच उसने जब तुम्हें बनाने की कल्पना की तो उस समय उसे शायद चाँद की याद तस्वीर दिमाग में थी, और तुम्हारा चेहरा जो उसने चाँद सा ही बना दिया तो
और जब उसने तुम्हें चाँद सा बना ही दिया तो मेरी कल्पनाओं का भी अपना स्थान बनता है ना!! और तुम्हारे चेहरे पे चमकती हुई बिंदी जैसे कि चाँद का पास में शुक्र ग्रह चमका रहा हो, बस जी करता है कि तुम्हें इस रूप में युँ ही देखता रहुँ.......
और सुनो!! जब वो बादलों की कल्पना करके तुम्हारे केशों का घने काले और बहुत लंबे (हाँ!!! दुसरे भी कहते है यह तो मुझसे) बना सकता है, तो क्यों न मैं मेरी कल्पनाओं का गजरा इनमें लगाऊँ, जब तुम प्रेम की बारिश करो अपनी जुल्फों से तो, मैं भीनी भीनी खुशबु में खो जाऊँ, कि हर पल हर जगह सिर्फ यहीं खुशबु आती रहे।।
और सुनो पार्टनर!!!
जब गुलाब की टहनियों की कल्पना को अपने दिमाग में लाकर उसने तुम्हारे हाथों को बनाया तो क्या कहना, जब तुम इनसे छुती हो तो शरीर में अजीब सी सिरहन पैदा होती है...... आओ मैं इन हाथों में हीना की खुशबु भर दुँ, आओ तुम्हारे इन गुलाब से मुलायम हाथों को मेहंदी से सजा दुँ...
और देखो.....
उसकी कल्पना ने तुम्हारे अंदर नदी से चंचलता भी भर दी, जब तुम राह में चलती हो तो लगता है कि नदी बलखाती हुई अपने गंत्वय की ओर जा रही है। जब मैं तुम्हें ऐसे देखता हुँ तो मेरा हाल न पुछो क्या होता है!!
बस देखता हुँ रहता हुँ.......
और देखो!!!
वो पंछियों का कलरव सुन रही हो ना, यह भी कितना लाजवाब है ना, मगर यह क्या?
ये तो पंछी नहीं है तुम्हारे पैरों में बंधें पाजेब की धुन है, अच्छा तो तुम नृत्य भी अच्छा कर लेती हो.. वो भी मोरनी जैसा... हाँ याद आया तुम्हारी आवाज भी तो......

खैर.....

यह सुनो अब......

तुमने समंदर सी जो खामोशी अख्तियार कर रखी है ना, वो मुझे थोड़ी कम पसंद है, तुम देखना मेरी कल्पनाओं का ज्वार भाटा तुम्हारे अंदर कैसी हलचल पैदा कर देगा, तुम्हारे मन के समंदर में सुनामी सी आ जायेगी, जिसे तुम काबु नहीं कर पाओगी..

With love yours
Music

©®जाँगीड़ करन kk

Saturday 26 November 2016

हो जा सयाना

बेतरतीब  जिंदगी का फ़साना है,
कुछ तुम्हें कुछ मुझे आजमाना है।

लाख दिलों को घायल कर दें,
गौरी  का  कैसा शरमाना  है।

वक्त के बेरहम हाथों से सब को,
इक  बार तो गुजर के जाना है।

कितनी  पीर  को सहता है दिल,
इस  बात  से जग अनजाना है।

मात पिता इक सच्चे साथी,
मेरा तो बस यहीं बताना है।।

चल करन अब छोड़ दें आशा,
हो  गया  अब  तो सयाना है।
©®जाँगीड़ करन kk
26-11-2016__11:30AM

Thursday 24 November 2016

थकान

मैं जेठ की
तपती दोपहरी में भी
एक बूँद की आस में
घूरता हुँ आसमान.....

हर दौर में यहीं हुआ
मोहब्बत के दुश्मनों
से तंग आकर
हार गये सब अरमान....

तुम युँ चिंता न करो
अपने पर ही अड़े रहो
दिखता है आँखों में तुम्हारी
मुझे वो चढ़ता परवान....

रातें बात बहुत करती है
मगर तन्हाई ही लगती है
बंद आँखों से तब
करता हुँ मैं तेरा ध्यान...

अहसासों की परवाह
कब तुमने की है
बस नफरत का ही
करते हो संधान...

वक्त की हर चाल से
मात खा रहा हुँ मैं
हारना मगर फितरत नहीं
बस हुँ मैं हैरान....

मुझे मालुम है कि
मैं भटका हुआ राही हुँ
मगर मैं कर्ण हुँ
नहीं है मेरे पैरों में थकान।
©® जाँगीड़ करन kk
23_11_2016-- 11:00 pm

Wednesday 23 November 2016

A letter to swar by music 13

Hello dear SWAR.....
..................,.................
बहुत हँसी आ रही है, पेट दर्द करने लग गया है हँसते हँसते। बात ही तुम ऐसी करती हो ना....
क्या कहा तुमने तुम्हारी बकरियों ने....... खैर छोड़ो..
पर पढ़कर मजा आ गया!!!!!
और तुम्हें मालुम है न मैं हँसता नहीं मगर जब हँसता हुँ तो लोग मुझे देखकर ही हँसते है कि छोरा बावळा हो गया।।
पर एक बात तो कहुँगा तुम लापरवाह बहुत हो, इतनी बड़ी लापरवाही!!! हद है यार, फिर कहती हो, डाँटा मत करो ।। नहीं डाँटु तो क्या करूँ? मगर मैं जानता हुँ इस डाँट में भी प्यार ढुँढना तुम्हें आता है, इसलिये तो तुम्हारी लापरवाही कभी कम नहीं होती।
और हाँ सुनो!!!
तुमने अबके खत के साथ जो पहाड़ी वाला फोटो भेजा है वाकई में खूबसुरत था, सूरज से नजरें मिलाती तुम कितनी अच्छी लगती हो, और तुम्हारे चेहरे पर अस्त होते सूरज की लाल किरणें पड़ती है तो वाकई कमाल!! जी करता है अभी....................
और सुनो पार्टनर!!! अब ठंड बढ़ रही है उस दरिया का पानी अब ठंडा रहेगा, उसमें उतरने की कोशिश मत करना, बिल्कुल भी नहीं।। पता है ना तुम्हें जुकाम कितना जल्दी हो जाता है।।
..........................
और सुनो ग्वालिन!!
तुम्हारे उधर अमरूद के पेड़ बहुत है और अब अमरूद पकने शुरू हो गये है, तो तुम जानती हो ना मैं कहने वाला हुँ, हाँ!!!! वहीं.... पिछली बार की तरह।।पिछले साल के तुम्हारे हाथ से तोड़े हुए अमरूदों का स्वाद तो अब भी जहन में, तुम्हें पता है कच्चे क्या और क्या पक्के मैं तो सब के सब चट कर गया!! ह ह ह ह ह ह ह ह ह।।
हाँ यार!!! तुम्हारे हाथ का जादु ही है जो खत से खुशबु आती है, मैं बिन पढ़े यह महसूस कर सकता हुँ कि अंदर क्या लिखा होगा!!
और हाँ हमेशा की तरह ढेर सारा प्यार!! अपना ख्याल रखना।
!!!
तेरी नजर से घायल दिल की दास्ताँ सुुन लें,
दूर तु है दूर मैं भी हवाओं का संदेश सुन लें।
हर आते जाते पल को मेरी निगाहें ताक रही,
कभी तो तु मेरे आँगन आने वाली राह चुन लें।।

With lots of love
Yours
MUSIC

©® जाँगीड़ करन kk
23-11-2016

Saturday 19 November 2016

ऊलझन

इक छन से
              इक मन की
      बढ़ी ऊलझन।।

इक घन से
             इक तन की
        बढी तड़पन।।

इक तन की
              इक तन तब
         बनी करधन

इक फन से
             इक धन की
        बढ़ी विचलन।।

इक तन से
             इक तन की
        बढ़ी धड़कन।।
©®जाँगीड़ करन kk

Friday 18 November 2016

जीत से हार की ओर

जीत की दहलीज से मैं लौट आया हार को,
शुकुन  तो मिला  होगा अब सारे संसार को।

मन में अपने ही कितना द्वेष लिये चलते है,
क्यों युहीं दोष देते है भाई घर की दीवार को।

सुई लेकर सील लो उधड़े रिश्तों को अब तुम,
यह काम की नहीं दूर फेंको इस तलवार को।

तुम न जानें क्यों कुछ सुनातें नहीं आजकल,
कान मेरे तरस रहे 'स्वर' सुनने तेरी झंकार को।

समंदर में तो तुफानों से सामना होना है 'करन',
मैं  मजबूत कर चुका हुँ नाव  की पतवार को।
©®जाँगीड़ करन kk
18-11-2016__06:45AM

Sunday 13 November 2016

जिंदगी तेरा इरादा क्या है?

गिरती हुई आस को
उलझी जुल्फों का
सहारा!!
जिंदगी
तेरा इरादा क्या है?

डुबती हुई नाव को
गुलाबी हौठों का
किनारा!!
जिंदगी
यह फसाना क्या है?

प्यास की चरम सीमा पे
छलकती आँख का
इशारा!
जिंदगी
यह दास्तान क्या है?

रूठी हुई किस्मत को
हँसी चेहरे का
नजारा!!
जिंदगी
यह सताना क्या है?

बहरे से करन को
किसी स्वर ने
पुकारा!!
जिंदगी
यह तराना क्या है?
©® जाँगीड़ करन kk

Photo via Google with due thanks

Thursday 10 November 2016

हे ईश

रूई की फोहों से चोटिल
सर को
इक पत्थर ने सहलाया तो.....

गुलाबी फूल से घायल
पैर को
काँटों ने सँभाला तो.......

मुस्काते चेहरे में पीड़ित
आँखों को
इक दर्द ने हँसाया तो.....

इक मौन से बैकल
मन को
इक गुँगे ने पुकारा तो.......

कैसे भूलुँ ईश तेरी
कृपा को
हार से तुमने जीताया तो.......
©® जाँगीड़ करन KK

Wednesday 9 November 2016

चाँद का टुकड़ा

हाँ!! मैं अब भी मेरी छत पर बैठा उस खिड़की को निहार रहा हुँ, कि शायद किस पल तुम उससे झाँकने का इरादा कर लो! वैसे देखो ऊपर आसमाँ में चाँद भी अपने पुरे शबाब पर है, और तुम भी तो........ उस समय युँ चौदहवीं चाँद सी नजर आती थी, उस खिड़की से झाँकती हुई, और मैं अपनी सुधबुध खोयें सिर्फ तुम्हें देखता था, एकटक।
हाँ।। मुझे वो दिन अब भी याद है जब मैं गली में खेलता तो तुम ऊपर से झाँकती, पता होता मुझे कि तुम देख रही हो, मगर मैं उस तरफ नहीं देखता था, नहीं नहीं!!! मुझे खुद के विश्वामित्र होने का घमंड नहीं था, मैं तो बस इसलिये ऊपर नहीं देखता था क्योंकि अगर एक बार हमारी नजरें मिल जाती तो तुम वहाँ से फिर चली जाती थी, यह मुझे अच्छा नहीं लगता था, मैं चाहता था कि तुम वहीं खिड़की पे खड़ी रहो इसलिये मैं बस तुम्हें न देखकर केवल तुम्हें सोच लेता था, जैसा कि अब भी सोच रहा हुँ!!
पता है मुझे मैं जब भी अच्छा खेलता तो तुम अपनी आँख को हल्के से बंद करके ऐसे इशारा करती कि जैसे यह मेरी नहीं तुम्हारी जीत हो, हाँ... मुझे मालुम है.... मेरी हार तुम्हें बर्दाश्त नहीं थी ना, मैं जब भी हारता तो तुम नाक सिकोड़ती और कभी कभी तो मुझे जताने के लिये अपनी बहिन पर चिल्लाती कि कोई काम ढंग से नहीं होता तुमसे!! मगर मैं इस ईशारे को भी बखुबी समझ जाता मेरी जान!!
तुम्हें यह तो मालुम है ना मैं सुबह ऊठकर घर की चौखट पर बैठ जाता, नजरें  खिड़की पर कि कब तुम वहाँ से झाँकोगी, हाँ!!! तुम्हें लेट ऊठने की आदत है मैं जानता हुँ। मगर मैं तब तक कोई काम न करता जब तक कि तुम्हें खिड़की से झाँकते हुए न देख लुँ।।
जब तुम सुबह ऊठकर बिना मुँह धोयें खिड़की के पास आकर एक लंबी से अंगड़ाई लेती थी ना, बस मत पुछो, कसम से चाँद की चमक भी उस समय फींकी से लगती थी।। और उस समय तो सूरज की लाल किरणें जब तुम्हारे सुनहरें बालों पर पड़ती तो वो नजारा तो कुछ और ही था..... हाँ मेरे चाँद!! तुम्हें शायद मालुम नहीं मगर मैं याद दिला दुँ, उस खिड़की पर खड़ी रहकर मुझे देखकर एक नौटंकी जरूर करती थी, अपनी कुछ जुल्फों को हाथ की एक अंगुली में लपेटकर अपने होठों लगाने का, तुम्हें याद है ना कुछ। कभी तुम खिड़की पर खड़ी रहकर अपनी एक तरफ की जुल्फों को कान के ऊपर से निकालते हुए पीछे ले जाती!!
हाँ!!! तो मेरे चाँद........
तुम्हें कुछ याद आया.................
तुम्हें न सही मगर मुझे अब भी याद है, वो खिड़की भी, वो छत भी, और चाँद भी........
अभी तो मैं आसमाँ के चाँद को देख रहा हुँ... तुम्हारी तस्वीर से उसका मिलान करते हुए...
#करन
08.11.2016__21:00PM

Monday 7 November 2016

स्वर की थिरकन

महसूस  जो कर  लें मुझको तुमने धड़कन देखी है,
जिसकी धुन को कान सुन रहे ऐसी करधन देखी है।

और  जमाने के  रिश्तों की बात नहीं मालूम मुझे,
जमीं की खातिर भाई की भाई से अनबन देखी है।

किसने  बोला फुलों से घायल  नहीं होते है भँवरे,
जब से तुम से आँख मिलाई पीर ही नैनन देखी है।

हाथ बढ़ाया जब भी मैनें तुमसे हाथ मिलाने को,
लोगों की आँखों में मैनें तब तब अड़चन देखी है।।

जब भी मेरी आँखों ने कोई ख्वाब नया दिखलाया है,
एक बावले करन ने तो स्वर की थिरकन देखी है।।
©®जाँगीड़ करन kk
07/11/2016_5:00AM

फोटो- साभार गुगल

Saturday 5 November 2016

तुम याद रख लेना

मेरी  आँखों में  झाँकने का हुनर रख लेना,
समंदर  सुखा है ये  इतनी समझ रख लेना।

जीत का सेहरा बाँधने का शौक नहीं मुझको,
मेरी हार  तक का मंजर तुम याद रख लेना।।

बिछुड़े आज फिर कहीं मुलाकात हो शायद,
मेरी पहचान को  आँखों में बसाये रख लेना।

कहीं मिल जायें जो मेरे बिखरे हुए सपने तो,
उन  सपनों को दिल  में समेटकर रख लेना।

कौन  कहता है  कि मौत से डरता है करन,
बस  तब मेरा  सर अपनी गौद में रख लेना।
©®जाँगीड़ करन kk
©® 05/11/2016__5:00AM

Friday 4 November 2016

बहुत खूब सोची है।

सियासती लोग कब देश की सोची है।
अपनी जीत की बस तरकीब सोची है।

हमेशा अपने ही घर भरते रहे हो तुम,
कब  गरीबों के हालात की  सोची है।

मुश्किलें उस राह की तुम क्या जानो,
कब तुमने चाँद तक जाने की सोची है।

मैं वक्त से आँख मिलाकर चल पड़ा हुँ,
मैनें कर्म को अपनी तकदीर सोची है।

तु हकीकत में कहीं और का मुसाफिर है,
मैनें पर संग मेरे तेरी ही तस्वीर सोची है।

मैं अपनी ही मौज का दीवाना हुँ करन,
कब मैनें जमाने से बगावत की सोची है।
©® जाँगीड़ करन kk
04/11/2016__20:00PM

Thursday 3 November 2016

जुल्फों के फंदे

जुल्फों के इन फंदों में फँसकर,
जिंदगी नहीं चलती संभलकर।

आईना भी तुमसे कहता होगा,
जान लेगी मुँह उस तरफ कर।

साँझ ढले पनघट पर न जाना,
राही गिरते पड़ते संभलकर।

आसमान तो है काला काला,
पुर्णिमा कर दें चल छत पर।

एक करन अब कितना बोलें,
चल सोजा ख्वाब संजोकर।।
©® जाँगीड़ करन kk

Wednesday 2 November 2016

बचपन का सावन

यादों के उस समंदर से भरके नाव लाया हुँ,
जवानी के शहर में बचपन का गाँव लाया हुँ।

झाड़ियों में छिपे खरगोश की आहट,
कच्चे  आमों की  वो  खट्टी  बोराहट।
खेत मालिक के आने की ले सूचना,
मैं सरपट दौड़ के उल्टे पाँव आया हुँ...
जवानी के शहर.........................

दीपावली  के दिये  से  बनाये तराजु,
बोलो  सेठ  क्या  भाव लगाये काजु।
तकड़ी  के धागों  में हौले  से बसता,
भ्रातृत्व  स्नेह वो  का भाव  लाया हुँ।
जवानी के शहर....................

तितलियों  के  पीछे भागती  हुई बहना,
फूलों की क्यारियों का भी क्या कहना।
बहना की आँखों में बसा  सुंदर संसार,
देखो तो जरा कहाँ से संभाल लाया हुँ।
जवानी के शहर.......................

गलियों  में यह  क्या हो रही है हलचल,
कोई कान में फुसफुसाया चुपके से चल।
शहर के इन सन्नाटों को तोड़ने के लिये,
बचपन के खेल से मेरा वो डाम लाया हुँ।
जवानी के शहर..........................

सुबह से शाम तक दर्द ही तो सहता हुँ,
तुम नहीं समझोगे मैं गुमसुम रहता हुँ।
क्यों  लौटकर  नहीं आ जाता बचपन,
जिंदगी तेरे लिये एक सवाल लाया हुँ।।
जवानी के शहर.........................
©®जाँगीड़ करन KK
02/11/2016__5:00AM

Sunday 30 October 2016

यह मेरी दिवाली

काली घटा है या लहराई जुल्फें उनकी,
यह इंद्रधनुष है या उठी पलकें उनकी।

मेरे घर के बर्तन भी नाचने लगे है सब,
यह कैसी मदमस्त सी चाल है उनकी।

सारा शहर रोशन हुआ है दिवाली पर,
जब रात को सूरत सबने देखी उनकी।

फुलझड़ियाँ पटाखें सब धरे रह गये,
एक हँसी जब आई अधरों पे उनकी।

मेरे ख्वाबों में वो पायल खनकाते है,
मेरी नींद से है शायद दुश्मनी उनकी।

सीमाओं पर जो डँटे ही रहे है करन,
यह दीवाली कर दुँ मैं तो नाम उनकी।
©® जाँगीड़ करन kk
30/10/2016__6:00AM

फोटो- साभार इंटरनेट

Saturday 29 October 2016

धूल और जल

मैं धरा की धूल विचलित सी
कहीं उड़ती फिरूँ,
बेखबर सी,
बेबस सी,
मैं चुभ रही
कितनी आँखों को।
बस तुम्हारी मोहब्बत की
बारिश का
इंतजार करूँ।
तुम बनके जल
बरस जाओ,
मैं जमीं पर
जम जाऊँ।
तुम बहना नदी में,
मैं संग तेरे सरका करूँ,
पहुँच जाऊँ मैं जब
समंदर में
कोई डर नहीं
फिर
तुम्हारे बिछुड़ने का
सदा के लिये
तुम वहाँ रहोगे
है ना....
ओ जल मेरे!!
मैं धरा की धूल,
तेरा इंतजार करूँ।
©® जाँगीड़ करन kk
29/10/2016//...7:00AM

Thursday 27 October 2016

ख्वाहिशें

कहीं शौर से  जिंदगी  चलती है।
कहीं मौन अभिलाषा मचलती है।
आदमी आदमी से ही खफा है यहाँ,
कहते सब यह जमाने की गलती है।
दूर से देख चिंगारी आतिशबाजी की,
गरीब की आँखों में दीवाली जलती है।
तुम जब से रूख्सत हुए हो शहर से,
हर इक शाम तब से उदास ढलती है।
तुम्हें क्या मालुम उदासी क्या है करन,
हर रात में नींद मुझे हर पल छलती है।
©® जाँगीड़ करन kk
27/10/2016_5:00AM

फोटो- साभार गुगल

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...