Tuesday 9 June 2015

स्वर

तुम आओ कि नया ख्वाब बुनते है,

यह चाँद जरा उदास सा है,
तुम चलो साथ कि इसके लिए भी खुशियाँ ढुंढते है!

यह नदी भी चाहत रखती है तेरी,
चलो उस पार कि इस नदी से भी मिलते है!

यहाँ हर कोई खफा है जिंदगी से,
तुम गुनगुनाओ कि इनके चेहरे पे मुस्कान भरते है!

तुम तो चिड़िया हो इस बगिया की,
आओ पास कि बैठकर अब स्वर तेरे ही सुनते है!

#karan_DC(08/06/2015, 9:00 PM)

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...