Thursday 29 June 2017

A letter to swar by music 29

Dear SWAR,

जीत  पर  तो ठीक है मगर हार  पे  क्या  पहरा  लगाना,
चिड़िया चुरा लें ख्वाब जब फिर क्या कोई ख्वाब सजाना।
........
जिंदगी की भागदौड़ और वक्त के अलग-अलग रूप, और इसी बीच पानी की बुंदों के पार तुम्हारा चेहरा,
एक आदत सी हो गई है अब.........
दिल में अब कोई खीझ या चिड़चिड़ापन नहीं होता है, ना ही ज्यादा अहसास होता है कि तुम यहां नहीं हो,
बस 💓 दिल के एक कोने में छपी तस्वीर बार बार एक संकेत जरूर करती है कि अब भी तुम मेरी हो.... ठीक उसी तरह जिस तरह चांद आसमान का है, जल धरती का है, पेड़ पौधों का हरापन है, पक्षियों की चहचहाहट है...... एक आदत सी बन गई हो तुम।
तुम्हें यकीन नहीं होगा..... मैं जब भी अचानक से फोन की तरफ देखता हूं तो मुँह से अनायास ही एक आवाज निकलती है कि हां मैं बोल रही हूं। हां, तुम यहीं तो बोला करती थी ना!!
और अब यह केवल भ्रम है, मगर यह भ्रम भी बहुत अच्छा है मेरे लिए और जरूरी भी है.......
क्योंकि.......
।।।।।।।।।।।।।।
कुछ हकीकतें भ्रम हो तो भी कोई बात नहीं,
प्रेम के पंछी पिंजरे में भी आसमां ढूंढ लेते हैं।
।।।।।।।।।।।।।।
सुनो जाना,
आसान तो अब भी कुछ नहीं है.... दिन के उजाले में जिंदगी कभी खेत के किसी किनारे से चिढ़ाती  है या
पंछियों की चहचहाहट फिर कोई गीत याद दिलाती है,
और रात..... चाँद हो तारे मुझे घेरकर जाने कौनसा राज़ ऊगलवाना चाहते है और कभी कभी अंधेरी रात खुद की तुलना मुझसे कर उदास किये देती है।
तुम जितना सरल समझ रही थी तुम्हें मालूम है कि यह कितना कठिन लग रहा है तुमको भी... बस तुम अपने को मजबूरियों के बांध कर चुपचाप देख रहे हो.....
और हां......
देखो, बाहर यह जो झूठी हंसी है ना तुम्हारी मैं अच्छे से जानता हूं मैं, मन में तुम भी कितना उदास हो।।
और तुमने मुझे देखा है ना.......
कितना हंस लेता हूं मैं दुनिया के सामने.. मगर तन्हाई की अपनी बात है..... इसके अपने मायने होते हैं,
जरा  जिंदगी की सच्चाई पर सोचकर मेरी ओर देखना......
कभी तन्हाई में दर्पण को देखना, और झांकना खुद की आंखों में, आंखों के अंदर बसे पानी की गहराई में झांक कर महसूस करना,
इस पानी से बनते बादलों को आंखों में छुपायें रखती हो ना,
इनके बरसने से तुम्हें डर लगता है ना.....
अरे!!!
उधर देखो, बाहर!!!
सावन आया है, वो देखो!!!! बादल पानी बरसा रहे हैं,
देखो ना,
मैं खुद अपनी आंखों का पानी भूलकर इस बारिश को देख रहा हूं,
कहीं भी देखूं,
पानी के उस पार तस्वीर तो तुम्हारी ही देखता हूं।
और
यह पानी की बुंदे जो जमीं पर गिर रही है तेरे पेंजन की छम छम सी लगती है........
और
मैं युहीं बारिश को देखता रहता हूं.........
।।।।।।।।।
किसके हिस्से क्या लिखा है,
मोहब्बत इससे बेपरवाह है....
हमने खुद को जाना है और
दुनिया समझती लापरवाह है.....

और यह फोटो हमने खुद खींचा है अपनी स्कूल में।

With love
Yours
music

©® जांगिड़ करन kk
29_06_2017___16:00PM

Alone boy 23

फूल
यूं तो
हरपल ही
मुस्कुराते हैं,
मगर
सावन में थोड़ा
ज्यादा ही
खिलखिलाते है,
मौसम की खुमारी
इन पर
कुछ ऐसी ही
छाई
जो रहती है....
मगर
फूल
अक्सर
टूटने से
मुरझा जाते हैं,
या फिर
मौसम की
बेरूखी से
उदास से
नजर आते हैं।
हम इंसानों का
भी कुछ
यही
तो हाल होता है,
इक खिलखिलाते
चेहरे को
अक्सर कोई
लफ्जों से
उदास कर देता है,
वो बात और है कि
हम तब भी
बाहर
मुस्कुराते हैं,
मगर दिल
मालूम सबको
है
दिल
कितना
उदास रहता है,
जब
कोई
छोड़ जाता है।।
©® Karan kk
29_06_2017

दिल की पीर

ओझल होती नजरों से मोहब्बत का आकार दिखा दूं।
कभी आओ जो महफ़िल में लफ्जों से मैं चांद दिखा दूं।

कहां खेलता है आसमान बादलों की पारी को,
तुम तो मेरे करीब रहो बारिश का अहसास दिला दूं।

धरती पहन के चूनर धानी देखो कितना इठलाती है,
तुम जो रहो संग मेरे मैं इसकी चूनर लहरा दूं।

बेशक सारा जहां जलेगा तुम्हें यहां पर देखकर,
मैं तो तुझ में खोया रहकर प्रेम की नई रीत बता दूं।

आंखें अब भी तकती रहती राहें तेरे आने की,
दिल की पीर कौन सुनें किसको अपना हाल सुना दूं।
©® करन

Friday 16 June 2017

Alone boy 22

तुमने
अपनी मजबूरी
के बंधन से
मेरे जज़्बात
तो कब के
बांध दिए
और इधर वक्त
की गर्द
तेरी
तस्वीर को
ढकती जा रही,
मैं मजबूर
करूं भी
तो क्या?
तुम तोड़कर
मजबूरी की
बेड़ियां
आ जाना,
इस गर्द
को
अपने प्रेम से
हटा जाना,
अपनी
चांद सी तस्वीर
फिर मुझको
दिखा जाना.....
©® Jangir Karan kk
16_6_2017__21:00PM

Photo from Google with due thanks

Wednesday 14 June 2017

A letter to swar by music 28

Dear SWAR,

इंसान तुम भी हो इंसान हूं मैं भी,
सफर में तुम हो सफर में हूं मैं भी।
कभी तन्हा कभी महफ़िल में रहा,
चाहत तुम्हें है तो चाहता हूं मैं भी।।
....................
तुम एक हमेशा से जानती ही हो ना कि मुझे बस तुम्हारी चहचहाहट ही सबसे ज्यादा रास आती है, कई दफा तुमने इस बात पर गौर किया होगा कि बिना बात भी तुमसे कुछ न कुछ सुनता रहना चाहता रहा हूं, और एक बात है तुम्हारी आवाज़ का तो जादू ही ऐसा है कि मैं हरपल खुद को तुम्हारी ओर खींचा हुआ महसूस करता हूं।
तुम यह सब जानती हो ना, फिर भी न जानें क्यों तुम मुझे तन्हा छोड़ जाती हो.............
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
सुनो,
मैं अभी पिछले कुछ दिनों में सफर में था, जिंदगी से कुछ कटा कटा सा महसूस कर रहा था खुद को तो फिर से खुद को जिंदगी के करीब लाने के लिए यह जरूरी था......
।।।।।।
जिंदगी के सफर की थकान मिटाने,
उदास  मन को  थोड़ा सा बहलाने।
निकला घर से कोई परदेश को जाने,
लेकिन मन का वो कैसे बदलें ठिकाने।।
।।।।।।।
और, सफर में एक दिन हमने समंदर से मुलाकात का भी कार्यक्रम रखा, समंदर को देखकर एक बात तो सीधे समझ आ गई कि आप जितना धैर्य रखते हैं उतनी ही आपकी गरिमा बढ़ती है लेकिन इस को कुछ लोग नहीं समझते है वो उस धैर्य को कायरता मान बैठते हैं....
वैसे समंदर तट पर टहलते हुए हमें एक बात और पता चली है कि आप जितना नरमी से कदम बढ़ायेंगे रिश्तों में उतनी​ही सरलता आती है, एक कठोर कदम रिश्तों में बेरूखी पैदा करता है। उस रेत पर बने मेरे पांवों के निशान मुझे कुछ यहीं सीखा रहे थे कि तुम जिस तरह मुझ पर कदम रखते हो मैं तुम्हारे सामने वैसी ही पेश आती है और यही रिश्तों में भी होता है......
और सुनो जाना.....
वहां कुछ साथी अपने किसी पार्टनर का नाम समंदर की रेत पर लिख रहे थे और फोटो खींच रहे थे, एकबारगी तो मैंने सोचा कि मैं भी लिखु तुम्हारा नाम उस समंदर किनारे और लहरों को चुनौती दूं कि आकर मिटा के दिखायें मगर दूसरे ही पल यह ख्याल आया कि जिसका नाम दिल की गहराई में छपा है उसका नाम यहां लिखने की क्या जरूरत है हां, चुनौती तो मैं वक्त को देता हूं कि अपने दम पर मेरे दिल से तुम्हारा नाम मिटाकर तो दिखायें, यह वक्त के बस में नहीं जाना..... तुम जानती हो ना।
और सुनो,
समंदर शांत था उतना ही शांत जितना कि आजकल तुम हो। मगर जानता हूं मैं यह खामोशी संकेत है, आने वाले तुफान का, किसी सुनामी का, समंदर के तुफान का तो क्या पता मगर तेरी चहचहाहट की सुनामी का मालूम है कि क्या कर देने वाली है। समंदर का तो अपना एक नियम सा है कि कब सुनामी आयें या कब ज्वार भाटा आयें, पर तुम्हारे मन की तुम ही जानो, जानें किस वक्त तुम अपने मन में आई याद रूपी सुनामी को लेकर आ जाओ तो मैं सोच नहीं सकता कि कितनी बड़ी हलचल हो जानी है यहां, मगर यह कोई नुक्सान नहीं करती यही हलचल तो मैं चाहता हूं, दिल की धड़कन का तेज होना, आंखों में सूरज की रोशनी सी चमक, चेहरे पर क्या हाव-भाव आने जाने है इसकी कल्पना करना मेरे बस में भी नहीं है,
बस समंदर किनारे बैठकर यहीं सोच रहा था इस खामोश समंदर में उठने वाली लहर सी कभी तुम्हारे मन में भी एक बार फिर आ जायें...... और मैं जानता हूं एक न दिन यह होना ही है....
फिलहाल तो तुम्हारे जवाब के इंतजार में तुम्हें गुनगुनाता हुआ मैं.....
यानि
सिर्फ तुम्हारा
MUSIC

©® जांगिड़ करन kk
14_06_2017___10:00AM

Friday 2 June 2017

अच्छा तो मैं चलूं

.....................
बचपन से वो दोनों साथ खेलें थे, एक ही गली के अलग अलग छोर पर मकान थे उनके, स्कूल भी एक ही था दोनों का। पढ़ाई में भी दोनों अव्वल, अक्सर होमवर्क भी साथ किया करते थे, अच्छे दोस्त की तरह थे। कभी कभी मन करता तो दोनों गांव के बाहर पानी की टंकी पर चढ़कर बैठ जाते और घंटों आसमान को घूरते हुए जानें क्या बातें करते रहते, अपने भविष्य के बारे एक दूसरे की बातें और सपने जानने की कोशिश करते थे शायद, हां, कभी दोनों के मन में एक दुसरे के प्रति कोई अलग ख्याल नहीं आया, क्योंकि वक्त के तो जैसे पंख लग गए और........
मयंक को कॉलेज की पढ़ाई के लिए अब बाहर जाना पड़ा और उधर देविका क्योंकि लड़कियों को ज्यादा पढ़ाया नहीं जाता तो स्कूली शिक्षा के बाद उसकी पढ़ाई रोक ली गई, और कुछ समय बाद ही देविका की सगाई कर दी और शादी की तारीख भी तय कर दी लेकिन अभी तक मयंक तक यह खबर नहीं पहुंची थी, इधर घरवालों के आनन फानन में लिये निर्णय से देविका भी परेशान थी,  मगर करती भी क्या? मयंक तक समाचार पहुंचायें कैसे?
क्योंकि उन दिनों मोबाइल फोन का चलन तो था नहीं, पर मयंक के घरवालों से खबर मिली की मयंक उसकी शादी के एक दिन पहले ही शहर से परीक्षा देकर लौट रहा है, उसकी तो जैसे मन की मूराद पूरी हो गई वो अब शादी की तैयारी से ज्यादा मयंक के आने का इंतजार करने लगी।
और उस दिन सुबह से ही वो शहर से आने वाली हरेक बस को देखने लगी शाम की बस से​ मयंक आया तो वो दौड़ी और झट से हाथ पकड़​कर उसे पानी की टंकी पर ले गई। मयंक तो कुछ समझा ​ही नहीं कि हो क्या रहा है।
वहां ऊपर पहुंच कर फिर मयंक बोला," आखिर कुछ बोलोगी भी क्या हुआ है और मुझे यहां क्यों लाई?"
देविका एक ही झटकें सारी बात बता दी और कहा कि कल सुबह ही शादी है।
मयंक हतप्रभ होकर देविका को देखता रहा मगर फिर संभल कर बोला, "अच्छा है ना, खुश रहना और अपने पति का ख्याल रखना।"
देविका की आवाज में अब एक शांति सी थी, "तो तुम मेरे बिन जी पाओगे?", उसने अपने हाथों को उन हाथों से खींचते हुए कहा।
और वो बिन जवाब के ही चुपचाप आसमान को घूरता रहा, न जानें वो कब चली गई पता ही नहीं चला। बहुत देर बाद पटाखों की आवाज से उसका ध्यान टूटा, उसने नीचे आकर देखा तो..............
और उस दिन से उसके चेहरे पर एक उदासीनता छा गई, लोग कहने लगे कि शहर में पढ़ने से छोरे में अक्ल आनी शुरू हो गई।
©®करन
02_06_2017__21:00PM

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...