Saturday 15 December 2018

Alone boy 30

अक्सर
शिकायत रहती है
मेरे सारे दोस्तों को,
चाय से तुम्हारा
इतना
गहरा रिश्ता
कैसे?
हर पल तुम्हें
चाय की
याद सी क्यों रहती है.....
मगर मैं जवाब में
मुस्कुरा देता हूं बस,
कोई
फर्क सिर्फ पड़ता कि कोई
क्यों कर सवाल करता है?
मगर,
जब भी अकेले में सोचता हूं तो
चाय के साथ जुड़े
किस्से याद आते हैं,
साथ ही याद आती है,
तुम्हारे हाथों से
बनी वो आखिरी चाय भी
जिसको पी लेना मेरे बस में न था,
मैं आज भी
हर चाय के साथ वो
पल याद करता हूं,
याद करता हूं
उस अंतिम चाय से
उठते धुएं के उस पार
दिखती
मजबूर तस्वीर को,
याद करता हूं
उन लफ्जों को जो
तुमने खुद न बनाये पर
कहना तो
तुम्हें ही था........
अक्सर एक कप चाय से
तुम्हें
महसूस कर लेता हूं,
कभी खिड़की से,
कभी नीम पर,
कभी जंगल के उन पत्थरों पर.......
अंकित है जहां
तुम्हारे और मेरे
जिंदा होने के सबूत,
वक्त की गर्द ढक देगी हालांकि
इनको
मगर
चाय के कप उठते धूएं में
हर पल
कोई तस्वीर
मजबूरी की
मैं बनाता हूं
मिटाता हूं,
बनाता हूं
मिटाता हूं.......

©® जांगिड़ करन
15_12_2018

Note - 51 से बाद के लैटर के लिए एक पुस्तक छापने के की तैयारी में हुं पर अभी थोड़ा व्यस्त हुं, 2019 के अंत तक या 2020 में पुस्तक जरूर आ जायेगी 😜

Monday 15 October 2018

Alone boy 29

रुक्सत जो कर गई,
हवाएं
इधर शहर में
घुटन सी होती है।
चुपचाप खड़ी ये
अट्टालिकाएं,
सूरज की
रोशनी को
तरसती है।
शौरगुल से
परेशान पिल्ला
दुबका है,
मोहल्ले की
सबसे
गंदी नाली में।
दीवारों को ताकता
कोई,
डायरी में लिखे
दो लफ्जों से
तस्वीर
बनाने की जुगत में है,
मगर
हर बार
तस्वीर धूंधली ही
नज़र आती उसको,
कई दफा फिर
कोशिश करता है,
और
अंत में
समझ आता है उसको,
कल्पनाओं की
तस्वीरें
सुंदर तो होती है,
मगर साफ
नहीं हो सकती।
जिंदगी की जो
भूल करी
वो भूल
माफ नहीं हो सकती....
किंचित
वो समझ गया सारा ही रहस्य,
तस्वीर को
साफ करने,
वो निकल पड़ा है,
लफ़्ज़ों के
समंदर को
छिपी तस्वीर लाने,
वो निकल पड़ा है
जिंदगी की भूल
का
परिणाम बनाने,
शायद ये
लफ्ज़
अब
उसकी दुनिया है......
...........
A letter to swar by music 51 to 75..
Coming soon...

#करन

Friday 5 October 2018

Alone boy 28

जैसे आसामां की
गोद में सोया
कोई ख्वाब,
पलकों के उस पार
कहीं कोई फुदकती है अब
आशाओं की डोर नहीं है
जो
बाँध लें उसको,
बस बंद आंखों में
कहीं दूर
आसमां के साये में
पंख फड़फड़ाते हुए से
नजर आते हैं।
इधर बादलों ने
घेरा है,
आंखों में समाकर कुछ
धुंधला सा
कर रहें तस्वीरों को,
मगर जब कभी
आंखें बरसकर साफ हो,
सब कुछ दिख
जाता है,
वहीं जो कई रोज पहले
किसी सपने में देखा करता था...
आसमां में बसते वो
दो तारे,
अक्सर एक दूसरे के
करीब आने
की
कोशिश में रहते, और
रात का घना अंधेरा
इस बात का गवाह होता....
मगर वक्त के
साथ
जानें क्यों
तारों की दूरियां बढ़ने लगी,
लगता कि कोई
एक तारे को
खींच रहा पीछे से....
मगर एक तारा अब भी
वहीं मौजूद, न किसी तारे से राग, न द्वेष,
बस निर्विघ्न
जिंदगी,
न किसी से कुछ कहता है, न सुनता है,
शायद अंधेरे से कुछ बात करता हो
अब भी।

©® करन जांगिड़
04.10.2018 .... 23:00PM

Sunday 19 August 2018

A letter to swar by music 50

Dear swar, "किसी को पाने के लिए खुद का खो जाना, मानो न मानो मोहब्बत यहीं चीज है.........!!!! .. I respect you and your feelings. Actually the time was enable to blossoms the flowers of love between us. Perhaps we both were wrong............... First you got your way of life and now I am finding my own way without any destination............ So I think I should tell you something.... ........ काल के किसी खंड में (मैं समय और तारीख भी मालूम है पर लिखना ज़रूरी नहीं, तुम्हें खुद याद आ जानी है) तुमने सिर्फ अपनी इच्छाएं जाहिर की थी, वो इच्छाएं जो हर लड़की के ज़हन में अपनी जिंदगी को लेकर पनपती है, वे इच्छाएं जो हर समय कुछ ढूंढते रहने या कुछ पाने को मजबूर करती है..... मैं नादान था उस समय, समझ नहीं पाया था कि इशारे कभी सच जाहिर नहीं किया करते..... तुम्हें याद तो होगा तुम्हारे इरादों और प्रश्नों से बचने के लिए मैंने असफल सा प्रयास भी किया था..... मगर मैं भी इंसान हुं मेरी भी अपनी कमजोरियां होनी थी, कुछ सीमाएं होनी थी.......... बस वहीं से वक्त ने मेरी जिंदगी के पन्नों पर रंगीन स्याही दिखाकर काली सफेद रेखाएं खींचना शुरू कर दी और जैसा कि हर इंसान मन से कमजोर होता है, जो समझ नहीं पाता कि वास्तव में जो हो रहा है वो आगे क्या रंग दिखायेगा!! उधर वक्त अपनी ही रेखाएं बना रहा था और मैं इधर कल्पनाओं में जिंदगी को हसीन रंगों में सजाने की जुगत में था... कभी तुम्हारे चेहरे में चाँद ढूंढता तो कभी जंगल में खिलें किसी फूल का अहसास करता.... कभी चेहरा दूर क्षितिज सा लगता जिसका कोई अंत ही न हो..... तुम्हारी आँखें मुझे झील सी नजर आती कि हर वक्त इनमें डूबा ही रहुं..... कभी तुम्हारी आँखों में खुद को देखकर सँवरने की सोचता..... मेरे मन की इच्छाएं तुम्हारे काले घने बालों में बादल ढूंढ लेती थी, कभी चेहरे पर गिरी जुल्फों के पीछे छिपे चाँद का दीदार आँखें चाहती थी..... पर एक बात याद दिला दूं.... तुम्हें याद है न हम आज तक कभी अकेले में मिलें भी नहीं......(यहीं सच है जिसे कोई भी मित्र या पाठक स्वीकार नहीं करेगा)... हां... मैंने कई बार तुमसे जाहिर किया था कि तुम्हारे कान पकड़कर उमेठने का मन करता है...... तुम्हारे नाक संग चिकीविकी खेलने का मन करता है.... तुम्हारी जुल्फें खींचकर चिड़ाने का मन करता है......, पर कभी नहीं कर पाया... मतलब कि वक्त मौका ही नहीं दिया!! चलो छोड़ो...... ये वक्त की बातें हैं, दोष तुम्हारा या मेरा नहीं था! हां, तो मैं कहां था..... कल्पनायें... इन कल्पनाओं की अपनी वजह थी..... जब तुम्हें देखता आंगन में नृत्य करते हुए तो मन के कौनें में हिरणी बन फुदकती कुदती सी नजर आती थी... जब जब तुमने मेरे किसी गीत को गुनगुनाया मुझे यूं लगा कि , "जिंदगी-स्वर से बढ़कर कुछ भी नहीं है!".... तुम्हारी आवाज़ में खोया मैं फोन कट जाने पर भी फोन कानों से दूर हटाना भूल जाता था... मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि तुम आज भी उतना ही मधुर गाती हो जैसे पेड़ पर बैठी कोई कोयल राग सुना रही हो.... और तुम्हारी यह आवाज ऐसी ही बनी रहेगी... इन बातों से इतर....... तुमने और मैंने जिंदगी के सपने बुने थे, वे सपने जो हकीकत की जिंदगी से ताल्लुक रखते थे.... वे सपने मुझे तुम्हारा होने और तुम्हें मेरा होने पर गर्व का अहसास दिलाते थे..... हर सपने की नींव हम दोनों ने साथ रखी थी.... तुम्हारे हर सपने को मैंने अपना समझा था.... तुम्हारे सपनों की खातिर मैंने अपने सपनों को ही तोड़ा था..... मैंने वो सपना भी तोड़ दिया जिसके लिए तो मैं मरा जा रहा था... (DC).... बचपन में जब रेडियो पर RJ को सुनता या टीवी पर एंकर को देखता तो मन में ख्याल आया कि बनना तो कुछ ऐसा ही है.......... पर जब थोड़ा बड़ा हुआ और आगे पढ़ाई को जीवन से जोड़ कर देखा गया तो सबने यहीं सलाह दी थी कि Mass communication का कोर्स महंगा है और जॉब की सिक्योरिटी भी नहीं है... मैं भी अपनी पारिवारिक स्थिति से वाकिफ था.... पढ़ना मेरे बस में था, पर बाहर किसी शहर में रहकर खर्च वहन करना और परिवार को संकट में डालने की हिम्मत नहीं हुई थी..... फिर 2004 में जब कला वर्ग में पढ़ाई शुरू की तो सपना ही बदल गया.... पर दिमाग सपने कौनसे छोटे देखता है.... अब भी सपना तो बड़ा ही था... हां, अब यह था कि मेहनत खुद को करनी थी..... सपना था DC.. .. फिर वक्त ने मोड़ बदला.... सीनियर के बाद सबसे ज्यादा चाहने वालों ने भी जब BSTC की सलाह दी तो मुझे माननी पड़ी... मन में DC तो था ही........ BSTC की... 2012 में मास्टर जी बन गये.... नौकरी की खुशी में समय निकल पड़ा... पर सपना भूला नहीं था... तैयारी शुरू हो गई थी... इस बीच तुमसे मुलाकात...... तुम्हें भी सबसे ज्यादा इस DC पर बहुत आश्चर्य हुआ था न कि यह क्या है? जो केवल दो लोग जानते थे तुम्हें भी बताना ही पड़ा..... तुमने यह तक कहां था आपका सपना जरूर पूरा होगा............... और फिर तुम, मैं और सपना साथ...... पहली बार 2015 में पहली बार इसके लिए परीक्षा दी थी (केवल समझने के लिए की मुझे किस तरह तैयारी करनी पड़ेगी, मेहनत थी पर इतनी ज्यादा नहीं कि कोई उम्मीद इस परीक्षा से नहीं की थी, हां... पर परीक्षा देकर इतना तो समझ आ गया, यस!! आई केन डू इट)....... मैं लग गया था तैयारी में.... मगर वक्त शायद कुछ और चाहता था.... तुम्हें मजबूर किया वक्त ने और तुमने फिर.... वो शुरू किया जो मुझे एक शायर की तरह बनना पड़ा... उससे पहले मैंने कभी तुम्हारे लिए भी खुद ने नहीं लिखा था.... पर जब शुरू हुआ तो जैसा तुम जब बिहेव करती कलम वैसा ही पोजिटिव या निगेटिव.... कागज़ को रंग देती।। इससे पहले के 49 letters किसी न किसी घटना से जुड़े हैं जो तुमसे जुड़ी हो...... मैं बस सपने छोड़..... इधर खोया रहने लगा.... तुम नाराज़ तो मैं उदास, तुम खुश तो मैं खुश.... मगर कई दिनों पहले... वक्त ने एक झटके में तंद्रा तोड़ दी
ख्वाबों में खोया मैं हकीकत से रूबरू होकर काँप गया..... पीछे देखता हूं तो वो हसीन पल याद आते हैं और अब सब उजड़ा उजड़ा सा लगता है.... यहां से पांवों में अब और चलने की हिम्मत नहीं रहीं, ऐसा महसूस होता है जैसे जमीं ने मुझे रोक दिया है अपनी शक्ति से...……. आंखें आकाश को अब भी देखती है पर किसी उम्मीद में नहीं, बस शून्य में ताकती है कि इसमें ही कहीं समा जाऊं.............. पर इन सबसे इतर मेरे पास जीने की कुछ और वजह है, वो सबकुछ जिसने मुझे यहां तक पहूंचाया है, जो हर समय मेरे साथ रहें हैं....... मैं कैसे भी रहुं पर अब हारूंगा तो नहीं!! हां, अब से कोई मकसद नहीं, कोई सपना नहीं, सिर्फ रास्ता..... आखिर सांस तक चलने का इरादा है बस!!!
...................
जरा सी आहट हो तो
ज़िन्दगी कुछ ख्वाब बन लेती है,
पैरों में जहाँ रखने की
जहमत उठाया करते है सब,
ज़िन्दगी हर बार कोई
परिंदा बीमार रख लेती है.
समय कितना गहरा है,
आदमी का क्या है ,
रेत पर बने निशान भी 
आँखे संभाल लेती है.
अब तलक ढूंढ़ता रहा किनारे,
समंदर की लहरे अब 
मुझको संभाल लेती है.......
..... और अब मुख्य बात, तुम परेशान नहीं होना.... दोष तुम्हारा बिल्कुल नहीं है, हालांकि मेरे साथ बहुत गलत हुआ है इतना ज्यादा कि इस गलती को सुधारने के लिए अब वक्त नहीं है.... खैर रहने दो यह सब.... भगवान से दुआ करता हूं कि खुश रहो तुम और खुश रहने के लिए मुझसे दूर रहना जरूरी है इसलिए.... एक चेतावनी है दुनिया गोल है कभी न कभी आमना-सामना हो सकता है मगर मुझसे बोलने की हिम्मत भी मत करना अब वरना left hand सीधे तुम्हारे गाल पर पड़ेगा.... Good bye
Its only of mine Music ©® JANGIR KARAN DC 05_08_2018__08:00AM

Tuesday 17 July 2018

Alone boy 27

अक्सर आंखें
ढूंढ ही लेती
उदास होने की वजह...
मौसम जरूर
Jangir Karan
बरसात का है,
खिलने का है, मिलने का है
मगर,
उस टूटे हुए पत्ते को पूछो,
क्या मौसम उसको भाता है,...
उसकी नियति सड़ना है,
गलना है, कटना है......
खिलना तो वो भूल गया,
सावन से वो रूठ गया।
मगर हर मौसम भी
उसको ऐसे ही चुभता है,
पानी से गलना,
सूरज से जलना,
हवा से भटकना..
कुछ और नहीं वो कर सकता है,
बस मन ही मन सिसकता है।
करुणाई तो देखी उसने,
हवा उसे सहलाती है,
मिट्टी प्यार जताती है,
नदी उसे झुलाती है।
मगर क्या यह करुणाई,
फिर उसे जोड़ पायेगी,
पीले पड़ते चेहरे पे,
रंग हरा ला पायेगी.......
खूब समझता पत्ता भी,
ढांढस का सब खेल यह,
अपने अश्रु छिपा रहा,
जग से हाथ मिला रहा.....
मुस्कुराते जब उसको देखा,
मेरा मन भी मुस्काया!!!
अक्सर आंखें कह देती है,
क्या तुमने खोया, क्या पाया!!!!!!
©® JANGIR KARAN
17_07_2018____10:00AM

Thursday 10 May 2018

A letter to swar by music 49

Dear swar,
गणित तुम्हारी आदत है, मगर मुझे तो यूं लगता है कि तुम्हें गिनती भी नहीं आती होगी, हैरान होने की बात नहीं है!! तुम्हें कैलेंडर में तारीख देखना भी नहीं आता शायद?
पूरा एक साल निकल गया है, एक साल मतलब कि पुरे 365 दिन यानि कि 5,25,600 मिनिट्स... नहीं है है ना याद?
हां,
तुम गणित को सिर्फ आंकड़ों का खेल मानती हो, मगर मैं तुम्हारी इस गणित को जिंदगी से जोड़कर देखता हूं! उस वक्त से जब तुमने पहली बार आवाज दी थी, हां वो पल, दिन, वार, समय... उस पल की हर एक बात, कितने अक्षर थे वो भी याद है!
लेकिन तुम्हें तो इतना भी याद नहीं कि एक साल में तुमने मेरी किसी बात का जवाब नहीं दिया....
अब तुम्ही बताओ गणित कैसा है तुम्हारा?
.......
और इधर आजकल...
......
हर तरफ से वक्त ने छीना है सुकून जिंदगी का,
मैं वक्त तुम्हें ढूंढ चैन पाने निकला हूं।
....
आवाज़ नहीं दी होगी तुमने,
शायद मेरा सुनना भी वहम था।
.....
कल फिर तुम्हें सोचना है,
कल फिर तुम्हें चाहना है।
आज की खातिर भला
क्यों तुम्हें भुलाने की कोशिश करूं?
……….....................................
अब सुनो प्रिये,
यह जिंदगी मेरी रेल की पटरी सी हो चली है! हां, तुमने गणित में देखे है रेल और पटरी के सवाल...
रेलगाड़ी की लंबाई, पटरी की लंबाई, चाल, समय, सापेक्ष चाल आदि आदि!! हां मेरी जिंदगी के गणित में भी रेल की पटरी से सवाल उलझे हैं.... पटरी से कितनी रेलगाड़ियां गुजरती है, कौनसी कितनी लंबी थी, क्या गति थी, आमने-सामने से कब कौनसी रेल गुजरी? जिंदगी की पटरी इन सवालों से ज्यादा अलग तरह के अहसासों के उलझन में है!
हां....
हर गुजरती रेलगाड़ी के निकल जानें की दुआ करती है वो, क्योंकि रेलगाड़ी की गड़गड़ाहट भी उसे तन्हा सफर देती है जिसमें उसे कुछ और नहीं सुनाई देता...
क्योंकि पटरी को एक बात तो पता है रेलगाड़ी का तो गुजरना तय है वहां हमेशा के लिए रुकने से तो रही....
और पटरी को अपनी नियति भी पता है, मगर वो समझती कहां?
हर गुजरती रेलगाड़ी के साथ एक और ख्याल आता होगा पटरी के मन में कोई रेलगाड़ी ऐसी भी हो जो हर क्षण के लिए यहीं रुक जाये...
हां, वो रेलगाड़ी आती जरूर है मगर रुकती कहां!
पल भर में फिर रवाना हो जाती है, जब उसमें जान है चलना है..... जिस दिन थक जायेगी तब जाके कहीं रुकेगी, जब उसको जंग लग जायेगी तब वो रुकेगी शायद...
पर अब उसमें भी एक डर है, तब तक वो पटरी खुद पुरानी और कबाड़ न हो जाये कि निकालकर कबाड़ख़ाने में डाल दी जाये कहीं.... और बस फिर तो!!!
रेलगाड़ी से मिलन का ख्वाब भी ख्वाब नहीं, एक बीता हुआ कल रह जायेगा...
यहीं जिंदगी है..
जिसके सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब तुम्हारी गणित के पास नहीं है, जवाब तुम्हारे ज़हन में है...
पर तुम अपने ज़हन की सुनती कहां हो,
तुम्हें तो गणित के सुत्रों पर चलना है ना!!!

..........
खैर इस एक साल में दो बातें तो महसूस करी है....
पहली, बदलना बहुत आसान है मगर, बदलने वालों को बदलना मुश्किल है जरा।
दुसरी, प्रेम इंसान को जीने के अलग अलग तरीके सीखा देता है।
!!!!!!
और हां,
एक खुशखबरी सुनाये!!!
हम जिंदा है
शरीर से नहीं मन से भी!
कभी कागज पर
कभी दिलों में
हां,
जिंदा है हम
पंछियों की उड़ान में
स्कूल जाते बच्चों की मुस्कान में
जिंदा है हम....
!!!!!!!
With love
Always yours
Music
©® Karan KK
10_05_2018___15:00PM
  • Photo from Google with due thanks

घरौंदा

मन के बनायें घरौंदे,
न तेरे प्रेम की मिट्टी चाहिए,
ना ही तेरी रहमतों का पानी.....
कोई फर्क नहीं पड़ता
इसपर
तेरी नफ़रत की आंधियां का भी.....
मैं खुद ही
दीवार बना और
बिगाड़ लेता हूं,
कहां क्या रखना है सब
तुम्हारी इच्छा पर
बनाता हूं........
और जब तेरी याद
याद आती है,
कल्पनाओं का
झरोखा खोल
किचन में देख लेता हूं तुमको,
एक बारगी पुकार लूं तुम्हें
एक कप चाय,
पर नहीं,
मैं तो बस तुम्हें
बिन बताए तुम्हें देखना चाहता हूं.....
अक्सर तेरी याद में
खोया
किवाड़ की सिटकनी भूल जाता हूं मैं...
पर यह अच्छा है,
तुम्हें आने में कोई तकलीफ़ न होगी...
मन के घरौंदे है
और भागदौड़ जिंदगी की
हकीकत है,
अचानक तंद्रा टूटती है,
साथ ही टूट जाता है घरौंदा
और एक कमरे की चार दीवारों में कैद
मैं
फिर एक घरौंदा बनाता हूं!

©® KARAN KK

10_05_2018___5:20AM

Sunday 6 May 2018

A letter to swar by music 48

Dear swar,
.............
मुकम्मल जिंदगी मुकम्मल ख्वाब ये तो हुई लोगों की बात...
उखड़ा हुआ चाँद और एक आवारा करन...
यह हूं मैं
....
महकना है दिन को मेरे आजकल,
अरसे बाद चाँद को देखा है मैंने।।
😘😘
......
आंखों से कोई नूर बरसता है,
चाँद ने पूनम की रात दिखाई है...
😘😍😘😍😘
.......
बहका था मैं आज कुछ पल को,
जमाने की मगर बंदिश थी यारा।
😘😍😘
........
यह वो सबकुछ है जो पलभर की मुलाकात के बाद दिलो-दिमाग में आया था...
!!!!!!!!
बाकी......
गुस्सा लाजवाब था...... गुस्से में भी तुम इतनी खूबसूरत लगती हो कि पूछो ही मत.. मेरी!! मेरी तो भी वहीं हालत है तुम हो जो सामने तो दिल दिमाग शरीर सबकुछ हेंग हेंग सा हो जाता है.... तुमसे मिलने से पहले बहुत सोचा कि यह कहूंगा वो कहूंगा पर मिलने पर कुछ भी न कह सका, बस देखता ही रहा!!
क्या देखता हूं मैं....
और ख्याल आयें भी तो...
तुम्हारी गणित के, जैसे तुमने जोड़ लिया है खुद में एक खूबसूरत चाँद खुद में, घटा दिया है पहले जैसा मुस्कुराना, गुणा किया है अपनी गंभीरता को, भाग दे दिया है जिंदगी में जानें किसका.........
मैं सिर्फ सोचता रहा कि किस बिंदु पर खड़ी हो तुम, आसपास कितने बिंदु और थे जिनकी तरफ किरण बनकर या रेखा बनकर तुम बढ़ सकती हो.....
उन दुसरे बिंदुओं में तुम्हारे लिए मैं शायद नहीं हुं और मानकि हुं भी दूर अनंत में कुछ धूंधला सा....
तुम्हारा रेखाखंड हो जाना तो निश्चित है अब किस बिंदु तक पहुंच के रुक जाना है यह सिर्फ वक्त जानता है पर जानती हो रेखाखंड हो जाना इतना आसान नहीं है, और तुम्हारे लिए तो शायद बहुत मुश्किल है क्योंकि तुम्हें शुरू से किरण हो जानें का शौक रहा है कोई और समझें न समझें मैं समझता हूं और जिस दिन ये पंक्तियां तुम पढ़ोगी मेरा दावा है समझ गई तो रोओगी भी और तुम्हें इस बात का गर्व होगा कि तुम ऐसे इंसान के करीब भी रही थी जो तुम्हारे मन की बात को चंद गणित में कह सका और वो भी सटीक सटीक.... पर तुम्हारा रोना, बहुत देर हो चुकी होगी शायद, तब न तुम कोई बिंदु बदल पाओगी और मानाकि बदलना चाहोगी तो भी मैं तब धूंधला बिंदु इतना धूंधला हो जाऊंगा कि नजर भी आऊं या नहीं भी...
अभी तो तुम समझकर नासमझ ही बनोगी क्योंकि तुम्हारे आसपास कई बिंदुओं का संगम है.....
किरण हो जाने का वक्त नहीं है अब और रेखाखंड होकर रुक जाना है,
दुआ है खुश रहो.....
!!!!!!
जब तुमको देखा था ना पूरे 5 महीने बाद तो दिल दिमाग कुछ कहने पर मजबूर हो गया, बाकी मैं तो अब तक भी तुम्हारे ख्याल मात्र से खुश रह लेता हूं और आगे भी रहूंगा!!
!!!!!!
आगे से कोशिश करूंगा कि कोई और मुलाकात न हो, क्योंकि अब यह बहुत परेशानियां पैदा करती है दिल में,
मैं बस युहीं खुश रहना चाहता हूं....
तुम्हें सोचकर,
गणित के किसी प्रमेय की तरह सिद्ध कर लेता हूं कि तुम यहीं कहीं हो...
!!!
बातें बहुत है!
बस तुम सुन सुन कर परेशान हो जाओगी?
।।।
इसलिए इतना ही!!!
बाय।

With love
Yours
Music

Written by KARAN KK
05__05_2018___23:00PM

फोटो- अंधेरे में चाँद

Sunday 29 April 2018

A Letter to swar by music 47

Dear Swar,

अक्सर कानो में और मोबाइल की स्क्रीन पर एक सवाल आता है ... कौन है वो ?
जवाब में खामोश हो जाता हु में...
या उस जगह से हट जाता हु कि जवाब नहीं देना पड़ेगा.....
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मगर जब खुद मेरे जहन में एक सवाल पैदा होता है तब कि तुम हो कोन?
कहा हो तुम ?
तुम क्यू हो ?
और जब ये सवाल मुझे ज्यादा ही परेशां करते है तो जवाब में तुम याद आती हो....
मुझे पता है तुम्हारे पास ही है इन सारे सवालों के जवाब....
अब में तुम्हे तो सीधे नहीं कह सकता ना कि तुम बता दो कि कोन हो ?
क्यूंकि तुम्हे बताना होता तो मेरे लिए इतने सवाल ही खड़े नहीं होते.....
खैर ये छोडो......
लोगों के सवाल है और मुझे तो जवाब देना है मेरे जवाब कुछ यु बनते है देखो तो .....
सुनो,
नदी की धार के संग बहती पानी की चमक हो.. में अक्सर तुम्हे ढूंढता हु नदी के किनारे खड़े होकर..... दूर जहाँ तक मेरी नजर जा सके वह तक.... तुम हर उठती लहर के साथ आती हो और जैसे ही पानी की धार कुछ धीमी हुई जाने कहा खो जाती हो .... तुम्हारे दिखना या नहीं दिखना मायने नहीं रखता है मेरे लिए ... बस मुझे मालूम है तुम्हारा वजूद छुपा है पानी में.... समय पर चमकाना और फिर गायब होना यह तो तुम्हारी अदायें है....
!!!!!!!!!!
या में यु कह दू तुम दूर आकाश में चमकता कोई सितारा हो..... और में धरती पर हर रात तुम्हे निहारता हुआ एक आवारा हु..... जो चाहता है कि वो तारा उसके पास आये पर यह भी नहीं चाहता कि टूटकर आये.... हा जब रातें बादलों भरी होती है और सब तारे छुप जाते है तब मन में एक अजीब सी बैचेनी रहती है कि कही तुम...........
!!!!!!!!!
और में तुम्हे अगर कोई खिलता फूल कहू तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी... हा... तुम्हे उसी बगीचे में खिलता हुआ गुलाब हो जहाँ मेरा आना शायद कभी कभार होता है या शयद सालभर तक भी न आ पाऊ वहा... मगर जब भी आता हु तुम्हे खिला हुआ ही देखना चाहता हु.... तुम्हे हर पल ही पास तो चाहता हु मगर तुम्हे तोडना भी गलत है न मुरझा न जाओगे तुम?
और में हर पल भी तो बगीचे में रुक नहीं सकता न......
बस जहन में तुम्हारी सुगंध लिए अगली मुलाकात का इंतज़ार करता हु....
!!!!!!!!!!!!!!
और अक्सर में तुमको खिड़की के पार से आती ठंडी हवा में बसी खुसबू जान लेता हु..... इस गर्मी के मौसम में भरी दोपहर में जब खिड़की के पास बैठता हु ठंडी हवा ऐसे छूती है जैसे कि तुम्ही ने सर के बाल सहलाए हो अभी अभी ........... अक्सर मेरी दोपहर की चाय ठंडी हो जाती हो जाती है... इन्ही ख्यालों में पर जानती हो तुम चाय में भी तुम्हारे अहसास की खुश्बू भर जाती है और फिर में खुद को कितना तरोताजा महसूस करता हु जिसका तुम्हे अंदाज़ा भी नहीं होगा........
!!!!!!!!!!!!!
अब अगर तुम्हारी इज़ाज़त हो तो तुम्हे चिड़िया कह दू?
हा...
सबसे प्यारा नाम...
सबसे दिलकश भी....
और इतना सरल भी की हर सुबह से लेकर शाम तक बस जुबान पर ही रहता है.....
हर सुबह जब तक मेरी आँख खुलती है पास के पीपल के पेड़ से तुम्हारी आवाज़ सुने देती है मुझको... में आँखे खोलते ही उधर ही देखता हु मगर तब तक तुम उड़कर दूर आकाश में परवाज़ भर रही होती हो.... में तो खुश होता हु तुम्हे ऐसे उड़ते हुए देखकर ही.... मुझे मालूम होता है की जब तुम थक जाओगी फिर से उसी पेड़ पर आकर बैठोगी और फिर से गीत सुनाओगी.... में भी पागल ही हु बस तुम्हारे गीत की धुन में खोया सो जाता हु और फिर से उड़कर कही चली जाती हो....
मगर मुझे यह भी मंजूर है....
बस ये गीत युही सुनाते रहो.....
!!!!!!!!!!!!!!
अब अंत में......
जबकि हकीकत के धरातल पर शायद में अकेला हु जो ख्वाबों की पौध के भरोसे ही चलता रहा हु और कब तक चलूँगा पता नही......
में तुम्हे अपनी जिंदगी कहूँगा....
हर सुबह से लेकर शाम तक की मेरी सारी हकिकत के पीछे छिपी तुम्हारी मासूमियत.....
हर लम्हे में याद आती तुम्हारी सूरत.....
महफ़िल में तनहा दिखाती तुम्हारी नाराज़गी.....
और तन्हाई को महफ़िल बनाती तुम्हारी यादें.....
बस हर रोज में जीता हु.....
हर हकीकत से रूबरू होकर भी उसे अजरंदाज करते हुए....
हा....
मेरी जान.....
तुम जिंदगी हो जिसके हर पहलु में बसने का सपना लिए ही तो हर लम्हा गुजरता है मेरा......
>>>>>>>>>
लिखने को काफी है अभी...
मगर मे जानता हु तुम्हारे पास वक़्त की कमी है....
इसलिए फिलहाल इतना ही....
....
हमेशा की तरह खुश रहना...
मेरा क्या है वही...
....
में और मेरी कलम अक्सर तेरे लिए ही सोचते है...
....
with love
yours
music

.........
wriiten by
jangir Karan KK
29/04/2018......21:30PM

Wednesday 18 April 2018

A letter to swar by music 46

Dear swar,
इधर कई दिनों से एक घटनाक्रम की नींव तैयार हो रही थी, मुझे मालूम था कि यह होना है और होना जरूरी भी था क्योंकि वक्त के साथ कुछ बदल जाता है.....
वो कहते हैं ना....
जिंदगी किसी एक के भरोसे नहीं रूकती,
मुसाफिर कोई और साथी भी हो सकता है।
.........
अक्सर मैं रात को छत पर बैठकर तारों को देखा करता हूं, ठीक उसी तरह जैसे कि तुमने कहां था....
तुमने बताया था ना कि उस चमकते तारे के ठीक सामने वाले तारे से कुछ दूरी पर एक और तारा है जिस पर उस चमकते तारे का ध्यान नहीं जा रहा....
मैं अपनी बात करूं तो इस ध्यान का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि ऐसे तो असंख्य तारे है उस चमकते तारे के चारों ओर.......
मगर उस तारे की नजर हमेशा से सिर्फ ठीक सामने वाले तारे पर ही रही है और जब तक ब्रह्मंड है तब तक उस तारे की सोच तो यहीं रहनी है!!
मैं दुसरे तारों की बात ही क्यों करूं?
उन्हें लंबवत के साथ साथ क्षितीज पर चलना आता है वो चल दिए.... यह उनकी विशेषता है और हैं तो अच्छी बात है।
मैं क्या कहना चाहता हूं भली भांति जानते है आप....
क्योंकि वो तारा उसकी परिस्थिति और मन के विचारों से अवगत है, चमकना उसकी नियति नहीं है वो तो बस सूर्य के प्रकाश से चमकता है....
दिन के उजाले में ये सब तारे कहीं खो जाते हैं, यह हमारे लिए गायब हुए हो पर इनका वजूद तो होता ही है ना...
जैसे कि मैं...
बहुत बार लोगों की नजर में कुछ ज्यादा ही आता हूं, लोग तरह तरह के सवाल करते हैं...
पर कभी कभी मैं नज़र नहीं आता उनको, वक्त का कौनसा चश्मा लगा कर देखते हैं वो,
पता नहीं!!
!!!!
हां,
मैं कुछ कह रहा था कि कुछ घटने वाला है यहां, कुछ ऐसा जो...... मेरी जिंदगी में कोई तुफान ला सकता है शायद...
या वो खामोशी आ सकती है जो मरने तक को मजबूर कर दें........
पर मैं,
मैं जानता हूं कि सब कुछ होना है मैं परवाह नहीं करता, बस मुझे तो उस चमकते तारे सा रहना है जिसकी नज़र सामने वाले तारे पर है!!
देखना एक दिन वो सामने वाला तारा कुछ तो जरूर करेगा..........
।।।।।
खैर यह सब मेरी जिंदगी का हिस्सा है, मुझे परवाह नहीं अब किसी भी परिस्थिति की मैं सिर्फ आनंद की पराकाष्ठा हुं, मैं भावनाओं का सैलाब भी हुं....
।।।।
हां, अक्सर लोग एक सवाल करते हैं कि कौन है वो?
तो तुम कहो तो अगले पत्र में तुम्हारा जिक्र करूं?
अनुमति दो तो करेंगे...
।।।।।
बाकी,
हम मस्त है,
आशा है कि आप भी मज़े में होंगे!!

वैसे CCTV की नज़र तेज हो गई है, जरा बचके।
😜

With love

Yours
Music
..
©® जांगिड़ करन KK
18/04/2018__7:30AM

Friday 6 April 2018

खेल प्रिये

तुम खिड़की स्लाइडर वाली हो,
मैं टूटा फूटा किवाड़ प्रिये..
तुम मार्बल सी प्लेन प्लेन,
मैं आंगन का उबड़-खाबड़ ढाल प्रिये..
🤦‍♀😁🤦‍♀
ओके सॉरी
तुम आर सी सी की स्टाइलिश छत,
मैं टूटा फूटा खपरैल प्रिये।
तुम डाइनिंग टेबल का हुनर हो,
मैं देशी थाली में जमा मैल प्रिये।
#सॉरी
🤦‍♀😍🤦‍♀

तुम रेलिंग कांच की चमक-दमक,
मैं पुरानी ईंट की दीवार प्रिये।
तुम स्टेंडर्ड किचन जैसी हो,
मैं देशी चुल्हा धुआँदार प्रिये।।
🤦‍♀🤔🤦‍♀
अच्छा सॉरी

चलो खत्म करें ये खेल प्रिये,
तुम्हारी छूट जायेगी रेल प्रिये।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
यह प्यार नहीं कोई खेल प्रिये।
😜🤦‍♀😜
बस खत्म

#जांगिड़ करन KK

Tuesday 3 April 2018

Recall of love

धनुष की प्रत्यंचा को जितना खींचते हैं लक्ष्य उतना ही सटीक और तीव्रता से भेदा जा सकता है, मगर यह भी है प्रत्यंचा को इतना अधिक भी नहीं खींचना चाहिए कि प्रत्यंचा ही टूट जायें.
और यहीं बात रिश्तों में भी लागू होती है,आपका हर बात पर सफाई लेना या देना प्रत्यंचा खींचने जैसा है, बिल्कुल इन बातों से रिश्ता मजबूत होता है, एक दूसरे की परवाह करने की प्रवृत्ति बढ़ती है.
मगर इसकी अपनी कुछ मर्यादाएं होती है.
इसलिए ध्यान रखें.
और किसी की अहमियत उसके न होने पर समझने से बेहतर है कि उसके होने पर ही समझ लें।
एक बात और है...
रिश्ता सिर्फ सच की बुनियाद पर टिक सकता है, झूठ बोलने की आदतें बहुत महंगी साबित होती है जब कभी वह बाहर आ जायें और झूठ को बाहर आना ही है........
इसलिए अपनी अहमियत अगर सामने वाले को समझानी है तो सिर्फ सच बोलिए... और झूठ बोलते ही क्यों?
किस बात का डर अगर आप सही है तो!!
प्रेम के रिश्ते में शंकाओं और किसी तरह की लुकाछिपी की कोई जगह नहीं होती है, सामने वाले का विश्वास कितना है आप पर; इस बात पर गौर कीजिए कभी.... यह नहीं कि आप ज्यादा होशियार है उनसे और जो चाहे कर सकते हैं.. माना कि वो आप पर विश्वास के कारण कुछ नहीं कहते वो या आपको खोने का डर हो, हां डर!! उनके इस डर को उनकी ताकत बनाइये न कि मजबूरी....
फिर अगर आप कुछ छुपाते हैं तो......

1. अगर आप आस्तिक है तो जानते ही होंगे कि आपके कर्मों का परिणाम आपको मिलना है...
2. आप नास्तिक है तो विज्ञान तो मानते होंगे, टेस्ट ट्यूब में जैसा मिश्रण डालेंगे.. परिणाम वैसा ही मिलना है ऐसे ही....
सच+सच= आत्मसंतोष
सच+झूठ= भ्रम
झूठ+झूठ= द्वंद्व
& Final in next post
जिए.
3. अगर आप मेरी तरह आस्तिकता और नास्तिकता के भंवर में उलझे हैं तो....
जो सर्वशक्तिमान है उसके पास या वो खुद 10 अरब मस्तिष्क( एक मस्तिष्क = 35000 सुपर कंप्यूटर) से मिलकर बना हुआ है, आपकी हर पल, हर हलचल की रिकॉर्डिंग करता है वो, हर पल की डिटेल के अकॉर्डिंग अपना next command ऑटोमैटिक जारी करता है...
_KK_

Sunday 25 March 2018

उलझन कैसी है

उलझती जो जूल्फें तेरी
सुलझा भी लेता मैं,
मगर
क्या जिंदगी का
उलझना
जरूरी था।
............
बातों का उलझना
सुलझ
सकता है,
मगर
क्या कहानी का
उलझना
जरूरी था।
............
रिश्तो की तो
उलझन
सुलझें,
मगर
क्या नयनों का
उलझना
जरूरी था।
..............
ज़िक्र वक्त का
ही हो तो
फिर भी
जायज है,
मगर वक्त से परे
क्या परों में
उलझना जरूरी था,
...........
बात सिर्फ
मोहब्बत
की हो तो ठीक है,
मगर दुनिया बेगानी लगे
क्या ऐसे
इश्क में
उलझना जरूरी था।
..........
गांव शहर
जंगल
बग़ीचा
तो अच्छी बात है,
मगर आसमान में उड़ती
चिड़िया
के
दिल में
उलझना
जरूरी था।
©® जांगिड़ करन DC
25_03_2018___20:30PM

Saturday 17 March 2018

A letter to swar by music 45

Dear swar,
.................
मौसम की मस्ती और मन की तरंगों का जब मेल हो जाये तो जिंदगी के समंदर में मौजों की रवानी सी आती है....
लेकिन किसी उदास मन को कोई मौसम नहीं सुहाता, दिल का कौना जब जख्मी हो तो महफ़िल भी खाली खाली सी लगती है........
बसंत कब आया कब गया मालूम नहीं....
इधर हवाओं में जब जब बेरुखी सी छाई तो...
...
अक्सर खिड़कियां अपने पर्दे को हटाकर कमरे के अंदर झांकती है तो उदास हो जाती है, तुम्हारा न होना कितना अखरता होगा उनको...
घर का आंगन भी उदास है जानती हो ना तुम्हारे पैरों के निशान अब फीकें पड़ रहे हैं इस पर... ये उन निशानों को हमेशा के लिए संजोकर रखना चाहता है, पर वक्त की रेत मिटाती जा रही है उनको.... बस उनको इंतजार है कभी तुम आओ और निशान फिर ताजा हो जायें... तुम्हारे हाथ की रंगोली तुम्हारे बिन रंगहीन लगती है..... अरे!! तुमने उस कहां था ना कि रंगोली की रेखाएं अपनी जिंदगी के सफ़र को तय करेगी,
मैं ढूंढ रहा हूं मगर वो रेखा नहीं मिल रही जो इस सफ़र में तुम्हें मेरे साथ रखें तो तुम आकर मेरी मदद कर दो ना...
मैं तुम्हारे बिन सिर्फ काली रेखाएं देख पा रहा हूं जो आगे अंतहीन अंधेरे की तरफ जाने का इशारा करती है... तुमने वो लाल पीली रेखाएं जानें किधर बनाई है... आकर ढूंढकर बता दो..... यह रंगोली भी तुम्हारी तरह एक पहेली बन गई है जो मुझसे नहीं सुलझ रही है.... आओ... सुलझा दो ज़रा... तुम्हारी जुल्फें तो मैं सुलझा लूंगा!!!!
और सुनो तो,
ये घर की हवाएं भी जलने लगी है लोग कहते हैं कि गर्मी आ गई है इसलिए ऐसा हो रहा है मगर मैं तो यह सोच रहा कि तुम नहीं हो इसलिए ऐसा हो रहा है.... तुम अगर यहां हवा में गीली जुल्फें लहराओ तो हवाएं अपने आप ठंडी होगी ना! इन हवाओं को भी तुम्हारा इंतज़ार है ताकि इनका रूखापन दूर हो सकें और इनमें ठंडक और खुशबू आ सकें।
देखो,
पतझड़ चल रहा है पेड़ पौधों से पते गिर रहें हैं बेहिसाब गिर रहें हैं.... इन सुखे पत्तों को जब हवा इधर उधर सरकाती है तो एक मधुर आवाज आती है मगर यह मधुर आवाज एक उदासी से भरी होती है। दुख की वजह बिछुड़ना, पत्तों का पेड़ से अलग होना!
मगर देखो ना,
ये पत्ते उदास हो कर भी मधुर धुन सुना रहे हैं!! मैं भी तो यहीं करता हूं ना!!!
......
चलो
गीत कोई गाये,
हवाओं को सुर बना लें,
पत्तो की खनखन को थाप बना लें,
आओ,
मुस्कुरा लें,
इस रूखे मौसम के
चेहरे पर
हंसी तो
बिखेर दें...
उदासियों की चादर फेंक,
आसमान में रंग भर दें कि
फिर
खुशियों की बारिश हो....
फिर पेड़ पौधे हरे भरे हो...
फिर चिड़िया चहकें
और
फिर
जिंदगी मेरी जन्नत हो!!!
.....
सुनो,
आज अमावस्या है,
चांद नहीं होगा आसमां में,
तुम छत पर आ जाना जरा...
मैं चांदनी देखना चाहता हूं
अमावस्या को भी!!

With love yours
Music

©® जांगिड़ करन KK
17-03-2018__06:00 AM

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...