Sunday 29 January 2017

Smiling queen

चाँद थोड़ा मुस्कुराना तो जरा,
रात अंधियारी भगाना तो जरा।

मैं इक स्वप्न हूं जिंदगी  का,
तुम नींद में बुलाना तो जरा.....

मैं  तरन्नूम  की बहती हवा,
जुल्फें तुम लहराना तो जरा...

ओस की इक प्यासी बूंद मैं,
अपने लबों से लगाना तो जरा...

तेरे दिल का ही स्वर हुं मैं,
हौले से गुनुगुनाना तो जरा...

भोर तेरे आँगन  की है करन
ओ चिड़िया चहचहाना तो जरा...
©® जाँगीड़ करन KK
29/01/2017___6:00AM

Wednesday 25 January 2017

ऐसे वतन के रखवाले

जान हथेली पर लेकर चलें,
ऐसे वतन के रखवाले।
हर तकलीफ को यें झेलें,
ऐसे वतन के रखवाले।।
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
सीना तान के चलते जायें,
एक कदम न पीछे हटायें,
कभी न अपनी पीठ दिखायें,
ऐसे वतन के रखवाले।।
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
बर्फ की ऊँची दीवारों में,
साहस समंदर किनारों में,
कभी रेत के धोरों में,
ऐसे वतन के रखवाले।।
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
ठिठुरती है जमाने वाली,
रेत भी होती है जलाने वाली,
करते हैं फिर भी रातें काली,
ऐसे वतन के रखवाले।।
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
सीना छलनी छलनी होता,
फिर भी साहस कम नहीं होता,
नाम वतन का जुबां पर होता,
ऐसे वतन के रखवाले।।
©® जाँगीड़ करन kk
25/01/2017__7:30AM

Friday 20 January 2017

Alone boy 3

किसी ठिठुरती
रात में
एक तन्हा लड़का
छत पर
बैठकर
निहारता है
चाँद को..........
मन ही मन
चाँद से
कोई सवाल
करता है...
और फिर जानें
क्यों
आँख से
पानी की इक
बूंद टपकाता है.......
अब
फर्श पर पड़ी
बूंद में
वो अपना चाँद
देखता है........
और युहीं
अपने चाँद
के दीदार की खातिर
वो रातभर
अश्रु बहाता है......
हां.....
एकांत में
एक लड़का............
©® जाँगीड़ करन KK
20/01/2016__19:30pm

Tuesday 17 January 2017

दस्तक

कल रात
दरवाजे पर
एक दस्तक हुई,
गहरी नींद में
सोया था मैं
मगर आँख खुल गई.........
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
दरवाजे को
खोला मैंने मगर
कोई चीज नजर नहीं आई,
मैंने सोचा शायद
नींद में युहीं
यह आवाज है आई.......
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
मगर जैसे ही
मैंने
दरवाजे की कुंडी लगाई,
हवा के इक
झौंके सी कोई
कान में फुसफुसाई..........
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
मैं तुम्हारी
हार हुँ
लो मैं आ गई,
मेरी हालत क्या बताऊं
आँखों में
काली छाया छा गई............
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
नींद न जानें कहां गायब
बस चिंता की
लकीरें छाई,
किस गलती की
सजा आज
मैंने यह पाई..................
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
हड़बड़ी में
इतना ही पूछा मैंने
बुलाया नहीं तो क्यों आईं,
बोली वो तमतमाकर
जीत ने
तुम्हें कितनी आवाज लगाई..............
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
लेकिन तुम ठहरे हठी
तुमने उसकी
हर दस्तक ठुकराई,
अब बारी मेरी है
मैं बिन पूछे
इसलिए ही चली आई...............
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
मैं आज से रहुंगी
तुम्हारे मन में
बनके परछाई,
सोच लो बची जिंदगी में
मेरी गुलामी
रास आई.............................
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
आँख से इक बूंद गिरी
उठकर मैंने
हार गले लगाई,
किस्मत का क्या पता
मगर
जीत से ज्यादा हार रास आई.............
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
©® जाँगीड़ करन kk
17/01/2017__8:00 AM

Thursday 12 January 2017

A letter to swar by music 19

Dear SWAR,
..........
... राहों की बात.. दिल के साथ....
... कुछ मिठ्ठी याद.. और तेरा हाथ....
........................
...पदचिह्नों की टोह... ऐसे बैकल हुँ....
...बिसरा बैठा मैं... सारे होश हवास....
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

सुनो पार्टनर,
यह वक्त ही है जो हर एक को अलग अलग अहसास कराता है.. कभी मंजिल से दूर भटकाता है तो कभी भटके हुए राही को मंजिल दिखाता है और हम तो मुसाफिर है.. इसी समय की चाल के साथ कदमताल करते हुए चलते रहने की कोशिश भर करते है। एक और बात है कि यह वक्त ही तय करता है कि सफर में हमराही कौन होगा? कौन, कब, किस मोड़ पे साथ छोड़ जायेगा? यह सब केवल और केवल वक्त के हाथ में है।
और सुनो......
यह दिसम्बर की सर्दी है, गुलाबी से कुछ ज्यादा असर दिखाने लगी है.. सुबह उठकर रजाई से बाहर निकलता हूं तो सर्दी का असर मुंह पर ऐसे होता कि मुझे लगता है जैसे तुमने छु लिया हो अचानक से.. और मैं किसी ख्याल में खोया अचानक तंद्रा से जाग जाता हुँ.... हां...
ख्याल भी कुछ कुछ ऐसा था.........
शरद ऋतु के साथ ही समंदर भी अब शांत रहने लगा, मगर यह शांति कब तक रहनी है, यह शांति भी संकेत है आने वाले वक्त की, शायद आने वाले तुफान की....
वैसे यह सब छोड़ो!!!! तुम अपना ख्याल रखना.. इस शीत ऋतु के कारण तुम्हारे चेहरे चेहरे की रौनक फीकी न पड़ जायें.. शीत ऋतु की यह कठोरता तुम्हारी कोमल त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचा दें... यह सर्दी तुम्हारी आँखों की चमक फीकी न कर दें।
और सुनो जाना,
इधर यह वक्त की ही कारिगिरी है या कुछ और पता नहीं..... इस शांत समंदर के किनारे एक नाव देखी जो शायद छूटने को है... और हाँ!! कल रात ही मैनें सपने में ऐसी नाव देखी थी जो लोगों को अपनी मंजिल तक पहुंचाने का काम करती है, जब स्वप्न वाली बात को गौर से सोचा तो सामने पड़ी नाव के बारे में यही ख्याल बना कि शायद यह नाव मेरा ही इंतजार कर रही है, और अपनी मंजिल तक कौन नहीं पहुंचना चाहेगा??
मैं नाव की तरफ चल पड़ा... ज्यों-ज्यों पास गया तो स्वप्न की पूरी घटना दिमाग में और ज्यादा साफ होती गई.....
नाव खुद इशारा करके मुझे बुला रही थी.. और मैं फटाफट नाव में बैठ गया.... अब नाव रवाना होने वाली थी, और इस पर बैठने मात्र से ही मंजिल साफ दिखाई देने लगी थी.....
लंगर उठाया जाने लगा.....
अचानक मुझे ख्याल आया कि मंजिल तो मिल जायेगी मगर मैं वहां जाकर करूंगा क्या? बिन तुम्हारे वो मंजिल किस काम की।
हाँ......
सुनो पार्टनर!!!
मुझे नहीं चाहिए वो मंजिल, वहां अकेला क्या करूँगा। मंजिल मिलने की खुशी किसको बताऊंगा.... जब वहां मुझे सफलता के अलावा कुछ नहीं मिलना है तो वहां क्यों जाऊं? वो एकांत मुझसे सहा नहीं जायेगा....
और यह सोचकर मैं वापस नाव से कूद गया..
हाँ!!! जाना..... मैं यहीं, इन रास्तों पर ही भटकना चाहता हुँ, तुम्हारी तलाश में ही...
यहां कभी न कभी तुम्हारे आने की उम्मीद तो है.....
.............
मंजिल से जिंदगी का कोई मोह नहीं अब,
तेरे  सिवा दुनियां  से कोई चाह नहीं अब।
रास्तों में भटकते हुए इक उम्मीद है स्वर,
संगीत  में मेरे  तुझ सा साज नहीं अब।।
©®जाँगीड़ करन kk
12/01/2017__18:00pm

Tuesday 10 January 2017

बढ़ते जाओ

मेरी प्रीत
तुम्हारी
राह न रोकेगी,
अपने
लक्ष्य की ओर
तुम बढ़ते जाओ.......
.............................
बीच राह में
कोई
दरिया भी आयेगा,
मेरी हथेलियों का
पुल
चढ़ते जाओ........
.........................
गर्म रेत
झुलसायेगी
तुम्हारे पाँव,
मेरे आँसुओं से
तलवे
भिगोते जाओ......
.........................
आँधी या
तुफाँ से
घबरा न जाना,
बुलाना
करन को कि
अब तो आ जाओ......
.........................
© ® जाँगीड़ करन kk
10/01/2017__7:00AM

Sunday 8 January 2017

A letter to swar by music 18

Dear swar,
..................
"कुछ धुएं की फितरत है या नमी आँखों में,
सूरज की रोशनी भी मुझको चाँद सी लगे है।"
........................................
हां,
तो तुम्हें मेरा पिछला पत्र मिल गया है और तुमने बताया कि तुम्हारे शहर के दृश्यों से पत्र में वर्णित दृश्य काफी मिलते-जुलते हैं। अहा!!! मैं फिर तुम्हारे शहर की सैर कर आया मतलब?
मगर एक बात न मानती तुम, उन दृश्यों में खुद को नहीं देख पा रही हो? मगर क्यों?
मगर देखो ना!! मेरा पागल मन तो वहां तुम्हारे होने का अहसास कर रहा था। या शायद तुम झूठ बोल रही हो?
खैर छोड़ो!¡! तुम्हें पत्र अच्छा लगा जानकर बहुत खुशी हुई!!!
और अब आगे सुनो......
उस जगह पर ताल की ओर कुछ पदचिह्न दिखाई दिए मुझको, मैं तुम्हारे पदचिह्न ढूंढने की कोशिश करने लगा...  शायद तुम ताल के किनारे हो......
मगर शायद तुम वहां से जा चुकी थी, मगर तुम्हारी खुशबू वहां मौजूद थीं, तब भी....
और इस समय बहुत से पशु पक्षी ताल पर पानी पीने आयें हुए थे....
और तुम्हारी वो बकरियां भी पानी पीकर पहाड़ी की तरफ चलने लगी, तो तुम भी फिर फटाफट खेलना छोड़कर भागी...
शायद बकरियों की चिंता हो आई या मुझे देख कर शरमा के भागी। और ध्यान भी न रहा तुम्हें, अपना दुपट्टा झाड़ी में उलझा बैठी ना.... अब वापस आना ही था, मगर रुआंसी क्यों हुई जाती थी??
अच्छा!!!
दुपट्टा........ निकालें कौन?
अब एक नजर तुमने ताल की तरफ दौड़ाई, मैं समझ गया और भागा तुम्हारी तरफ।।
पर जानती हो ना हम भी ठहरे पक्के आवारा......... दुपट्टा छुड़ाकर साथ लिए चलते बने......
कानों में एक मिठ्ठी आवाज आई... अरे! दुपट्टा कहाँ लिए जाते हो ?
हम यही कह पायें.... तुमसे संभाला नहीं जाता, और हमारी मोहब्बत की निशानी है तो मेरे पास रहेगी।
तुम लगी चिल्लाने.... अरे!! मगर मैं घर ऐसे ही जाऊँगी क्या?
कह देना कि कोई आया था ले गया.... यहीं तो बोलना था ना!!
मगर!!! सुनो आशिक बाबू!! घरवाले डांटेंगे,  प्लीज दे दो...... लगभग रो ही देती!!
ओके!!! ले जाओ। मगर याद रहे, दुपट्टा भी हमारा दीवाना है, लौटकर वापस आयेगा.... हमने दुपट्टा हवा में लहराते हुए कहा था ना।।
.....................
और फिर तुमने दुपट्टा छीना, एक शर्मीली मुस्कान दिखाकर भागी.... मैं बस तुम्हें देखता ही रहा, जब तक की आँखों से ओझल नहीं हो गई।।
फिर मैं वापस ताल के पास आया, वहां पर गीली मिट्टी देखकर कुछ याद आया......
तुम्हें मालुम है ना इसी जगह पर हम गीली मिट्टी से घरौंदा बनाकर खेलते थे, गुड्डे गुडिया की शादी, सब याद है मुझे!!
वो घरौंदे और वो सपने कितने अच्छे थे, वो अपने ही मजे थे.... मगर समय की धारा सब बहा ले गई। न जानें कहां गए वो घरौंदे?
अब तो बनाता भी नहीं, मन भी नहीं करता, किसके लिए बनाउं? किसके सपने सजाउं?
कोई साथ हो तो उसे बताऊं!!
हां!! मैं सिर्फ उस ताल के किनारे बैठ कर अश्रु की दो बूंद गिरा आया... मेरी नम आंखों को ताल देख रहा था और मैं ताल का शांत पानी!!!  ताल का शांत पानी जैसे मुझे पुकार रहा हो, कि आओ ताकि मुझमें हलचल हो!
मगर मेरी जाना!!!!
अब वो हिम्मत, वो नटखटपन, वैसी नहीं रही, मैं अपनी मजबूर आँखों से मजबूर ताल को देखता ही रहा.........
न जानें कितनी देर तक!!!!!
और अचानक अलार्म की ध्वनि ने मेरी आंखें खोल दीं!!!
................
मगर सुनो जाना...
मैं कल फिर देखुंगा, युही ताल, झाड़ियां...... तुम दौड़ते हुए आओगी ना!!!!
..........
With love
Yours only
Music
08/01/2017____15:00 pm

Thursday 5 January 2017

A letter to swar by music 17

Dear swar,
..................
"All the parameters are failed to judge the real statistics of my heart, only the feeling of yours appearing make it blessings"
................
First of all missing you,
Some of my previous days were something different from the life, I feel the moments with my heart.
& I found that nothing is important then the purity of heart. You know it very well.........
............
Now listen...
As you know that today it's a special day for me, because it's my birthday today. Everyone think that it's a great day for me, & I should celebrate it. I have to organise a party for it.
Yaa......
I am also preset for it. I also love to enjoy this day, the great day of my life.
But the situation which is created by the time are too suspensive for me that I can't enjoy with heart.
Yaa my love....
The time is making me too serious to learn from the stones of the way of my life. Everytime I had a smile on my face to disclose the world, but no one is understand the reality.
Today I got so much wishes & blessings, also got gifts. Someone gave me a wonderful gift to me if you will watch out it, you will be surprised.
You know,
I can't describe about that right know...
Yaa.... My partner..
As the generation is right now going through the digital world, and I am also the part of it. I want to tell you that I got so many message of blessings & wishes on Facebook & WhatsApp. I got too affection from all my friends & relatives.
But steel my were were waiting for something,
The were gazing to the gate if the postman took your letter for me..
I was just smiling on every wish my friends but in heart steel feeling your absence..
.......
& A while when the new generation equipment Mobile phone make a message notification I quickly checked it.
I found there your wish....
Really now it's a complete birthday....
A complete music of life....
.............
Something for you now....
..............
The eyes of the heart,
Feeling the fience.
The cheeper of birds,
Making a suspence.
The yard of my home,
Feeling your absence.
Plz listen to come on,
SWAR is for urgence.
..............
With love....
Yours MUSIC

05/01/2016__17:00PM

Monday 2 January 2017

धुंध से परे

आसमाँ में हरियाली छाई अभी अभी।
तुमने चुनर अपनी लहराई अभी अभी।।

अब अपनी पलकों के दरवाजे खोल दो,
मुर्गे ने दूर ऊधर बांग लगाई अभी अभी।।

मौसम भी बड़ा बेईमान हुआ जाता है जाना,
क्या  तुमने  ली  है  अंगड़ाई  अभी  अभी।।

मैं छत पर सिर्फ इसलिए ही ठिठुरता रहा,
तुम  जैसी  कोई  नजर आई अभी अभी।।

हवा  में  यह  कैसी  धुंध फैली है यहां,
तुमने गीली जुल्फें छटकाई अभी अभी।

सूरज भी आज चाँद सरीखा लगे मुझको,
जैसे कि तुमने बिंदिया लगाई अभी अभी।

मन का  मयूरा भी  नाचे छन  छन अब तो,
तेरे पैंजन का स्वर दिया सुनाई अभी अभी।

कभी  तुम्हारे शहर  में भी  हम आयेंगे करन,
इन नजारों में तुम्हारी याद आई अभी अभी।।
©® जाँगीड़ करन kk
02/01/2017__06:00AM

A letter to swar by music 16

Dear SWAR,

"बस तारीखे और साल बदलते है
ज़िन्दगी की कशमकस मगर वही है | "
................
तुमने कल के अपने पत्र में कहा था कि आज में कविता ज़रूर लिखू मगर सुनो | मगर सुनो!! आज में कविता नहीं तुम्हारे पत्र का जवाब लिख रहा हु| और जवाब में पिछले दो दिन का अहसास लिख रहा हु | क्युकि इन दो दिनो को मैंने कुछ अलग अंदाज़ में जीने की कोशिश की है| हर तरह की विलासिता से दूर सिर्फ प्रकृति का स्नेह वो पल जो लोग सादियो पहले जीते थे| तुम्हे अंदाज़ा नहीं होगा कि में कितना सफल रहा हु| में जानता हु कई लोगों को इससे आपति हुई है मगर में ऐसा ही हु| कभी कभी यह ज़रूरी भी लगता है| खेर अब चिंता न करो में आ गया हु न तुम्हारे पत्र का जवाब लेकर| और इस पत्र में वही उन दिनों को बयां कर करूँगा|
में एक गाँव के दृश्यों की काल्पना में सिर्फ तुमको देख पता हु| में दृश्यों में तुम्हारी मोजुदगी दिखूंगा तूम अपने शहर में खुद को उन दृश्यों में महसूस करना, आनंद आएगा तुम्हे भी| तुम समझ रही हो न क्या कहना चाह रहा हु| हा || बस में जो लिख रहा हु उस हर पंक्ति में खुद को महसूस करना| जैसे कि ये सारी घटनाये तुम्हारे शहर में हुई हो|
हा तो सुनो पार्टनर!!!!!
सबसे पहले उस गाँव में मेने देखी बहुत सी हरी हरी झाडिया जो शायद कंटीली भी थी और मुझे झाड़ियों के बीच तुम भी दिखाई दी!! तुम ही थी न वो!!! हा!! मेरी जाना वो तुम ही थी में देख पा रहा था तुमको उन झाड़ियों के बीच अपनी सह्लियों संग अटखेलियाँ करते हुए| मेरी नजरें बार बार उन झाड़ियों की और जा रही थी इसका मतलब तुम वह था कि तुम ही थी वो| और तुम तो यह सोचो कि सर्दी के मौसम में भी बार पसीना पोछ रही थी जैसे कि यह गरमी का मौसम हो| तुम बार आकाश की तरफ देख रही थी शायद सूरज बाबा से कुछ शिकायत करने के मूड में थी| में तुम्हारी आवाज़ सुन रहा था तुम अपनी सहेलियों से कह रही थी की देखो कितनी गर्मी है| हा मेरी जाना !! में तुम्हें मह्सूस कर रहा था वहा तुम अपने दुपट्टे से बार हवा कर रही थी एक बारगी तो मन किया की में दोड़कर तुम्हारे पास आ जाऊ और तुम्हारे घुटनों को तकिया बनाकर सो जाऊ और तुम यु मेरे हवा करती रहो| हा !! तुम समझ रही हो न क्या कह रहा हु में|
पर में पहले तो सोच में पड गया कि तुम यहाँ क्या कर रही हो , लेकिन उसी समय पहाड़ी से उतरती हुई बकरियां नजर आई और में तुरंत समझ गया| अब आगे बताने कि ज़रूरत नहीं है क्यूंकि में कई बार पहले बता चूका हु यह तो |
हां तो !!! लापरवाह ग्वालिन!!
तुम अपनी बकरियों को सुना छोड़ कर यहाँ मजे कर रही हो|| है ना!! और उस समय तुम्हारी बकरिया उस ताल के पास आई थी पानी पीने||  उस समय ताल का दृश्य बहुत ही शानदार हो गया| तुम ज़रा पास आती ताल के तो क्या कहना था\| मगर तुम ठहरी अकडू तुमने आना तो छोडो आने की सोची भी नहीं| हा!! शायद तुम्हे मुझसे कुछ लाज सी आई होगी| इसलिए भी तुम नहीं आई| में समझ सकता हु||
ख़ैर सुनो!! वो दृश्य बड़ा ही मनोरम था में तुम्हारे ख्याल में खोया बकरियों के पीछे पीछे ताल के पानी के बिलकुल करीब चला गया और बकरियों के फोटो भी खीच लिए| और खुद के भी| तुम नहीं जानती की उस दृश्य को देख कर बहुत ख़ुशी हुई लगाकि प्रकृति ने सारा प्यार इस ताल पर लुटा दिया हो| में बस मंत्रमुग्ध होकर देखता ही रहा| न जाने कब बकरिया पानी पीकर चली गई पता ही नहीं चला|
और सुनो||
वह ताल में जहा पानी सूख गया था वहा पर जो हरी हरी काई थी वो अब सफ़ेद रेत के समान  हो गई है उस पर चलने का मजा ही कुछ और लगा| मैंने नीचे बैठकर उनको सहलाया तो ऐसे लगा जैसे की वो तुम्हारी जुल्फें हो| उसके रेशे एक दुसरे में ऐसे उलझे थे जैसे की तुम्हारी जुल्फें एक दुसरे में उलझी हो|| मैंने अपने हाथ से उन्हें सुलझाने की कोशिश की मगर सफल नहीं हुआ जानती हो क्यों ?
क्यूंकि तुमने कभी मुझे अपनी जुल्फें सुलझाने का भी मौका नहीं दिया ना|| बस उस सूखी काई पर बैठकर एक कल्पना की ऐसा लगा जैसे कि हम दोनों साथ बैठे है वहा पर|| एक दुसरे की अपनी उलझने बतिया रहे थे| वो उलझने जिससे हम दोनों आपस में एक दुसरे से उलझे बैठे है| तुम खुद को सुलझाने में व्यस्त हो यह भी ध्यान नहीं लगा रही कि इस सुलझाने के क्रम मेरे कितने रेशे टूटे है, मगर में!!! में तो उलझा रहना चाहता हु आज भी , कल भी, सालों बाद तक भी और जन्म जन्मान्तर तक भी|| और मेरी अभिलाषा यही उलझन है| में इस उलझन में खोना चाहता हु जैसे की इस काई के नीचे की गीली मिट्टी है , वो अब तक इसलिए इसलिए गीली है क्यूकि उस पर काई की उलझन साया बनकर छाई है!! तुम समझ रही हो न में क्या कह रहा हु || सुनो|| तुम मेरे प्यार की धरती पर यु काई सा बनकर छाई रहोगी न??
मुझे मालूम है जीवन में यह कदम बहुत मुश्किल है मगर असंभव तो नहीं है न!! ज़रा दिल से सोचना!! कभी फुरसत में फिर मुझे सोचकर देखना|| अपने शहर की आबोहवा में इस गाँव के दृश्य की कल्पना करके सोचना और साथ में इस दृश्य में हम दोनों को साथ देखना| तब सोच पाओगी ||
हा पार्टनर !!! तब तुम देख पाओगी मेरा वो संसार, वो संसार जो इस ताल की नैसर्गिक सुन्दरता जैसा है, जहाँ सबकुछ ज़िन्दगी के मुताबिक है , बस एक तुम्हारी कमी है.................................
और सुनो|| इन दो दिनों के उस गाँव के भ्रमण में और बहुत कुछ देखकर तुम्हे सोचा है, अगले पत्र में और लिखुंगा...

फिलहाल तो इतना ही......
with love yours
music
©® जाँगीड़ करन kk
01/01/2017____10:00PM

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...