जान हथेली पर लेकर चलें,
ऐसे वतन के रखवाले।
हर तकलीफ को यें झेलें,
ऐसे वतन के रखवाले।।
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सीना तान के चलते जायें,
एक कदम न पीछे हटायें,
कभी न अपनी पीठ दिखायें,
ऐसे वतन के रखवाले।।
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बर्फ की ऊँची दीवारों में,
साहस समंदर किनारों में,
कभी रेत के धोरों में,
ऐसे वतन के रखवाले।।
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ठिठुरती है जमाने वाली,
रेत भी होती है जलाने वाली,
करते हैं फिर भी रातें काली,
ऐसे वतन के रखवाले।।
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सीना छलनी छलनी होता,
फिर भी साहस कम नहीं होता,
नाम वतन का जुबां पर होता,
ऐसे वतन के रखवाले।।
©® जाँगीड़ करन kk
25/01/2017__7:30AM
और मैं, मेरी चिंता न कर मैं तो कर्ण हुँ हारकर भी अमर होना जानता हुँ
Wednesday 25 January 2017
ऐसे वतन के रखवाले
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