Monday 2 January 2017

धुंध से परे

आसमाँ में हरियाली छाई अभी अभी।
तुमने चुनर अपनी लहराई अभी अभी।।

अब अपनी पलकों के दरवाजे खोल दो,
मुर्गे ने दूर ऊधर बांग लगाई अभी अभी।।

मौसम भी बड़ा बेईमान हुआ जाता है जाना,
क्या  तुमने  ली  है  अंगड़ाई  अभी  अभी।।

मैं छत पर सिर्फ इसलिए ही ठिठुरता रहा,
तुम  जैसी  कोई  नजर आई अभी अभी।।

हवा  में  यह  कैसी  धुंध फैली है यहां,
तुमने गीली जुल्फें छटकाई अभी अभी।

सूरज भी आज चाँद सरीखा लगे मुझको,
जैसे कि तुमने बिंदिया लगाई अभी अभी।

मन का  मयूरा भी  नाचे छन  छन अब तो,
तेरे पैंजन का स्वर दिया सुनाई अभी अभी।

कभी  तुम्हारे शहर  में भी  हम आयेंगे करन,
इन नजारों में तुम्हारी याद आई अभी अभी।।
©® जाँगीड़ करन kk
02/01/2017__06:00AM

No comments:

Post a Comment

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...