Wednesday 28 September 2016

समर्पण

खुद से  कब  का हार चुका हुँ,
खुद  को खुद  से  हर चुका हुँ।

हर शख्स  में  जिंदा रहता हुँ,
खुद में  कब  का मर चुका हुँ।

तुफान से बेखबर मैं नाविक हुँ,
हाथ में पतवार को धर चुका हुँ।

तुम मुस्कान ही देख पा रहे हो ना,
आँख में आसुँओं को मार चुका हुँ।

खुशियों का गुलदस्ताँ तुम ही रख लो,
मैं गम से अपना दामन भर चुका हुँ।

और भला क्या चाहिये 'करन' तुमको,
मैं  स्वर भी  तो अर्पण  कर  चुका  हुँ।
©®जाँगीड़ करन
28.09.2016....20:40PM
फोटो -- साभार गुगल

Tuesday 27 September 2016

तीन दौहे(गौरी)

गौरी  तेरे  नैन  से,  ऐसे  निकले  तीर।
मैं जो आया राह में, मन यह हुआ अधीर।

आओगे  जब  अँगना, दुँगा  नैन बिछाय।
मिलने को बैताब है, दिल भी धड़के नाय।।

तुम बिन तो यह जिंदगी, लगे धधकती आग।
कैसे  तुमको  बतलायें, तुम बिन सुना फाग।
©®जाँगीड़ करन
फोटो - साभार गुगल

Sunday 25 September 2016

मुस्कुराहते हुए चल

अपनी पलकों में मीठे सपने बसाते हुए चल,
चाँद तारों से गहरी रात को सजाते हुए चल।

हैरान न हो कि  आस्तीन  के साँप  है यहाँ,
अपने  दम से तु  इनको  बजाते हुए चल।

लो वक्त ने फिर कोई आवाज दी है मुझको,
होठों पर तराना मोहब्बत का गाते हुए चल।

नफरत की आग में इंसाँ जला रहा खुद को,
घने  बादल  प्रेम के  तु  बरसाते  हुए चल।

राह में मुश्किलें तो हर पल आनी है करन,
करके सामना तु इनसे मुस्कुराते हुए चल।
©® जाँगीड़ करन KK
25/09/2016__16:00PM

Sunday 18 September 2016

मेरे खत के जवाब में

मेरे खत को पढ़ कर के मुस्कुरा रहे हो ना,
किस तरह मिलुँगा तुमसे शरमा रहे हो ना।

मन बहका बहका सा मेरा हर पल रहता है,
आँखों के प्याले से तुम पिला रहे हो ना।

तुमको तो मालुम है कि मैं क्या क्या सुनुँ,
कँगन झुमका कब से खनखना रहे हो ना।

ये ही काफी हो जायेगा कत्ल को मेरे तो,
मगर फिर भी जुल्फें गीली लहरा रहे हो ना।

तुम्हें ख्याल भी है कि तुम बिन उदास करन,
मगर दूर रहकर के तुम मुझे सता रहे हो ना।

©® जाँगीड़ करन KK
18/09/2016_8:00AM

Wednesday 14 September 2016

A letter to swar by music 10

DEAR SWAR,
.......................
First of all missing you a lot, I can't tell in words that how much I am feeling alone without you...
............

मुझे मालुम है कि जिंदगी ठहरती नहीं किसी के इंतजार में, मुझे यह भी पता है छोड़ दें दुनियाँ  सारी किसी के लिये, मुनासिब नहीं ये आदमी के लिये.....
मगर कोई बात तो है जो यह जहाँ नहीं जानता,
कोई बात है जो दिल के किसी कौने में अब भी सिसकती है,
कोई बात है जो लब पर आती तो है मगर कोई सुन नहीं पाता,
कोई बात है जो आँखों से टपक पड़ती है जब अँधेरे में चाँद को ढुँढ रहा होता हुँ मैं,
हाँ तन्हा रात की कोई कहानी फिर भी....
हाँ समंदर की मोजों में रवानी फिर भी....
तुम बिन न जिंदगी है सुहानी फिर भी....
बिन ख्वाब के इसे है बितानी फिर भी.....
...........!!!!!............
जिंदगी की राह पर तुमने देखा होगा कि मस्ती का दीवाना मैं किसी परवाह किये बगैर कैसा चलता रहा था, तुमने देखा था कि मैं सिर्फ जिंदगी को हँसते हुए मुस्कुराहते हुए गुजारना चाह रहा था.... न मैं वक्त की परवाह करता था न दुनियाँ की, बस हर एक से मुलाकात में हँसीं, हर एक से दोस्ती, न कोई गिला किसी से न कोई शिकवा..... मैं हुँ संगीत... और हमेशा बजते रहने के मूड में ही रहा था...... कभी राह में अकेले चलता भी ख्याल इतना सा आता है कि कोई पंछी दाना चुग रहा है, कितना खूबसुरत नजारा, प्रकृति अपने रूप पर इठलाती हुई, राह में आये छोटे छोटे पत्थरों को ठोकर मारते हुए मस्ती में झूमता गाता रहता था, तुमने देखा और समझा भी है कि मैं "freebird's freedom" जिंदगी जी रहा था।।
फिर तुम न जानें हवा के किस झौकें सी आई, और जिंदगी के मेरे सारे ख्यालात बदल डालें, मेरे अरमान बदल डालें, मेरा नजरिया बदल डाला, मैं अब हर चीज में देख रहा था तुमको, मेरी आँखें चारों तरफ सिर्फ तुमको देखती थी, मेरे कान हर वक्त तेरी आवाज सुनते थे, और मन....
मन का तो न पूछो तुम्हारे ख्यालों से फुर्सत ही न थी इसे(अरे !! यह तो अब भी तुम्हारे ही ख्यालों में डुबा रहता है), जिंदगी तुमने कैसे बदल के रख दी थी...... ऐसा महसूस हो
रहा था इससे पहले कि जिंदगी सिर्फ साँसों का आवागमन था, तुम्हारे साथ ने जिंदगी के मायने बदल दियें।
मैं तुम्हारे साथ जीने के सपने बुनता, वो सपने जिनमें बसाना चाहता था असीम प्यार, असीम अहसास..... हाँ मेरी जान!! तुम्हारे संग ताउम्र रिश्ते की बुनियाद सोच रखी थी मैनें, तुमसे जिंदगी की अंतिम श्वास तक की मोहब्बत का मैं वादा खुद से किया करता था, हम जब साथ रहेंगे ये करेंगे, जब तुम रूठ जाओगी कभी तो मैं ऐसे मनाऊँगा, कभी तुम्हारे संग में लुका छिपी का खेल खेलुँगा, कभी किसी सुनसान राह पर साथ साथ चलते हुए कोई गीत साथ साथ गुनगुनायेंगे। हाँ तुम जान लो.... बहुत कुछ सोचता रहा हुँ, अब भी सोचता हुँ।।।
वक्त से आगे की...
तुम जानती हो ना!!! जब तुम आई थी जिंदगी में तो मेरा मन में कितनी उमंग जगी थी, तुमने महसूस किया होगा, मैं खुद को बहुत खुशनसीब समझता था......
तुम्हारे ख्याल में बैठकर लिखता था तुम्हें लफ़्जों में.......
....................
कि चाँद जमीं पर है तो हैरान आसमाँ है,
अमावस की रात ऊधर भी चाँदनी क्यों है।
..................
कहीं खुशबुओं से भरे गुलशन से गुजरा हो जैसे,
तेरे महकते हौंठ कोई गुलाब की पंखुड़ी हो जैसे।
...........
कहीं दूर कोई कान लगायें चुपके से सुन रहा है,
तुम मुझे गीत मोहब्बत का जो सुना रही हो कब से।
..............
तो देखो!!! मेरी जान!! मैं जानता हुँ समय सबसे ज्यादा बलवान है, न मैं बदल सकता हुँ न तुम... और समय की इस चाल में तुम भी फँसें तो मैं भी.. और अक्सर सुना भी है मोहब्बत वालों को सिर्फ जुदाई नसीब होती है..... मुझे मालुम था कि यह होना है मगर मैं जीना चाहता रहा हुँ संग तेरे ही...
पर जो समय है वो कब किसको छोड़ता है अपने चंगुल से तुम मजबूर हुई और मैं तन्हा... इस कहानी का अब कोई अंत न रहा.. रही तो सिर्फ यादें!! वो तमाम किस्से जो कभी हम तुम बयाँ कर न सकें, वो पल जो हम जी कर भी जी न सकें...
हाँ मेरी जान..... मैं वक्त के इस खेल को भी समझता हुँ, स्वीकार भी करता हुँ कि होना वहीं हो जो वक्त चाहेगा...
तुम न आ सकोगी मिलने... है ना!! हाँ मगर! तुम्हारी याद तो आ जाती है हर पल! मंडराती रहती है पास में मेरे, मैं कभी उससे पूछता हुँ, तेरी हालत!! मगर वो मुस्कुरा भर देती है, और कल फिर आऊँगी कहकर न जानें कहाँ चली जाती है, और यह सिलसिला कब से चल रहा है लगातार, और चलता रहेगा....
तुम्हारे आ जाने तक या मेरी अंतिम श्वास तक....
तुम हैरान न हो जाना.. मैं वक्त से लड़ सकता हुँ, अपनी आखिरी श्वास तक.. मैं जानता हुँ कि वक्त ने हम दोनों को जुदा किया, और इस वक्त से जीतना न तेरे बस में है न मेरे बस में। फिर भी लड़ रहा हुँ और लड़ुँगा।। हाँ मैं जरूर लड़ुँगा, एक न एक दिन तुम्हें अहसास हो जायेगा और तुम वक्त की काराएँ तोड़ कर, दौड़कर चली आओगी... और मुझे गले लगाओगी... जानती हो न स्वर तुम्हारे बिन इस संगीत का अस्तित्व नहीं... तुम आना मेरे लफ़्ज को अपनी आवाज देने...।।।
लेकिन यह सब एक कल्पना है, जाने वाला कब लौटकर आता है, और लौटकर आने की आशा भी हो तो कब तलक लौटकर आयें... शायद तुम आओ तब तुम्हें गले लगाने को मैं रहुँ न रहुँ....... खैर...
वक्त के गर्भ है कि कौन कब तलक किस मोड़ से रास्ता समझेगा?
यह तुम भी जानती हो मैं भी..........
तुम्हारी याद में बैठे बैठे तुम्हारे लिये मैं कुछ लिखता रहता हुँ.. न जानें तुम कब पढ़ोगी इन्हें......
.............................
गुलशन में खिलें फुल से भी सुगंध जाती रही,
तेरे जाने सो रौनक ए बहार भी जाती रही।
............................
किसी दौर में कोई मुलाकात,
शायद आखिरी थी,
तेरी जुस्तजुँ की वो रात,
शायद आखिरी थी।
...................
तुम्हें तन्हाई का अहसास नहीं है ना.....
.....
कब तुम देख पायें हो तन्हा चाँद को,
बनके ध्रुव तारा सदा महफिल में रहे तुम तो।
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किसी रात से पूछ लेना मेरे वक्त की कहानी,
अँधेरा खुद हैरान है मेरी आँखों में झाँककर।
.....................
सोचोगे तुम भी मुझको कभी न कभी,
मैं तो हर पल तुम्हें ही सोचता रहा हुँ।
...............
जिस राह की मंजिल जो न हो,
मैं उस राह पर तन्हा चलने लगा हुँ।
................
खुद से रूबरूँ होना अब ग्वारा है मुझको,
चिड़िया के परों में ऊलझी मेरी दास्ताँ है।
.................
कभी देखना तन्हा रात में चाँद को,
तुम्हें मेरी आँखों का हश्र नजर आयेगा।
................
कभी तुम्हें भी इंतजार रहेगा मेरी जाँ देखना,
शहर ए मोहब्बत में तन्हा तुम भी हो जाओगे।
।।।।।।।।
तो!!! तुम समझो!!! नजाकत को!! एक बार दिल से सोचकर देखना.....
हाँ.... मेरी जान... जरा झाँककर तो देखो...
।।।
तुम्हारे इंतजार में
तुम्हारा
Music
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©® जाँगीड़ करन KK

Thursday 8 September 2016

ये रही जिंदगी

केश की लटों में,
कानों की बालियों में,
रही ऊलझती जिंदगी।

सुर्ख लाल होठों पर,
तीखे नैन से,
रही फिसलती जिंदगी।

चूनर के पल्लु सी,
कमर के चहुँ ओर,
रही लिपटती जिंदगी।

चुड़ियों से सजी,
कोमल सी हथेली,
रही चूमती जिंदगी।

ख्वाब में जो सुना,
स्वर उस पेंजन का,
रही खनकती जिदगी।
©® Karan dc
08/09/2016_10:00AM

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...