Sunday 31 December 2017

नया साल मुबारक हो

मैं
पल की गिनती
नहीं करता
बल्कि
हर पल में
आई
तेरी याद को गिनता हूं।
.......
मैं
मिनटों की गिनती
नहीं करता
बल्कि
हर मिनट में
धड़कनों की
बढ़ती
तादाद गिनता हूं।
..........
मैं
घंटों की गिनती भी
नहीं करता
बल्कि
हर घंटे हवाओं के
बदलते
रुख को गिनता हूं।
............
मैं
दिन या रात की
गिनती
नहीं करता
बल्कि
हर दिन के
साथ
बढ़ती
मेरी बैचेनियों को
गिनता हूं।
............
मैं
किसी सप्ताह की
भी
गिनती नहीं करता
गिनता हूं तो
सप्ताह भर के
तेरे अहसासों को
जो तुमने भी कैद
कर रखें है
दिल के
किसी कोने में।
............
मैं
महीनों की
गिनती नहीं करता
बस
हर महीने के
तुम्हारे नाम
के पन्नों पर से
तुम्हारा नाम
गिनता हूं या
आंखों में आई
तेरी सूरत
के
परिणाम गिनता हूं।
..........
मैं
साल भी नहीं गिनता
साल भर में
उड़ते परिंदों के
परों से
आती ठंडी हवा
की आवृत्ति
गिनता हूं
या किसी परिंदे के
नहाने से उछली
पानी की बूंदें गिन
लेता हूं।
............
बस
गिनता हूं तो
मैं
दशक
गिनता हूं
कि
अगले दशक में
तुम शायद
गिन पाओ
मेरी अहसास
मेरी धड़कन की आवृत्ति
मेरे आंखों में बसी तेरी तस्वीर
के रंग भी
मेरी जूबान पर
आये तुम्हारे नामों को
गिन पाओगी
उन तमाम
किस्सों को
जो तुम बिन बस
अधुरे हैं......
हां,
मेरी जान
मैं साल नहीं गिनता
मगर तुम
साल नया मुबारक हो।

©® जांगिड़ करन kk
31_12_2017____17:00PM

Thursday 28 December 2017

Alone boy 26

हर
दोपहर
जिंदगी जाने
कितने
ख्वाब बदलती है।

ज्यूं सुबह से
घटती है
परछाई,
ख्वाबों की
भी किस्मत
घटती सी
लगती है,
दिल में
कुछ
बैचेनी सी
लगती है,
आंखों में
इक
उदासी सी
छलकती है.....
ठीक दोपहर में
ख्वाबों की
परछाई लुप्त
प्राय सी
हो जाती है.. ‌
जैसे कि
सांस
अभी
थमने वाली हो....
मगर,
कहीं से
एक कतरा
उम्मीद
कुछ दिखाती है,
परछाई की
दिशा
दूसरी ओर
बननी
शुरू हुई है अब...
जिंदगी उस
ओर
दौड़ पड़ती है
उसी ख्वाब के साथ......
सांझ की परवाह
किए बिना,
पर सांझ पर
फिर
परछाई जानें
कहां खो
जाती है,
मगर
उदासी नहीं
अब
चेहरे पर,
रात चांदनी हो
तो
परछाई बना लेती है
जिंदगी,
और
अंधेरी भी
हो तो
बंद आंखों की
परछाईं में
ख्वाब देख लेती है कोई....
शायद
नियती से
वाकिफ हैं जिंदगी...

©® Karan kk
28_12_2017___05:00 AM

Friday 15 December 2017

दीदार तेरा

फीके से चांद को दीदार तेरा,
तारों भरी रात को इंतजार तेरा।

फूल  खुशबू  से भरे  हैं  मगर,
बगिया  में   है  रुखसार तेरा।

नदी की  कल कल कम  है क्या,
छम छम पायल से जो करार तेरा।

काजल बिंदिया झूम के गजरा,
कातिलाना   है  श्रृंगार  तेरा।

आंगन खिड़की रसोई सूना करन,
बतला दो कब होगा इकरार तेरा।
©® जांगिड़ करन kk
15_12_2017__21:30PM


फोटो साभार गुगल

Wednesday 13 December 2017

A letter to swar by music 42

Dear swar,
..
...
....
A steam of cold water just passed away through my hair, I just dreamed of your hand....
...........
इधर देखो तो सर्दी का मौसम अपने रुख को साफ दिखा रहा है कि वो सामने आने वाले हर व्यक्ति या वस्तु पर अपना असर छोड़ कर ही दम लेगी.....
सुबह सुबह तो सड़क भी इतनी ठिठुरी हुई होती है कि हमारे चलने से उत्पन्न ऊष्मा से खुद का सेंक करती है, पेड़ पौधें भी ठिठुरन के कारण दुबके हुए रहते हैं अपनी पत्तियों को नहीं फैलाते हैं बस इंतजार करते हैं कि कोई आये और पत्तों पर ठहरे ठंड पानी को झटक दें या जल्दी से धूप निकले ताकि पानी सूख सकें।
इस ठिठुरन में भी एक बात तो तुमने देखी होगी इन पेड़ पौधों की, ये अपने फूलों के अलग अलग रंगों और खुशबू से लोगों के जीवन में खुशियां भरते हैं........
लोग जब इन फूलों को देखते है तो अपने जीवन की तकलीफों को भूल जाते हैं!!
...........
अब आते हैं खास मुद्दे पर; कल रात को एक ख्वाब देखा मैंने।
हां, हंसो मत.....
अब क्या ख्वाब भी नहीं देख सकता मैं, हमेशा से यही तो करता आया हूं मैं.... उस समय से जब से मैं समझने लगा कि कुछ बातें सिर्फ ख्वाबो में पूरी होती है हकीकत में तो पूरा होना शायद संभव नहीं......
हां, वो सब तो छोड़ो.....
बस ख्वाब सुनो,
हां तो, क्या हुआ कि मैं आया था तुम्हारे घर!!
हां, शाम के वक्त....
लगभग 5 बजे......
हल्की हल्की ठंड थी मैं तुम्हारे घर में नीम के पेड़ के बैठ गया था ........ उसी चेयर पर जिस पर बैठ कर तुम हमेशा नीम की छाया में अपने बाल सुलझाया करती हो, जिस चेयर पर बैठ कर कभी तुम विडियो कॉल किया करती थी और उसी चेयर पर बैठ कर मैंने कई दफा तुम्हारे हाथ की बनी दमदार चाय.....
हां, मुझे मालूम था कि तुम अभी बकरियां लेकर नहीं लौटी हो, तुम्हारे आने में अभी वक्त था इसलिए मैं वहीं बैठ कर तुम्हारे आने का इंतजार करने लगा.......
वहां बैठे बैठे मैं तुम्हारे घर के हर कोने का मुआयना करने लगा......
मालूम तो मुझे पहले से था कि किस तरफ क्या है पर फिर भी...….. एक कोने में खाखरे(पलाश) की पत्तियों का ढेर लगा हुआ था हां, खाखरे की पत्तियां बकरियों का सबसे पसंदीदा खाना जो है.... तुम्हें बताया नहीं था कभी पर पहले एक बार जब मैं तुम्हारे घर आया था तब ना ऐसा हुआ कि तुम तो कहीं पड़ोस में गई हुई थी... उधर घर के एक कोने से बकरियों के द्वारा खाखरे की पत्तियां खाने की आवाज आ रही थी मुझे यूं लगा कि जैसे उस तरफ़ तुम हो और अपने पाजेब बजा रही हो..... मैं उस तरफ जाकर तुम्हें पुकारने लगा था पर वहां तो........
और देखो,
घर के एक कोने से बकरियों के बच्चों की आवाज आ रही थी, अपनी मां का इंतजार कर रहे थे वो भी , भूख लगी थी उन्हें, दूसरा तुम भी तो वहां नहीं थी तो कौन खेलता उनके साथ.......... उन्हें बिल्कुल मालूम था कि तुम्हारे आने का समय हो गया है तो बोल बोल कर जाहिर कर रहे थे या तुम्हारा स्वागत कर रहे थे।
.......... और फिर, बकरियों के बच्चों की आवाज तनिक बदल सी गई, मैं समझ नहीं पाया था कि क्या हुआ इनको, तभी सामने तुम और तुम्हारे पीछे पीछे बकरियों का झूंड आ गया......
मैं तो तैयार था कि तुम आओगी पर तुम्हें अंदाजा न था कि इस वक्त मैं वहां हो सकता था.....
लिहाजा तुम चौंक सी गई......
अपनी ओढ़नी के पल्लू को यूं देखने और व्यवस्थित करने लगी कि जैसे अभी अभी हवा का तेज झोंका आया हो.....
और,
मैं तो वहीं......
तुम्हारी चंचलता देख रहा था हर बार की तरह ही; वहीं गुलाबी गाल, वहीं बड़ी बड़ी आंखें, कमर से नीचे तक लटकी हुई चोटी........
ओढ़नी को ठीक करने में तुमने कितनी फुर्ती दिखाई; क्योंकि तुम्हें फिर बकरियों को भी संभालना था, मम्मी के डांटने का डर था ना!!!!!!
खैर, तुम उसी फुर्ती से पीछे बाड़े की ओर भाग गई!
और जाने बकरियों के संग खेलने लग गई शायद......................
............
तभी बाहर गर्जन की आवाज हुई और मेरी नींद जग गई, बाहर आकर देखा तो बरसात के छीटें पड़ रहे हैं.....
टीन शेड के बाहर हाथ फैला कर बारिश की ठंडी बूंदों का अहसास किया...... और फिर यह सोचकर सो गया कि शायद ख्वाब आगे और कुछ बतायेगा.....
मगर तब न नींद आई न ही आंखें बंद हुईं.....
अंधेरे कमरे में आंखें कल्पना के कागज़ पर बस तेरी यादों के लफ्ज़ लिख रही थी और सुबह होने का इंतजार भी.....
कि कब तुम्हें इसके बारे में लिखूं....
.......
अब सुनो,
तुम्हें मालूम है कि सर्दी बढ़ गई है अपना ख्याल रखना!!!
.....
नित पल्लव के नूतन रूप से,
जिंदगी संवार लूं।
अगर वक्त पहरा न दें तो,
राहें निहार लूं।।।।
........
हर बात की कोई बात हो जब यहां,
बैचेन दिल की चाहत हो तब यहां।
ये जुल्फें लाली ये लटकें झटकें,
आंखें कहती दिखेगी ये कब यहां।।
......
Just love you
.....
Yours
Music

©® Karan kk
13_12_2017___18:00PM

Friday 1 December 2017

आई जो तुम

अल सुबह
मेरे घर के
आँगन में
यह चहकना कैसा?

कि तुमने
भूल से
मेरे घर का
रुख किया
या
तुम्हारे सपनों में
मैं भी आया था कहीं?

कि तुमने
जिद की
कोई
इंतिहा की
या
दिल में
पनपा है कोई
प्यार फिर से?

कि
वक्त की कसौटी
पर पसारे है पंख
या
कच्ची उड़ान से
मेरा मन
बहलाने का
इरादा तुम्हारा?

पल भर में
सपने अनगिनत मेरी आंखों में
आये
मैंने खुद उन्हें बुना था
या
तेरी चहचहाहट यहां
इन्हें खींचकर ले आई?

©® जांगिड़ करन kk
1-12-2017____10:00AM

फोटो सुबह आंगन में आ बैठी चिड़िया को पहले रोटी का टुकड़ा डालकर खुद ने खींचा, क्योंकि शब्द निर्माण हो रहे थे उसी वक्त.... 😍😍😍😍😍😍

Tuesday 7 November 2017

सफर जिंदगी का

जिंदगी,
कि जैसे बनाती है
बैलेंस
दो पाटों के बीच....
कि हर कदम पर
रखती है ख्याल
कोई आहत न हो....

जिंदगी,
करती है इंतजार
स्टेशन का
कि कोई खुशी वहां से
चुरा ले
कि अपनी झलक से मुस्कान
बिखेर दें....

जिंदगी,
देखकर सिग्नल बदलती है
अपनी पटरी
हां! मुश्किल है ज़रा,
पर,
उम्मीद पर
खरी उतरती है जिंदगी..

जिंदगी,
कभी कभी युही
रूक जाती है,
किसी और को
जानें का इशारा भर
करती है
जिंदगी.......

जिंदगी,
हर मोड़ पर
अपनी अदाओं से
लहराती
बलखाती
सरपट भागती है
जिंदगी......

जिंदगी,
चलती है धड़धड़ाती सी
बेखोफ
इक मुस्कान लिए
जानती है सफर
बस यहीं पे
आने जाने का है....

जिंदगी,
बस हर स्टेशन
आवाज़ देती है उसको
कि
जैसे वो
इंतजार कर रही हो
उसका....

जिंदगी,
मासूम है,
तपकर भी
जलकर भी
घिसटकर भी चलती है
मगर
चलती है जिंदगी......

©® Karan KK
07/11/2017___9:00AM

Thursday 2 November 2017

a letter to daughter by father

डिअर बिटिया,
कल तुम्हारा ख़त मिला, तब से मन में कुछ बैचेनी सी हो रही है| तुमने यह तो लिखा कि तुम खुश हो मगर साथ ही कुछ सवाल ऐसे किये जो सोचने पे मजबूर कर देते है कि क्या वाकई कही कुछ गलत हुआ है मुझसे ?
ऐसा लगा जैसे मैंने तुम्हे अनसुना किया हो कही पे!मगर सुनो,
में तुम्हे उस समय देख चूका था जब मैंने पहली बार तुम्हारी मम्मी को रूटीन चेकअप के लिए ले गया था और डॉक्टर ने सोनोग्राफी करके कहा कि लड़की है ! डॉक्टर ने यह भी कहा था कि एबॉर्शन कर दूंगा में बहुत कम फीस में, तुम न समझो पर मैंने मेरे उस मित्र डॉक्टर से उस दिन क बाद कभी बात या मुलाकात नहीं की|
में तुम्हे तब से जनता हु जब तुमने अपनी माँ की कौख में पहली दफा अपनी लात मरी थी हा बिटिया मैंने अहसास किया था उस समय भी......
तुम्हे मालूम हो न हो में बता दू जब तुम्हारा जन्म हुआ तब में 5 दिन पहले से ऑफिस नहीं गया था सिर्फ इसलिए कि मुझे तुम्हारे आने का इंतज़ार था|
और तुम्हे बता दू कि तुम्हारे आते ही मैंने सबसे पहले तुम्हे ही गौद में लिया यह भी भूल गया था कि तुम्हारी माँ भी वहा थी जो इस इंतज़ार में थी कि में उससे भी कुछ बात करु, पर में तुम्हारे आने कि ख़ुशी में ही पागल हुए जा रहा था......
और सुनो बिटिया,
जब तुम 1 साल कि थी न उस समय में तुम्हे एक दिन ऑफिस ले गया अपने वहा पे मैंने तुम्हे जब गौद में लिया तब तुमने सुसु कर दी मेरी शर्ट पर, जानती हो पूरा ऑफिस मुझपे हँसा पर में तो बस तुम्हे देखकर मुस्कुरा रहा था.....
तुह्मारी स्कूल के पहले दिन जब में तुम्हे छोड़ने आया तब मैंने टीचर से बस एक ही बात कही थी जब भी इसका मूड न हो या परेशान करे मुझे बुला लेना में लेने आ जाऊंगा|
सुनो बिटिया रानी,
मैंने तुम्हारी हर वो जिद पूरी करने की कोशिश की है जो मुझसे पूरी हो सकी| चाहे वो कपडे लाने हो या स्पोर्ट्स शूज या कही सहेलियों के साथ घुमने जाना था या आगे पढने की, जैसा तुमने कहा वैसा ही किया था मैंने, इन जरूरतों को पूरी करते करते में तुम्हारी मम्मी की सारी जरूरतों को पूरी नहीं कर पाया था| मेरी नोकरी की सेलरी थी ही कितनी जो में और ज्यादा कुछ कर पाता , हां एक बार तो तुम्हारी कॉलेज फीस भरने के लिए तुम्हारी मम्मी ने अपने सोने के कंगन भी बेच दिए थे में वो कंगन वापस नहीं दे पाया हू आज तक भी और तुम्हारी मम्मी ने भी कभी वापस मांगे भी नहीं.........
सुनो,
मैंने हर तरह से तुम्हारी हर इच्छा पूरी करने की कोशिश की है पर अब आज जब तुम्हारी शिकायत पढ़ी तो लगता है कही न कही मेरी ही परवरिश में कोई कमी रह गई है वरना मेरे से इस तरह तुह्मारा विश्वास नहो उठता|
तुम इस तरह अपने पिता को उलाहना नही देती|
लेकिन सुनो,
जिस दिन तुमने फेसबुक चलाना शुरू किया न उसी दिन से में तुमपे नजर रखे हुए हु, तुम्हारी हर गतिविधि पे मेरी नजर रही है, तुम्हारे व्हात्सप्प के सारे मेसेज मेरे पास भी आते है में तुम्हारी हर एक हरकत को बहुत गहरे से देख रहा था,
अब तुम सोच रही होगी कि जब सब मालूम था ही तो फिर मुझसे छुपाया क्यों ?
सब जानते हुए उल्टा क्यों किया ?
हा,
मैंने सबकुछ किया लेकिन में यही कर सकता था उस समय.....
तुम्हे अब क्या बताऊ ?
तुम्हारे relationship with का मैंने बहुत गहराई से पड़ताल करवाई,
सुनो बिटिया ,
तुम उसके घर नहीं गई पर मैंने अपनी तरफ से उसके घर के हालात जानने की कोशिश की है , तुम्हे बता दू कि वहां के हालात ऐसे नहीं है जैसे कि वो तुम्हे सपने दिखाया करता था|
सिर्फ पैसे की बात नहीं है उस घर का माहौल भी ऐसा नहीं था कि में अपनी बेटी को उस घर में भेजने की सोच सकूं|
मैंने हर एंगल से उस फॅमिली को देखा है, तुम कभी वहा खुश नहीं रह पाती| तुम जो यह सोच रही हो कि मैंने सिर्फ अपनी इज्ज़त के लिए ही बड़े परिवार में शादी तुम्हारी शादी करवाई है, लेकिन ऐसा नहीं है एक पिता के भी तो सपने होते है न कि उसकी बिटिया हमेशा सुखी रहे किसी बात की कोई कमी नहीं हो, रानी बनकर रहे बस तुम्हारी ख़ुशी के लिए ही मैंने यह कदम उठाया था........
फिर भी मैंने कोई गलत किया हो तो तुम बिटिया हो मेरी बचपन में भी नाक भी ही लात मारा करती थी और आकर मार दो एक.........
लिखने को बहुत कुछ है पर अभी बस दिल भर्रा गया है और नहीं लिख पाउँगा फिर कभी......
बस यही कहूँगा.....
सबको अपने व्यवहार से खुश रखो तुम्हे भी ख़ुशी मिलेगी.....
तुम्हारी की तरफ से ढेर सारा प्यार,

सस्नेह
तुम्हारे पिता......

Sunday 22 October 2017

A letter to father by innocent child 2

Dear बाबुल,
कैसे हो आप?
हां, आप सोचेंगे कि यह भी कोई पूछने की बात है पर क्या करूं?
पूछना तो है ही ना, मुझे तो यह जानना है ना कि कैसे रह लेते हैं वहां आप हमारे बिन!
हां, बाबुल!!
आज से दो साल पहले मैंने दीपावली के दिन ही ख़त लिखा था पर आज तक जवाब नहीं आया आपका, मैं बैचेन होकर फिर से यह खत लिखने बैठ गया हूं।
आखिर आपने क्यों कोई जवाब नहीं दिया मेरे ख़त का?
इतने बदल से गए हो आप वहां जाकर?
या बहुत व्यस्तता रहती है?
जो भी हो,
पर इस खत को पढ़कर जवाब जरूर देना।
.......
सुनो बाबुल,
आपको बताया था ना पिछले ख़त में कि मैं थकने सा लगा हूं पर हिम्मत नहीं हारता,
चलते रहने की कोशिश करता रहूंगा।
देखिए उसी स्थिति (उससे और बदतर) के होते हुए भी दो साल तक चुपचाप पीड़ा सहता आया हूं.....
मगर अब यह असहनीय सा लगता है।
पता नहीं क्या मगर अंदर कुछ टूटता हुआ सा महसूस होता है,
मन उदास सा रहता है......
........
सुनो बाबुल,
इधर दीपावली पर चारों तरफ आतीशबाजी हो रही थी, दियों की रोशनी से गांव जगमगा रहा था, कहीं घरों पर लाइटिंग की गई थी, लोग तरह तरह की मिठाईयां लायें थे, पटाखों की गूंज दूर दूर तक सुनाई दे रही थी, लोगों के चेहरे पर खुशी साफ जाहिर हो रही थी, एक दूसरे को गले मिल बधाई दें रहे थे..............
मगर मैं बेबस होकर बस देख रहा था, दीपावली की यह खुशी मेरे लिए लिए नहीं है शायद,
इस जगमगाते माहौल के बीच मेरे दिल के किसी कौने में अंधकार सा छाया हुआ है,
यह दियों की रोशनी, ये जगमगाती लाइट्स, ये आतिशबाजी कोई भी उस जगह उजाला नहीं कर पाता है बाबुल....
सूरज की रोशनी भी वहां जाने से कतराती हैं शायद कि उस अंधकार में उसका खुद का वजूद न मिट जायें....
यह कोई एक दिन की बात नहीं है...
मैं हर रोज इसे महसूस करता हूं तब भी जब लोग मेरी किसी बात पर खिलखिलाते है क्योंकि मैं खुद कहता हूं कि The show must go on.
मैं हरदम मुस्कुराता हूं बाबा,
आंखों का पानी तो मैं कब का मार चुका हूं बस यह दिल में अंधकार है उसका कोई उपाय नहीं दिखता.....
डर एक बात का है कि यह अंधकार कहीं मेरी सोच के आगे न आ जाएं, कहीं यह अंधकार किसी और के जीवन पर भारी न पड़ जाएं.....
और सुनो बाबुल,
मैंने आज तक कोशिश की है कि जो आप चाहते थे वो करूं, वैसा ही बनूं!!
मैं पूरी ताकत से लगा हुआ हूं मगर कुछ बिखरता सा दिखता है मुझे यहां आंगन में,
कुछ मुरझाया सा लगता है वो फूल भी जो बस सात रंग की पंखुड़ियों से मिलकर बना है, मैंने बहुत कोशिश की है प्रेम का पानी, इज्जत का खाद, सुविधाओं की मिट्टी मगर....
मगर फूल फिर भी मुरझाया जाता है,
मैं अनुभव की हवा नहीं दे पाया हूं शायद... लाऊं कहा से?
कहीं पड़ा मिलता तो नहीं..
यह मुरझाता फूल बहुत तकलीफ़ देता है बाबा, मैं तो हरदम इसकी सुगंध चाहता था पर?
खैर,
आप भी क्या करो!!!
सुनो बाबा,
मैं ना फिर वही जिंदगी चाहता हूं, मैं फिर वही बचपन चाहता हूं, मैं फिर से दीपावली पर जलायें पटाखों से अधजले पटाखे ढूंढकर फोड़ने के लिए बेताब हूं,
मैं फिर से दीपावली पर बनी लापसी और चावल खाना चाहता हूं, मैं फिर से दीपावली की अगली सुबह जल्दी उठकर दिये इकट्ठे करना चाहता हूं ताकि तराजू बना सकूं.....
आप समझ रहे हैं ना,
मैं कोई जिद नहीं करूंगा वहां,
न नये कपड़ों की,
न नये जूतों की,
मैं स्कूल यूनिफॉर्म भी तीन चार साल तक चला लूंगा ना, मैं अपनी पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दूंगा....
पर.....
वो वक्त कहां लौटता है वो,
सुनो बाबा,
मैं हर उस आहट से जागता हूं कि शायद आप काम से लौट आये है, पर घड़ी बता रही होती है उस समय कि सुबह के 6 बजे है.....
और मैं,
सब भूलकर फिर भागने में लगता हूं बस एक ही बात दिमाग में रहती है कि शाम को फिर घर लौटना है....
.......
बाबा,
मैं हारने वालों में से नहीं हूं, पर बस कहीं उलझ कर रह गया हूं....
........
दियों के तराजू से चली जिंदगी,
ATM के शिकंजों में आ फँसी है।
दिनों दिन यें आंखें भी शुकुन के,
इंतजार में ही धँसी है।
........
हां,
सुनो बाबा,
मैं हर चेहरे पर खुशी देखना चाहता हूं, इसलिए अक्सर जोकर की तरह ही पेश आता हूं, नहीं दिखाता कि मेरे अंदर क्या चल रहा है......
बस एक लाइन कहता हूं...
The show must go on..
...
आपका
करन

19_10_2017____23:00PM

Wednesday 18 October 2017

A letter to swar by music 41

DEaR SwAr,
..............
नीम तले यह गहरी छाँव,
याद आ रहा तेरा गांव.......
.............
सीढ़ियों से उतरते चाँद को,
नज़रों से देखूं कि दिल से।
.............
यूं बार बार अपनी जुल्फों को छेड़ा न कर,
हम घायल तेरी नज़रों और कोई जुल्म न कर।
.............
सुनो स्वर,
सबसे पहले तो दीपावली के त्यौहार की अग्रिम शुभकामनाएं......
हां, तुम कहो न कहो पर मुझे पता है कि तुम आजकल बहुत बिजी रहती होगी, दीपावली की साफ सफाई, कॉलेज, स्कूल भी जाना.....
हां, तुम हमेशा की तरह ही मेरा यह खत भी नहीं पढ़ने वाली हो... जैसे ही तुम्हें खत मिला और तुम इसे तोड़ मरोड़ कर कचरे में डाल देने वाली हो... मगर, मैं तो तुम्हें लिखूंगा... मेरा तो यह जरूरी काम बन गया है ना जैसे कि श्वास लेना जरूरी है..
.......
हां तो सुनो,
मैं अभी बैठा था एक नीम के पेड़ की छांव में.....
अचानक से एक पता उपर से टूटकर कर चेहरे पर आकर गिरा, अब तुम सोचोगी कि यह तो कोई नई बात नहीं हुई क्योंकि पत्ते है तो उनको टूट कर गिरना ही है।
मगर,
मैं उस पत्ते को हाथ में लेकर कहीं दूर तुम्हारे ख्यालों के गांव में खो गया...
मुलाकातोंं के उस दौर में जहां चांद सीढ़ियों से उतरता था, जहां बादल सिर्फ नीम की छांव तले बिखरते थे, जहां बारिश ने गर्मी की तपती दुपहरी में भी सुकुन दिया था मुझको, जहां खुशबू मतलब कि बस......
कुछ तुम्हें भी याद आया होगा....
सीढ़ियां हां,
गिनती मुझे याद है अब भी उनकी पांच ही है ना शायद, हाथ में चाय के कप की ट्रे, पांच सीढ़ियां पांच मिनट.... क्या फुतीं थी ना...
अरे!! यह वाली चाय आपके लिए नहीं, फीकी थी ना... हां, एक कप और लाऊं?
मैं इस ड्रेस में कैसी लग रही हूं?
वो ड्रैस अच्छी थी कि यह?
अब का बताता कि ड्रेस तुम्हारे लिए है तो फिर?.......
खैर,
नीम!!!!!
हां!!! तुम अक्सर मुझे तुम्हारे आंगन वाले उस नीम के पेड़ के आसपास नजर आती थी ना,
कभी अपनी बहिन संग झूला झुलते,
कभी पकड़म पकड़ाई,
कभी उसी छांव तले होमवर्क में बिजी!!
तुम्हें याद है ना.....
एक बार तो मैं आया था अंदर तो तुम्हें इसका ध्यान ही नहीं था और झुला इतनी जोर से दरवाज़े की तरफ आया कि तुम्हारा दुपट्टा सीधे मेरे मुंह पर आया और वही उलझ कर रह गया...
और.....
आगे मैं क्या कहूं....
वक्त की सीनाज़ोरी न हो फिर से तुम्हें...........
दुपट्टा अपने हाथ से ओढ़ाना(मैं दुपट्टे में ओढ़नी देखता हूं जान) चाहता हूं, वैसे ही झूला झूलते हुए, वैसे ही झूले की रस्सी को पकड़कर, वैसे ही झूले की लकड़ी पर खड़े होकर......
मैं उस वक्त पता नहीं क्या सोचता रहा होगा, दुपट्टा ओढ़ाऊं कि बिखेरती जुल्फ़ों से खुशबू चुराऊं,
बादलों को कोई संदेश सुनाऊं या खुद को बारिश की तरह भिगो दूं....
तुम तो तब भी हैरान थी,
अब भी हो....
खैर,
तुमने उस दिन पता है ना नीम के पत्तों पर मेरा नाम लिखा था ओर मुझसे पूछा था कि कौन-सा सबसे अच्छा है।
अरे!! तुम्हें क्या बताता मैं कि तुम्हारा लिखा मेरा नाम अपने आप में लाजवाब है।
और........
देखो ना,
इस पत्ते ने मेरे चेहरे पर गिर कर मुझे फिर से वही पल याद दिलायें है,
मैंने उस पत्ते को गौर से देखा था कहीं तुमने तो नाम लिखकर नहीं भेजा पर वहां कोई नाम नहीं था
मैंने नीम नीचे गिरे हरेक पत्ते को हाथ में लेकर देखा पर किसी पत्ते पर नाम नहीं था... मैं भी कितना पागल हूं ना यह नीम का पेड़ अलग है वो तो तुम्हारे आंगन में है!!
और फिर.....
फिर मैं वहीं बैठ कर तुम्हें लिख रहा हूं कि...
अब मैं तुम्हें आने की नहीं कह रहा हूं दिल में जिस दिन लगे स्वागत है तुम्हारा!! दरवाजे अंतिम श्वास तक भी तुम्हारे लिए खुले रहेंगे।.....
हां,
मगर मैं आ रहा हूं फिर से,
बस झूला तैयार रखना,
दुपट्टा वहीं रखना....
सुन रहे हो ना......
.......
दीपोत्सव की ढेर सारी शुभकामनाओं और एक लवली बाइट के साथ
Yours
Music

©® जांगिड़ करन KK
18_10_2017___7:00AM

Some photographs are borrowed from Google with due thanks

Sunday 8 October 2017

A letter to swar by music 40

Dear swar,
........
चांद को तुम ढूंढती रहो आसमां में,
मैं तो तुम्हें देखता हूं मन की नजरों से।
........
कुछ बात तो है कि चांद झांक रहा है,
तुम्हें सताने का इरादा उसका भी नहीं।
.........
बेशक दुरियां जमाने भर की है मगर,
मेरे दिल में बसा चांद आज भी है।।।
..........
सुनो,
आज मैं तुम्हारे नाम से उन तमाम भारतीय नारियों को अपने पति या प्रेमी की ओर से इस खत के माध्यम से एक संदेश देना चाहता हूं.... संदेश क्या जो मैं अपने आसपास देखता हूं महसूस करता हूं वही सब खत में बयान करने जा रहा हूं....
इस खत में "स्वर" का संबोधन सभी महिलाओं के लिए है और भेजने वाले"संगीत" वो प्रेमी या पति जो वाकई दिल से अपने प्रेम को निभाते हैं......
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सुनो स्वर,
सबसे पहले तो तुम्हें आज करवा चौथ की दिल की अतल गहराई से हार्दिक शुभकामनाएं...
मुझे मालूम है कि तुम मुझसे कितना प्रेम करती हो, इस प्रेम का ऋण शायद मैं नहीं चुका सकता... हां, अपने लफ़्ज़ों में तुम्हें बयां करने की कोशिश कर सकता हूं......
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मुकम्मल मेरा हर एक पल तुमसे हुआ है,
मकान बनाया मैंने पर घर तुमसे हुआ है।
मैं कहीं भटकता फिरता आवारा था शायद,
जिंदगी का सही रास्ता हासिल तुमसे हुआ है।।
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तो सुनो,
एक तो मैं बचपन से ऐसा था कि मुझे यूं लगता था कि मेरा क्या होने वाला है?
मैं जिस तरह से लापरवाह था तो ऐसा लगता कि हर जगह मुझे संभालने के लिए कौन तैयार रहेगा?
जिंदगी की घनी धूप में झुलसते पांवों को नमी कौन देगा?
मैं जब काम पर चला जाऊंगा तो पीछे मेरे बुढ़े मां बाप की देखभाल कौन करेगा?
कौन मेरे परदेश से लौटने का इंतजार करेगा?
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और फिर,
वक्त के इस चक्र में तुमसे मुलाकात हुई!
मुझे अच्छी तरह से याद नहीं कि हम पहली बार कहां मिले? या कब मिलें? रिश्तों के गठबंधन के बाद ही मिलें या पहले?......
पर,
जब भी मिले मन में एक आशंका जरूर थी!
क्या तुम मेरे साथ निभा पाओगी?
क्या तुम्हें मेरी अव्यवस्थित सी जिंदगी रास आयेगी?
क्या तुम मेरे सपनों को समझकर मेरा साथ दे पाओगी?
क्या तुम मेरी जिंदगी के पन्नों पर प्यार का इकरनामा लिख पाओगी?
सारी शंकाओं को मन में लिए.....
जिंदगी के उस मोड़ पर मैंने तुम्हारे साथ आगे के सफर की तैयारी की... शंका हो या न हो चलना तो था।
सुनो जिंदगी,
(हां, तुम जिंदगी बन गई थी कारण तुम खुद ही देख लो आगे)
मगर तुमने आते ही मेरी जिंदगी के हर ख्वाब की राह आसान कर दी, मन की हर शंका का समाधान कर दिया, मैं तो बस सांस लें रहा था तुमने आकर असली मायने में जिंदगी की तरन्नूम बताई।
तुम्हें याद हो न हो मैं बताऊं तुम्हें आकर सबसे पहले तो मेरी अव्यवस्थित सी जिंदगी को सुव्यवस्थित करने का काम किया.....
मेरी दैनिक जीवन की हर एक समस्या को तुमने दूर किया...
सुबह उठने से पहले चाय नाश्ता तैयार करना,
मुझे अच्छी तरह से याद है बाथरूम में गर्म पानी और टॉवेल मेरे पहुंचने से पहले तैयार मिलना,
लंच बॉक्स समय पर तैयार वो इस हिदायत के साथ कि समय पर खा लेना,
शाम को घर पहुंचते ही चाय तैयार,
बैग, ड्रैस जूते सब व्यवस्थित....
और सबसे बड़ी मेरी चिंता थी कि आने वाली लड़की कैसी होगी? क्या मेरे बुढ़े मां बाप को साथ रखने पर राजी होगी?
मगर,
तुमने यह साबित कर दिया कि मेरी शंका निराधार थी!
मैं ऑफिस भी बेफिक्र होकर जाने लगा था.....
उस समय से लेकर आज तक तुमने मेरे और मेरे परिवार के लिए जो किया है ना.....
वाकई.... क्या कहूं अब?
बस तुमने दिल जीत लिया....
और सुनो,
तुम्हारी एक खासियत....
कम से कम डिमांड, तुम्हें मालूम था और अब भी है कि मैं ऑफिस से जो पेमेंट लाता हूं उससे घर कैसे मैनेज करना है? तुमने बताया था शुरू शुरू में कि तुम्हें बचपन से गहनों का बहुत शौक रहा है...
मैं चिंतित था कि तुम्हारी ख्वाहिश कैसे पुरी करूंगा?
पर.....
पर तुमने अपने आपको किस तरह मेरे घर के अनुरूप ढाल लिया...
न कोई एक्स्ट्रा डिमांड.. जो मिला उसी में संतुष्ट..
मैं तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी नहीं कर सका फिर तुम्हारे चेहरे पर हरदम मुस्कान ही रही....
सुनो जान,
इस सबके लिए दिल से थेंकु।
और हां,
जिंदगी के सफर में तुम मेरे लिए जैसे पांवों का मरहम बनकर आई...
मेरे तप्त ललाट पर तुम बर्फ का सेक बनी हर बार ही,
जिंदगी की धूप में छांव की तरह साथ रही हो तुम...
और मैं,
तुम्हें कुछ नहीं दें सका आज तक भी....
बस...
तुम्हारे लिए दो शब्द हर ही,
और आज भी
यहीं कर रहा हूं मैं...
तुम बहुत सुंदर हो...
तुम बहुत अच्छी हो....
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तुम आज मेरी लंबी उम्र के लिए व्रत रख रही हो मेरी तो एक प्रार्थना है कि मैं जब रहूं तुम साथ रहो...
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Dil se
Love you Jaan
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With love
Yours
Music(संगीत)

©® जांगिड़ करन kk
08_10_2017__18:00PM

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...