Tuesday 7 November 2017

सफर जिंदगी का

जिंदगी,
कि जैसे बनाती है
बैलेंस
दो पाटों के बीच....
कि हर कदम पर
रखती है ख्याल
कोई आहत न हो....

जिंदगी,
करती है इंतजार
स्टेशन का
कि कोई खुशी वहां से
चुरा ले
कि अपनी झलक से मुस्कान
बिखेर दें....

जिंदगी,
देखकर सिग्नल बदलती है
अपनी पटरी
हां! मुश्किल है ज़रा,
पर,
उम्मीद पर
खरी उतरती है जिंदगी..

जिंदगी,
कभी कभी युही
रूक जाती है,
किसी और को
जानें का इशारा भर
करती है
जिंदगी.......

जिंदगी,
हर मोड़ पर
अपनी अदाओं से
लहराती
बलखाती
सरपट भागती है
जिंदगी......

जिंदगी,
चलती है धड़धड़ाती सी
बेखोफ
इक मुस्कान लिए
जानती है सफर
बस यहीं पे
आने जाने का है....

जिंदगी,
बस हर स्टेशन
आवाज़ देती है उसको
कि
जैसे वो
इंतजार कर रही हो
उसका....

जिंदगी,
मासूम है,
तपकर भी
जलकर भी
घिसटकर भी चलती है
मगर
चलती है जिंदगी......

©® Karan KK
07/11/2017___9:00AM

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