Friday 29 September 2017

A letter to swar by music 38

Dear swar,
.......
बरसात का दौर थम सा गया है, और उधर खेतों में फसल भी पकने को आई है तो खेत खाली किए जा रहे हैं, नदी के पानी में भी ठहराव सा आ गया है, मौसम भी थोड़ा समझ से परे है बिल्कुल तुम्हारी तरह ही, क्योंकि ठंड और गर्मी का मिश्रण सा है अभी तो बीमार होने की आशंकाएं भी ज़्यादा है, और फिर उजड़ा हुआ चेहरा, सुखे होंठ, सूझा हुआ नाक सबकुछ बड़ा अटपटा सा लगता है....
और उधर सूने होते खेत जैसे मेरे सपने उड़ा कर ले गया कोई, जैसे कि दिल बस खाली खाली सा कर गया कोई, नदी का जो पानी ठहरा तो लगा जिंदगी ठहर सी गई है और ठहरा पानी हो या जिंदगी..... जानती हो ना अच्छा नहीं लगता।
पर करें भी तो क्या?
नदी को बहते रहने के लिए बरसात की जरूरत है और मुझे चलते रहने के लिए.....
हां, तुम्हारी!!
अब बोलो आगे अकेला चलकर कहां जाऊं?
क्यों जाऊं?
किसके लिए जाऊं?
मगर.....
देखो मैं......... मुझे अहम नहीं है कि मैं बार बार खुद को दिखाता हूं कि मैं हुं,
पर मैं.. मुझे कुछ बातों का यकीन अब भी है,
रास्तों की हकीकत कुछ भी हो ख्वाबों में फूल खिलाना मेरी फितरत में है तो है....
और तुम तो हर उस ख्वाब में साथ रही जब कभी भी मैंने देखा हो......
बात ख्वाबों की है....
चाहें जागते देखूं या नींद में.....
अरे हां....
कल रात एक ख्वाब देखा,
मतलब कि आया...
अरे हां बाबा जो भी हो समझ तो गई ना......
तो सुनो.....
ख्वाब भी क्या ख्वाब था....
हम तुम अनजान थे बिल्कुल भी, न मुझे मालूम था कि तुम करता सोचती हो न तुम्हें मालूम था कि मैं किस तरह का इंसान हूं... एक दिन किसी कारणवश मैं तुम्हारे शहर में आया, बाजार से कुछ सामान लेना था शायद... उधर तुम भी अपनी मम्मी के साथ शॉपिंग(हां, तुम्हारी भाषा में यहीं बोलते हैं ना) करने आई हुई थी.....
मुझे शुरू से ही आईसक्रीम बहुत पसंद हैं तो मैं तो मौका देखता कि कब शहर हो आऊं ताकि आईसक्रीम खाने का मौका मिल सकें....
तो हुआ यूं कि उस दिन में जैसे ही आईसक्रीम पार्लर में घुसा तो एक लड़की ( यानि तुम) को आईसक्रीम वाले से बहस करते सुना, पर क्या बहस थी यार, और बहस की वजह सिर्फ छोटी सी थी आईसक्रीम खाने की चम्मच और कप प्लास्टिक के थे, और तुम एक ही रट लगाए थी इनसे शरीर को नुकसान कितना होता है.. एकबारगी तो मैंने भी सोचा कि कहीं तुम कोई ऑफिसर तो नहीं हो जो इस तरह उस दुकानदार से बात कर रही थी.... लेकिन बाद में पता चला कि तुम तो उस शहर की वासी हो और रोज ही उस दुकानदार से बहस करती हो कि ये कप और चम्मच बदल दो... और रोज आईसक्रीम तो खाकर ही जाती हो..... माजरा समझ से परे था... पर मुझे क्या?
मुझे तो आईसक्रीम खानी थी तो जाकर एक कुर्सी पर बैठ गया......
पर?
पर यह क्या?
तुम अचानक उधर से दौड़कर आई और बोली, "ओये मिस्टर! यह टेबल मेरी है?"
मैं तो बोलता भी क्या तुम्हें देखता रहा आगे तुमने क्या क्या कहां मालूम नहीं, पर जब तुमने अपने हाथ से मेरी आंखों के सामने चुटकी बजाई तो तंद्रा टूटी..... पर पता नहीं क्या हुआ कि मैं उठ ही नहीं पाया!
और तुम थोड़ी देर खड़ी रहकर कुछ बोली मुझे तो लास्ट में इतना सा सुनाई दिया idiot कहीं का....
फिर दुसरी टेबल पर जाकर मम्मी के साथ बैठ गई....
और चुपचाप आईसक्रीम खाने लगी मेरी नज़र अब भी तुम पे थी......
और वो दुकानदार तुमसे कुछ कह रहा था वो मुझे भी जानता था क्योंकि मैं अक्सर यहां आईसक्रीम खाने आता रहता हूं....
फिर....
तुम लोग तो आईसक्रीम खाकर चलें गये....
मैंने आईसक्रीम खाकर पैसे देने चाहें तो दुकानदार बोला कि पैसे तो वो देकर चली गई...
(अब यह ड्रामा समझ से परे लगा अचानक)
पर जल्द ही समझ आ गया क्योंकि दुकानदार ने बताया कि उसने आप लोगों को बताया कि मैं भी आईसक्रीम का बहुत शौकीन हूं और दुसरा जांगिड़ हूं.... मतलब तुम ने मेजबानी कर ली.....
वो भी बिना किसी जान पहचान के...
अजीब लगा... पर करता भी क्या?
कहां ढूंढता?
..............
सुनो,
मेरी नींद उड़ गई (घरवालों ने उठा दिया मुझे और आईसक्रीम की बजाय चाय पी)....
पर सुबह ही चेहरा वही....
टेबल भी...
हां,
कप प्लास्टिक का नहीं स्टील का गिलास है....
........
वो तो एक ख्वाब था नींद का.... जागते हुए भी तो मैंने हर पल तेरे ही ख्वाब देखें है!
पर!
ख्वाब तो ख्वाब होते हैं कहां पूरे होते हैं....
बस एक पंक्ति याद आ रही है....
....
रास्ते अजनबी नहीं मगर,
पैरों में थकान सी है.
तेरे शहर में आयें या नहीं,
धड़कन भी हैरान सी है।
......
बस....
दिल कहता है खुश रहना...
....
With love
Yours
Music

©® जांगिड़ करन kk
29_09_2017____11:00AM

Tuesday 19 September 2017

A letter to swar by music 37

Dear swar,
........
Happy birthday...
हां, तुम्हारा जन्मदिन भला हम कैसे भूल सकते हैं तुम भी जानती ही हो...
दिल से आज भी एक ही दुआ है कि जहां हो खुश रहो मस्त रहो.......
अब सुनो.......
आज से ठीक 21 साल पहले 20 सितंबर को उन परमात्मा को भी चैन की नींद आई होगी, ऐसा हुआ होगा कि जैसे वो घोड़े बेचकर सो गए....... ओके सॉरी!!
हां,
आज मैं तुम्हें कुछ नहीं कहुंगा बल्कि अपने अतीत को यहां दिखाऊंगा....
हर पत्र से पंक्तियां उठाकर यहां डाल रहा हूं....
......
कभी कभी युँ लगता है कि यह जीवन ही बेकार है, पर जब तुम्हारी प्यारी मुस्कान याद आती है तो हर दुख दर्द भूल जाता हुँ। फिर से चलने लगता हुँ समय की गति के साथ। न जानें किन खुशियों की तलाश में चलता हुँ,
बस इतना पता है कि चलता हुँ।(पहला पत्र)
(
.....
उस वक्त जब मैं तुम्हें देख रहा था तो मुझे ऐसा लगा कि दो तुम दूर से मुझसे ही मिलने आ रही हो।
मैंने जब तुम्हारे बकरी के बच्चे को पकड़ा तब तक तुम पास आ चुकी थी।
फूली हुई सांस, बिखरी हुई जुल्फें, माथे पर पसीना,बहुत कमाल की लग रही थी ना तुम!
मैं तो बस देखता ही रह गया तुम्हें!!(दुसरा पत्र)
(
......
आज काफी दिनों के बाद मैं अपने खेतों की तरफ गया था। हाँ। वो भी पैदल पैदल। पर फर्क था कि आज मैं अकेला था। इन तन्हा राहों में अकेला जा रहा था । तुम्हारे ही ख्याल में खोया खोया। रास्ते में अचानक कहीं से एक पतंग आई और झाड़ में उलझ गई। और पीछे एक बच्चा दौड़कर आया, कहने लगा कि भैया मेरी पतंग छुड़ा दो ना! पता है मैनें पतंग उतार दी लेकिन उस दौरान मेरी उंगली में काँटा चुभ गया था और खून की दो बूँद गिर गई।(तीसरा पत्र)
(
.......
और तुमने इनबॉक्स में न जाने क्या क्या भेजा है! सारा अंग्रेजी में!!
वह क्या है ना कि मैं हिंदी भाषी हूं। समझ तो आ गया है पर जवाब हम हिंदी में ही देते हैं।

किसी कवि की पंक्ति में संसोधन के साथ यह रहा जवाब----
मैं हिंदी भाषी खत हूं प्रिये,
तुम इंग्लिश का ईमेल प्रिये।
मैं गाँव का सादा सा इंसान,
तुम हो शहरी फिमेल प्रिये।
मुश्किल है अपना मैल प्रिये,
यह प्यार नहीं है खेल प्रिये।। (चौथा पत्र)
(
........
हाँ!! क्या अब भी तुम बालों को बनाने में उतना ही वक्त लगाती हो?
वो हेयर पिन को एक बार मुँह में पकड़कर फिर ही बालों में लगाती हो ना!!
या भूल गई वैसा सबकुछ!!!
हाँ मुझे सब याद है अब भी!!!
स्कूल लेट हो जाना!!
मालुम है ना????
मैं भी कितना पागल हुँ ना क्या क्या लेकर बैठ गया। पर क्या करूँ यार!!याद आ जाते हैं वो दिन।।
बस मैं बैठकर याद करता हुँ उन दिनों को, कितने आँसु बहा दिये पर यें यादें धुँधली ही नहीं होती,
लगता है कि जैसे कल की ही बात हो!!(पांचवां पत्र)
(
........
मैं आज भी कहीं भी होऊँ तुम्हें सोचता हुँ, तुम्हें ही जीता हुँ, कभी तो तुम अपनी मजबुरियों से ऊपर ऊठकर सोचोगी!
।।।।।।
अपना ख्याल रखना, खासकर उस उस ऊँगली का जिसे सामने करके तुम स्टाइल मारती थी........ ओय्य्य्य!!! (छठा पत्र)
(
........
क्या तुम अब भी युहीं अपनी साड़ी के पल्लु को अँगुली में रख कर दाँतों से काटती हो?
ह ह ह ह ह.....
अरे.....
मैं भी ना!!! कितना पागल हुँ.....
अच्छा अपना ख्याल रखना और हाँ खत का जवाब जरूर देना......
तुम्हारे इंतजार में कुछ पंक्तियाँ लिखी है, देखो कैसी बनी है............
जिंदगी की जगह में,
तुम मिली इक बंजारन
कितने मील चलोगे राही,
संग तुम्हारे चलुँ मैं हरदम।।

प्रीत की राहें पकड़ी हमने,
कभी न सोचा क्या होगा?
तुमने हाथ छुड़ाया अपना,
मुश्किल अब चलना होगा!!

मजबुरी में गिरकर तुमने,
किया था ना मुझसे किनारा।
इक आस लिये तुम्हें पुकारे,
वीरान राहों पर बंजारा।।(सातवां पत्र)
(
.....
हाँ मैं हर बार की तरह ही तुम्हें यहीं कहता रहा हुँ, और आगे कहुँगा कि हो सकें तो लौट के आ जाओ, हर एक तान तुम बिन अधुरी है, लफ़्ज भी परेशान से है तुम बिन, यह सावन का टपकता पानी भी बहुत चुभता है मुझे तुम बिन, और सुनो क्योंकि मौसम ही ऐसा है कि हर तरफ से तुम्हारे संगीत की ही आवाज आती रहती है तो मैं बेबस ही सही पर खो जाता हुँ इसमें, भरी आँखों से मुस्कुरा लेता हुँ एक बार तो , पर अगले ही पल उदासी छा ही जाती है,
सुनो ना तुम लौट आओ..... (आठवां पत्र)
(
.......
अब यहाँ मैं तुम्हारी राधा हुँ, विरहण राधा, तुम मेरे कृष्ण, जानता हुँ कि तुम्हें रुक्मण और भामा मिल जायेगी, पर मैं अब भी तुम्हारी राह ताकता रहता हुँ, कभी तो तुम बाँसुरी की धुन सुनाने आओगे जरूर...
हाँ मगर एक बात का ख्याल रखना, मैं जादुगर नहीं हुँ, ना ही राधा सी नटखट अदायें, चंचलता आदि है। पर मैं तुम्हें दिल से प्रेम करता हुँ, सदैव तेरे संग रहना चाहता हुँ... तुम न जानें क्या सोचती हो... मगर मेरा तो मन करता है कि मैं अभी तुम्हारे शहर आ जाऊँ और तुम्हारे कॉलेज के गेट पर खड़ा रहुँ, बस तुम्हारे आने के इंतजार में। मुझे मालुम है उस दिन तुम कॉलेज नहीं आओगी, तुम अब क्या चाहती हो यह तो नहीं पता मगर एक बात है तुम अब भी महसूस कर लेती हो ना मुझे कि मैं तुम्हारे शहर में आया हुँ। हाँ तो... देखो।। कभी आकर देखो.... हम वापस उस बगिया में जायेंगे जहाँ हम दोनों हो और चिड़िया की चहचाहट!(नवां पत्र)
(
........
तुम जानती हो ना!!! जब तुम आई थी जिंदगी में तो मेरा मन में कितनी उमंग जगी थी, तुमने महसूस किया होगा, मैं खुद को बहुत खुशनसीब समझता था......
तुम्हारे ख्याल में बैठकर लिखता था तुम्हें लफ़्जों में.......
....................
कि चाँद जमीं पर है तो हैरान आसमाँ है,
अमावस की रात ऊधर भी चाँदनी क्यों है।
..................
कहीं खुशबुओं से भरे गुलशन से गुजरा हो जैसे,
तेरे महकते हौंठ कोई गुलाब की पंखुड़ी हो जैसे।
...........
कहीं दूर कोई कान लगायें चुपके से सुन रहा है,
तुम मुझे गीत मोहब्बत का जो सुना रही हो कब से। (दसवां पत्थर)
(
........
तुम होती तो ऐसा होता...... तुम होती तो ऑफिस पहुँचने के कुछ देर बाद ही फोन करती और पुछती कि कैसे हो?
अरे!!! अभी तो तुम्हारे सामने से आया हुँ!! मगर तुम तो तुम हो ना!! तुम्हारा प्यार ही पूछने को मजबूर करता है ना तुम्हें...
और तुम फोन पर एक हिदायत जरूर देती कि खबरदार!!! जो अपने हिस्से का खाना ऑफिस में किसी को खिलाया तो और खिलाना हो तो बोल देना मैं एक्स्ट्रा चपाती रख दुँगी......(ग्यारहवां पत्र)
(
..........
खैर... सुनो!! हम भी यहाँ दीपावली की सफाई में जुटे है.. दो तीन दिन से... कहते है कि साफ सफाई अच्छी हो तो लक्ष्मी जी जल्दी आयेंगे.. पर मुझे तुम(सरस्वती पुत्री) चाहिये... और तुम भी वैसे हमें खुश देखकर और साफ सफाई देखकर ही तो आओगी ना...... चलो यह तो मैं बाद में और लिखता हुँ, पहले एक बात सुनो।।।
साफ सफाई के दौरान मुझे एक किताब मिली जिसमें कुछ कहानियाँ है तो उसमें से एक छोटी सी कहानी तुम्हें सुनाता हुँ..
(बारहवां पत्र)
(इसमें लिखी कहानी स्वयं हमने ही लिखी है)
(
......
और सुनो ग्वालिन!!
तुम्हारे उधर अमरूद के पेड़ बहुत है और अब अमरूद पकने शुरू हो गये है, तो तुम जानती हो ना मैं कहने वाला हुँ, हाँ!!!! वहीं.... पिछली बार की तरह।।पिछले साल के तुम्हारे हाथ से तोड़े हुए अमरूदों का स्वाद तो अब भी जहन में, तुम्हें पता है कच्चे क्या और क्या पक्के मैं तो सब के सब चट कर गया!! ह ह ह ह ह ह ह ह ह।।
हाँ यार!!! तुम्हारे हाथ का जादु ही है जो खत से खुशबु आती है, मैं बिन पढ़े यह महसूस कर सकता हुँ कि अंदर क्या लिखा होगा!!
और हाँ हमेशा की तरह ढेर सारा प्यार!! अपना ख्याल रखना।
!!!
तेरी नजर से घायल दिल की दास्ताँ सुुन लें,
दूर तु है दूर मैं भी हवाओं का संदेश सुन लें।
हर आते जाते पल को मेरी निगाहें ताक रही,
कभी तो तु मेरे आँगन आने वाली राह चुन लें।।(तेरहवां पत्र)
(
.......
और इस काल्पनिक सत्यता के बीच उसने जब तुम्हें बनाने की कल्पना की तो उस समय उसे शायद चाँद की याद तस्वीर दिमाग में थी, और तुम्हारा चेहरा जो उसने चाँद सा ही बना दिया तो 
और जब उसने तुम्हें चाँद सा बना ही दिया तो मेरी कल्पनाओं का भी अपना स्थान बनता है ना!! और तुम्हारे चेहरे पे चमकती हुई बिंदी जैसे कि चाँद का पास में शुक्र ग्रह चमका रहा हो, बस जी करता है कि तुम्हें इस रूप में युँ ही देखता रहुँ.......
और सुनो!! जब वो बादलों की कल्पना करके तुम्हारे केशों का घने काले और बहुत लंबे (हाँ!!! दुसरे भी कहते है यह तो मुझसे) बना सकता है, तो क्यों न मैं मेरी कल्पनाओं का गजरा इनमें लगाऊँ, जब तुम प्रेम की बारिश करो अपनी जुल्फों से तो, मैं भीनी भीनी खुशबु में खो जाऊँ, कि हर पल हर जगह सिर्फ यहीं खुशबु आती रहे।।(चौदहवां पत्र)
(
........
और!!! सुनो कल कमरे में सामान व्यवस्थित कर रहा था तो कुछ ग्रीटिंग कार्ड्स मिलें हैं, करीब 3 साल हो गए हैं तुम्हारे लिए लाया था,  लेकिन आज तक उन पर कुछ नहीं लिख पाया, तुमने मौका ही नहीं दिया कि मैं कुछ लिखकर तुम्हें दुँ।  हाँ !! बड़े करीने से सजाकर आलमारी में रखें हैं। देखो अगर आकर ले जा सको तो।
और हाँ!!! इनकी एक प्यारी सी तस्वीर खींची है, पत्र के साथ भेज रहा हुँ।(पंद्रहवां पत्र)
(
.......
पोस्ट ज्यादा लंबी हो जायेगी इसलिए अब पत्रों की केवल लिंक पोस्ट कर रहा हूं....
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http://karankswar.blogspot.in/2015/11/a-letter-to-swar-by-music.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2015/12/a-letter-to-swar-by-music-2.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/01/a-letter-to-swar-by-music-3.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/01/a-letter-to-swar-4.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/02/a-letter-to-swar-by-music-5.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/04/a-letter-to-swar-by-music-6.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/07/a-letter-to-swar-by-music-7.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/07/a-letter-to-swar-by-music-8.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/08/a-letter-to-swar-by-music-9.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/09/a-letter-to-swar-by-music-10.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/10/a-letter-to-swar-by-music-11.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/10/a-letter-to-swar-by-music-12.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/11/a-letter-to-swar-by-music-13.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/11/a-letter-to-swar-by-mysic-14.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2016/12/a-letter-to-swar-by-music.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/01/a-letter-to-swar-by-music-16.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/01/a-letter-to-swar-by-music-17.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/01/a-letter-to-swar-by-music-18.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/01/a-letter-to-swar-by-music-19.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/02/a-letter-to-swar-by-music.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/02/a-letter-to-swar-by-music-21.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/03/a-letter-to-swar-by-music-22.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/03/a-letter-to-swar-by-music-23.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/03/a-letter-to-swar-by-music-24.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/03/a-letter-to-swar-by-music-25.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/05/a-letter-to-swar-by-music-21.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/05/a-letter-to-swar-by-music-27.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/06/a-letter-to-swar-by-music-28.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/06/a-letter-to-swar-by-music-29.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/07/a-letter-to-swar-by-music-30.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/07/a-letter-to-swar-by-music-31.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/07/a-letter-to-swar-by-music-32.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/08/a-letter-to-swar-by-music-33.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/08/a-letter-to-swar-by-music-34.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/08/a-letter-to-swar-by-music-35.html?m=1
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http://karankswar.blogspot.in/2017/09/a-letter-to-swar-by-music-36.html?m=1
......

Again happy birthday my love...

With love
Yours
Music


Photo by Karan

Friday 15 September 2017

A letter to swar by music 36

Dear SWAR,

Time make the situation, & situation create the art.... & Art....
Art is..…...........
It's not necessary to tell you...
You can understand yourself.......
......
हां तो,
सबसे पहले तो जिंदगी के हर पल में खुशियों की सौगात रहे यह दुआ दिल से करते हैं हम। बाकी मालूम तुमको भी है कि वक्त परीक्षा लेता रहता है तुम्हारी भी और मेरी भी.... हमारी ही नहीं सबकी लेता है... कभी पास रखकर तो कभी दुरियां बनाकर अहसास दिलाता है खुद के होने का, जरूरी भी है ना सब... बाकी खुद को समझने और खुद के होने का पता कैसे चलता....
और दुसरी बात.....
कला....
मनुष्य ने जन्म से ही कला का दामन थामा है, लकड़ी के पहिए और पत्थरों के औजारों से हुई शुरुआत आज कहां आकर पहुंची है..... और, कला मेरी नज़रों में अपने आप में तो उपजती नहीं इसके पीछे आवश्यकता सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात होती है.....
और
इसी आवश्यकता ने हमें भी तो कुछ कला सीखाई है...... एक मान्यता है कि रसोई का काम संभालना औरतों का काम है पर अगर अब देखा जाये तो क्योंकि औरतों ने हर उस क्षेत्र में अपनी सहभागिता दर्ज की है... तो जरूरी नहीं कि रसोई का काम सिर्फ औरत ही करें.... आवश्यकता पड़ने पर पुरूष को भी काम करने से हिचकिचाना नहीं चाहिए....
अब आते हैं असली बात पर...... मैं तो बचपन से ऐसे माहौल में रहा हूं जहां रसोई से पाला पड़ा है और बचपन में तो किस्मत ने रसोई से जोड़ें रखा.... वो भी एक वक्त था शायद भगवान को इसकी अपनी स्क्रिप्ट में आवश्यकता थी इसलिए लिख दिया ऐसा ही बचपन.... खैर.. वो छोड़ो!!!
अब यह सुनो,
वक्त का चक्र......
पता नहीं कब क्या दिखा दें।
मेरा तो इस वक्त से जैसे कोई 36 का आंकड़ा है, कुछ न कुछ नया कारनामा दिखाता रहता है....
अभी पिछले सप्ताह वापस रसोईघर का मुंह दिखा दिया वैसे तुम्हें मालूम तो है ना रसोईघर का काम तो मुझे भली-भांति आता है.......
तो चलो आज तुम्हें रसोईघर का मेरा यह अनुभव बताता हूं...
सबसे पहली बात तो मुझे उलझन उन डिब्बों में हुई मालुम है ना 20 डिब्बे सब एक जैसे किसमे क्या रखा है कैसे मालूम हो। हर डिब्बे को उतार उतार कर देखता था कि जो चाहिए मिल जाएं..... पर एक बात बतायें तुमको इन डिब्बों को उतारते वक्त एक ख्याल तो आया ना दिल में... हां!! सच्ची में।।।
मैंने सोचा कि तुम यहां होओगी तो जब रसोईघर में काम करते वक्त उंचाई पर पड़े डिब्बों में से कोई डिब्बा उतारना पड़ा तो मुझे ही बुलाओगी ना.... और!! वो मौका भी गज्जब का होता.. तुम्हारे हाथ आंटें से लथपथ, जुल्फें ओढ़नी से बाहर झांकती हुई.... मैं खुद को रोक तो नहीं पाता ना....
और तुम भी मुझे नहीं रोक सकती.....
.......आज शरारत करने दो काम बाकी करेंगे कल...........
खैर.... यह मेरी एक कल्पना थी और कल्पना को तो किसी हादसे से भंग होना ही है... शायद तवे पर रखी रोटी जलने लगी है (मुझे तो नहीं मालूम पड़ा क्योंकि मैं तो तेरे ख्वाब में खोया था पर बाहर से आवाज आई मारसाहब रोटी जल रही है) और कल्पना की गाड़ी को रोक में जल्दी से गैस की तरफ भागा.... देखा तो चांद सी गोल और सफेद रोटी में चट्टानों सा काला निशान बन गया है.... हाथ से जल्दी ही उसको तवे से हटाकर साइड में रखा... और फिर बेलन चकले की आवाज आने लगी फिर.... खैर एक बात तुम्हें और बता दूं मुझे अभी भी पुरी तरह गोल रोटी बनाना नहीं आता है...
सुनो!!!
एक काम करें मैं तुम्हारी तरह गोल रोटी बनाना सीखता हूं तुम मेरी तरह बेइंतहा मोहब्बत सीख जाओ ना और...
और तो हर पल तुम्हारी जीत की दुआ करता आया हूं... अब यही चाहता हूं कि तुम्ही जीत जाओ... पता नहीं मगर..
शायद मेरी आवाज़ तुम तक पहुंचती भी है या नहीं...
खैर छोड़ो....
आगे सुनो,
सब्जी में जब मसालें को पकाता हूं तब छन छम छन की सी आवाज आती है जैसे कोई संगीत बजा हो, जैसे तुमने पाजेब पहने घर में कदम रखा हो, जैसे कि तुमने अपनी चुड़ियों को खनखाया हो....
और मैं युही पता नहीं किस धुन में खोकर बर्तन से चंग की धाप जैसे बजाने लगता हूं!!! इस इंतजार में कि कहीं से चहकती नाचती गाती हुई आ धमको तो....
तुम्हें मालूम है इसी धुन और तुम्हारे ख्यालों में खोयें रहने से स्कूल में अक्सर लेट हो जाता हूं... फिर वहां भी बहाना तुम्हारा ही बनाता हूं कि वो वहां से फोन आ गया तो रास्ते में बात करते हुए आ रहा था तो देर हो गई....
मालुम है ना....
झूठ भी कितने कायदे का बोल लेता हूं यह तो तुमसे ही सीखा है..... सच्ची मुच्ची!!!
कुछ परिस्थितियां बनती है रोज ही रसोईघर में अलग अलग तरह की.....
कभी तो तुम्हारी धुन में खोया रहा और सब्जी में नमक दो बार तो कभी बिल्कुल भी नहीं, कुकर की सिटी बजती तो तुम्हारा सिटी बजाना याद आता, और कढ़ाई में तेल गरम होने पर आती खुशबू मेरे घर को महकाती जैसे कि तुमने अपने होने का अहसास कराया हो......
खैर यह सब तो चलना है....
तुम सुनाओ अपना...
अपनी बकरियों का ख्याल रखती हो या नहीं?
तुम्हारे यहां जंगल में झाड़ अब और भी हरे हो गए हैं ना?
नदी नालों में साफ पानी आ रहा होगा ना?
देखना.....
उस पहाड़ी पर एक दिन मैं फिर आऊंगा इस तुम्हारे लिए घर से मैं खुद खाना बनाकर टिफिन पैक करके लाऊंगा.....
तुम..... खाओगी ना!!!!

With love
Yours
MUSIC

©® Karan KK
15_09_2017___7:00AM

Saturday 9 September 2017

A letter to love by karan

सुनो प्रेम,

जग में अमर बस प्रेम है, हर कोई कहता ये बात।
हां  मगर  यह  जान लो, मैं प्रेम  को  दुँगा मात।।
.........
इस दुनियां के उद्भव के साथ ही उस परम पिता ने जीवों में कुछ महसूस करने योग्य शक्तियां भेजी है। अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि केवल मनुष्य ही वो प्राणी है जिसमें प्रेम, घृणा आदि मन के भाव पैदा होते है जबकि सच तो यह है कि संसार के लगभग प्रत्येक प्राणी में ये सब भाव पाये जाते है। हां सब के इन भावों को दर्शाने के तरीके अलग अलग होते हैं।
क्या कभी देखा है कोई गाय उस समय चुपचाप बैठी रहती है जब कोई अन्य गाय या पशु उसके बछड़े पर हमला कर दें, नहीं ना... गाय का अपने बछड़े के प्रति प्रेम नहीं तो और क्या है?
हम अक्सर देखते है कि रोटी या हड्डी के टुकड़े के लिए कुत्ते आपस में झगड़ते हैं क्या यह घृणा, ईर्ष्या, गुस्सा नहीं है?
हां, बाकी प्राणी जगत के पास इन भावनाओं को प्रकट करने के कोई प्रभावशाली तरीके नहीं है। और हम मनुष्यों को इसके लिए अलग से कुछ कुछ शक्तियां मिली है जो इन भावों को प्रकट करने में हमारी सहायता करती है। अब देखिए ना हम अपने जीवन के अधिकतर कार्य सिर्फ और सिर्फ प्रेम, ईर्ष्या, घृणा, क्रोध के वशीभूत होकर करते है। हम धन का संचय इसलिए करते हैं कि आने वाली पीढ़ी सुखी रहें,
यह हमारा उनके प्रति प्रेम ही तो है।
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आओ,
अब बात करते हैं प्रेम की, सिर्फ और सिर्फ प्रेम की। अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि प्रेम समझ से परे है, हां, यह सत्य भी है, हम सभी यह समझ नहीं पाते है कि किसी के प्रति हमारे मन में प्रेम के आगमन का ठीक ठीक समय क्या था? इसकी भूमिका बनने में कौनसी परिस्थिति उत्तरदायी थी?
यह प्रेम कब तक यूं जारी रहेगा या
प्रेम की सफलता निश्चित है या अनिश्चित?
हम बस प्रेम करने या न करने में उलझे रहते हैं। क्या कभी हमने सोचा है कि इस प्रेम और हमारे जीवन का क्या संबंध है? क्यों अक्सर किसी एक के प्रति हम अपने मन में इतनी गहरी भावना लिए घूमते रहते हैं?
इन सवालों के जवाब तो खुद प्रेम के पास भी नहीं है। वो खुद हैरान हैं कि क्यों कुछ लम्हों में उसका रूप बदल जाता है?
किसी के मन में उसकी कितनी गहरी जड़ें है?
और मैं.......
और मैं खुद प्रेम से उलझ पड़ा हुं कुछ ऐसे ही सवालों के साथ.......
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हां तो सुनो प्रेम.....

सबसे पहले तो उस वक्त और तुम्हारे फैसले का अभिनंदन करता हुँ जब तुमने मेरे मन में अपने बोयें थे। पर एक सवाल है कि क्या तुमने उस वक्त जरा भी सोचा कि किस तरह की प्रवृत्ति के इंसान में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हो?
क्या तुमने मेरे सोचने की शैली के बारे में सोचा? क्या तुमने उस वक्त यह सोचा कि तुम्हारे आगमन से मन पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा? क्या तुम्हें अब भी वो परिस्थितियां याद है जब तुम अपने होने का अहसास मुझे करा रहे थे?
हां,
मैं तुम्हारे उस रूप की बात कर रहा हुँ जिसका मतलब अक्सर तुम्हारा नाम लेते ही निकल आता है, हां, वहीं नैसर्गिक प्रेम, हां!! वहीं प्रेम जो दो इंसानों को जीवन के कुछ पलों को साथ जीने के लिए प्रेरित करता है। हां, वहीं प्रेम जो जीवन पथ की बैलगाड़ी के दो बैलों की कहानी बनाता है।
हां, तो सुनो,
तुम्हें कुछ भी है या याद नहीं होगा शायद!
पर, मैं नहीं भूला हूं अब तक भी वो बातें, वो लम्हें जो तुम ख्वाबों में दिखलाते थे....
मुझे याद है कि तुमने किसी के माध्यम से मेरी जिंदगी के स्वर में एक नई धुन डाली थी, मुझे जिंदगी के एक अलग पहलु का अहसास कराया था।
हां, तुमने किसी के मन में मेरे प्रति अनुराग पैदा किया था...
मैं उस वक्त से बदला बदला सा रहने लगा था जैसा कि तुम अपने इस काम के लिए मशहूर हो तुम्हारी जीत थी यह...
है ना!!!
मगर सुनो प्रेम,
तुम भूल गए, मैंने कहा ना तुम्हें कि तुम यह देखना भूल गए कि जिसको शिकार बनाना चाह रहे थे वो किस तरह का इंसान हैं।
तुम सिर्फ अपनी जीत के गुमान में रह गए...... है ना!! यह सोचकर कि तुमने मुझे किसी का दीवाना बना दिया....
हां प्रेम.... मैं उस वक्त से आज तक भी दीवाना हूं उसका और रहूंगा....
अब सुनो तुम,
तुम्हारी वो जीत कुछ पल की जीत थी बाकी तुम खुद जानते हो क्या हो रहा है?
सुनो!
हालांकि मैं अभी जीता नहीं हूं मगर तुम्हारी हार तय है...
तुम्हारी हार के कारण गिनाता हूं तुम्हें.....
तुमने जिस इंसान को कब्जे में किया उसकी खासियत देखो....
सुनो प्रेम,
मैं तब भी प्रेम में हूं जब कोई मुझसे कोसों दूर है दूर भी ऐसे कि उसे मालूम तक नहीं कि मैं कितनी शिद्दत से आज भी उसकी खोज खबर की कोशिश करता हूं, इतना दूर कि उसे मेरे नजदीकियों से तलक नफरत है, इतना दूर कि फुर्सत तक नहीं कि कभी मेरे हालात का जायजा लें....  मगर मैं तब भी उससे प्रेम करता हूं उतना ही जितना कि सूरज को शाम से है, जितना कि तारों को सुबह से है.....
मुझे आने वाले वक्त का मालूम है मगर फिर भी मुझे प्रेम है......
और सुनो प्रेम,
तुम्हारा वो फैसला, तुमने अधिकतर महसूस किया होगा वक्त के साथ लोग बदलते हैं, भी ग़लत साबित करेंगे हम...
सुनो तुम,
मेरा प्रेम जैसा आज है वैसा ही रहेगा....
उस समय भी जब वो नदी के उस छोर पर होगी और मैं इस छोर पर,
उस समय भी जब महकते हुए हाथ उम्र के इक पड़ाव पर कांपने लगेंगे,
उस वक्त भी जब उसके मोती से चमकते दांत हिलते हुए मिलेंगे,
आज जिन आंखों में झांककर मैं प्यार के नगमें गुनगुनाता हूं वो आंखें लगभग बंद से होगी मगर तब भी मैं प्रेम करूंगा,
और सुनो,
जिन होंठों को आज लरजते हुए देखता हूं जब उम्र के इक मोड़ पर थर-थर कांपेंगे मगर तब मैं इनके छुने की कोशिश करता रहूंगा,
मैं तब भी प्रेम करता रहूंगा जब वक्त के चक्र में उसके बाल पककर सफेद हो जायेंगे,
सुनो प्रेम,
वक्त का वो दौर मुझे नहीं हिला पायेगा....
मैं जानता हूं तुम अपनी जीत यही मानते हो कि वक्त के साथ इंसान वो सब भूल जायें जिसका अहसास तुम शुरुआत में करवाते हो...
मगर...
मैं नहीं भूलने वाला....
तुम्हें भी नहीं
खुद को भी नहीं
और
उसको तो कभी नहीं.....
सुनो प्रेम,
तुम मुझसे हार जाओगे.....
©® करन जांगिड़ KK
09_09_2017__21:00PM

Alone boy 24

चंदा हम तुम कितने तन्हा
रात तारों भरी
मगर उदासी है....
बादलों में फैली
तुमको
तलाश है धरती पर किसकी?
.......
मैं देखता तुमको
तारों के बीच
कुछ ढूंढता
हूं
क्या तुम देखा
मेरे चाँद को कहीं
सवाल वहीं फिर मुझसे तुम्हारा
तुम्हें आसमां में तलाश किसकी?
........
चंदा हम तुम
चलो
सो जाये....
शायद वो
ख्वाब में आ जाये
कर रहे हम कब से
तलाश जिसकी!!

@karan kk

Photo by karan

Friday 8 September 2017

धड़कन

रात सुनी धड़कन सुनी इक छन की तलाश में,
आंख सुनी नजरें सुनी इक चांद की तलाश में।

बादल आज बरसने को बैताब हर जगह पर,
लेकर जाएं उनको बैठे इक हवा की तलाश में।

आदतन जिंदगी कब चाहती है दूर रहें मुझसे,
बैठी होगी द्वार पर इक मौके की तलाश में।

गौरी कब सिंगार करेगी पिया से मिलने रातों में,
काजल बिंदिया कंगन झुमके कब से तलाश में।

आंख हो या हो नदी या हो समंदर भी करन,
नीर की नियति बहना है बिन मौके की तलाश में।।
©® Karan KK

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...