Saturday 9 September 2017

A letter to love by karan

सुनो प्रेम,

जग में अमर बस प्रेम है, हर कोई कहता ये बात।
हां  मगर  यह  जान लो, मैं प्रेम  को  दुँगा मात।।
.........
इस दुनियां के उद्भव के साथ ही उस परम पिता ने जीवों में कुछ महसूस करने योग्य शक्तियां भेजी है। अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि केवल मनुष्य ही वो प्राणी है जिसमें प्रेम, घृणा आदि मन के भाव पैदा होते है जबकि सच तो यह है कि संसार के लगभग प्रत्येक प्राणी में ये सब भाव पाये जाते है। हां सब के इन भावों को दर्शाने के तरीके अलग अलग होते हैं।
क्या कभी देखा है कोई गाय उस समय चुपचाप बैठी रहती है जब कोई अन्य गाय या पशु उसके बछड़े पर हमला कर दें, नहीं ना... गाय का अपने बछड़े के प्रति प्रेम नहीं तो और क्या है?
हम अक्सर देखते है कि रोटी या हड्डी के टुकड़े के लिए कुत्ते आपस में झगड़ते हैं क्या यह घृणा, ईर्ष्या, गुस्सा नहीं है?
हां, बाकी प्राणी जगत के पास इन भावनाओं को प्रकट करने के कोई प्रभावशाली तरीके नहीं है। और हम मनुष्यों को इसके लिए अलग से कुछ कुछ शक्तियां मिली है जो इन भावों को प्रकट करने में हमारी सहायता करती है। अब देखिए ना हम अपने जीवन के अधिकतर कार्य सिर्फ और सिर्फ प्रेम, ईर्ष्या, घृणा, क्रोध के वशीभूत होकर करते है। हम धन का संचय इसलिए करते हैं कि आने वाली पीढ़ी सुखी रहें,
यह हमारा उनके प्रति प्रेम ही तो है।
..........
आओ,
अब बात करते हैं प्रेम की, सिर्फ और सिर्फ प्रेम की। अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि प्रेम समझ से परे है, हां, यह सत्य भी है, हम सभी यह समझ नहीं पाते है कि किसी के प्रति हमारे मन में प्रेम के आगमन का ठीक ठीक समय क्या था? इसकी भूमिका बनने में कौनसी परिस्थिति उत्तरदायी थी?
यह प्रेम कब तक यूं जारी रहेगा या
प्रेम की सफलता निश्चित है या अनिश्चित?
हम बस प्रेम करने या न करने में उलझे रहते हैं। क्या कभी हमने सोचा है कि इस प्रेम और हमारे जीवन का क्या संबंध है? क्यों अक्सर किसी एक के प्रति हम अपने मन में इतनी गहरी भावना लिए घूमते रहते हैं?
इन सवालों के जवाब तो खुद प्रेम के पास भी नहीं है। वो खुद हैरान हैं कि क्यों कुछ लम्हों में उसका रूप बदल जाता है?
किसी के मन में उसकी कितनी गहरी जड़ें है?
और मैं.......
और मैं खुद प्रेम से उलझ पड़ा हुं कुछ ऐसे ही सवालों के साथ.......
।।।।।।।।।।।।।
हां तो सुनो प्रेम.....

सबसे पहले तो उस वक्त और तुम्हारे फैसले का अभिनंदन करता हुँ जब तुमने मेरे मन में अपने बोयें थे। पर एक सवाल है कि क्या तुमने उस वक्त जरा भी सोचा कि किस तरह की प्रवृत्ति के इंसान में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हो?
क्या तुमने मेरे सोचने की शैली के बारे में सोचा? क्या तुमने उस वक्त यह सोचा कि तुम्हारे आगमन से मन पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा? क्या तुम्हें अब भी वो परिस्थितियां याद है जब तुम अपने होने का अहसास मुझे करा रहे थे?
हां,
मैं तुम्हारे उस रूप की बात कर रहा हुँ जिसका मतलब अक्सर तुम्हारा नाम लेते ही निकल आता है, हां, वहीं नैसर्गिक प्रेम, हां!! वहीं प्रेम जो दो इंसानों को जीवन के कुछ पलों को साथ जीने के लिए प्रेरित करता है। हां, वहीं प्रेम जो जीवन पथ की बैलगाड़ी के दो बैलों की कहानी बनाता है।
हां, तो सुनो,
तुम्हें कुछ भी है या याद नहीं होगा शायद!
पर, मैं नहीं भूला हूं अब तक भी वो बातें, वो लम्हें जो तुम ख्वाबों में दिखलाते थे....
मुझे याद है कि तुमने किसी के माध्यम से मेरी जिंदगी के स्वर में एक नई धुन डाली थी, मुझे जिंदगी के एक अलग पहलु का अहसास कराया था।
हां, तुमने किसी के मन में मेरे प्रति अनुराग पैदा किया था...
मैं उस वक्त से बदला बदला सा रहने लगा था जैसा कि तुम अपने इस काम के लिए मशहूर हो तुम्हारी जीत थी यह...
है ना!!!
मगर सुनो प्रेम,
तुम भूल गए, मैंने कहा ना तुम्हें कि तुम यह देखना भूल गए कि जिसको शिकार बनाना चाह रहे थे वो किस तरह का इंसान हैं।
तुम सिर्फ अपनी जीत के गुमान में रह गए...... है ना!! यह सोचकर कि तुमने मुझे किसी का दीवाना बना दिया....
हां प्रेम.... मैं उस वक्त से आज तक भी दीवाना हूं उसका और रहूंगा....
अब सुनो तुम,
तुम्हारी वो जीत कुछ पल की जीत थी बाकी तुम खुद जानते हो क्या हो रहा है?
सुनो!
हालांकि मैं अभी जीता नहीं हूं मगर तुम्हारी हार तय है...
तुम्हारी हार के कारण गिनाता हूं तुम्हें.....
तुमने जिस इंसान को कब्जे में किया उसकी खासियत देखो....
सुनो प्रेम,
मैं तब भी प्रेम में हूं जब कोई मुझसे कोसों दूर है दूर भी ऐसे कि उसे मालूम तक नहीं कि मैं कितनी शिद्दत से आज भी उसकी खोज खबर की कोशिश करता हूं, इतना दूर कि उसे मेरे नजदीकियों से तलक नफरत है, इतना दूर कि फुर्सत तक नहीं कि कभी मेरे हालात का जायजा लें....  मगर मैं तब भी उससे प्रेम करता हूं उतना ही जितना कि सूरज को शाम से है, जितना कि तारों को सुबह से है.....
मुझे आने वाले वक्त का मालूम है मगर फिर भी मुझे प्रेम है......
और सुनो प्रेम,
तुम्हारा वो फैसला, तुमने अधिकतर महसूस किया होगा वक्त के साथ लोग बदलते हैं, भी ग़लत साबित करेंगे हम...
सुनो तुम,
मेरा प्रेम जैसा आज है वैसा ही रहेगा....
उस समय भी जब वो नदी के उस छोर पर होगी और मैं इस छोर पर,
उस समय भी जब महकते हुए हाथ उम्र के इक पड़ाव पर कांपने लगेंगे,
उस वक्त भी जब उसके मोती से चमकते दांत हिलते हुए मिलेंगे,
आज जिन आंखों में झांककर मैं प्यार के नगमें गुनगुनाता हूं वो आंखें लगभग बंद से होगी मगर तब भी मैं प्रेम करूंगा,
और सुनो,
जिन होंठों को आज लरजते हुए देखता हूं जब उम्र के इक मोड़ पर थर-थर कांपेंगे मगर तब मैं इनके छुने की कोशिश करता रहूंगा,
मैं तब भी प्रेम करता रहूंगा जब वक्त के चक्र में उसके बाल पककर सफेद हो जायेंगे,
सुनो प्रेम,
वक्त का वो दौर मुझे नहीं हिला पायेगा....
मैं जानता हूं तुम अपनी जीत यही मानते हो कि वक्त के साथ इंसान वो सब भूल जायें जिसका अहसास तुम शुरुआत में करवाते हो...
मगर...
मैं नहीं भूलने वाला....
तुम्हें भी नहीं
खुद को भी नहीं
और
उसको तो कभी नहीं.....
सुनो प्रेम,
तुम मुझसे हार जाओगे.....
©® करन जांगिड़ KK
09_09_2017__21:00PM

9 comments:

  1. क्या बात है सर

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    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया

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    2. इस रचना के लिए मेरे पास शब्द नही क्या पता वो शब्द बने ही नही वो रचना का गुणगान कर सके

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  2. गजब
    वाह
    शानदार
    अद्भुत
    एक नयापन
    बेहतरीन
    मैं नहीं जानता कि आज तक प्रेम किसी से हारा हो मगर फिर भी आपकी जीत के लिए अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. सर्वोत्कृष्ट कृति......अनुपम....अद्वितीय.... अद्भुत....
    जितना लिखू उतना कम है इस रचना के विषय में......

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