Sunday 25 March 2018

उलझन कैसी है

उलझती जो जूल्फें तेरी
सुलझा भी लेता मैं,
मगर
क्या जिंदगी का
उलझना
जरूरी था।
............
बातों का उलझना
सुलझ
सकता है,
मगर
क्या कहानी का
उलझना
जरूरी था।
............
रिश्तो की तो
उलझन
सुलझें,
मगर
क्या नयनों का
उलझना
जरूरी था।
..............
ज़िक्र वक्त का
ही हो तो
फिर भी
जायज है,
मगर वक्त से परे
क्या परों में
उलझना जरूरी था,
...........
बात सिर्फ
मोहब्बत
की हो तो ठीक है,
मगर दुनिया बेगानी लगे
क्या ऐसे
इश्क में
उलझना जरूरी था।
..........
गांव शहर
जंगल
बग़ीचा
तो अच्छी बात है,
मगर आसमान में उड़ती
चिड़िया
के
दिल में
उलझना
जरूरी था।
©® जांगिड़ करन DC
25_03_2018___20:30PM

Saturday 17 March 2018

A letter to swar by music 45

Dear swar,
.................
मौसम की मस्ती और मन की तरंगों का जब मेल हो जाये तो जिंदगी के समंदर में मौजों की रवानी सी आती है....
लेकिन किसी उदास मन को कोई मौसम नहीं सुहाता, दिल का कौना जब जख्मी हो तो महफ़िल भी खाली खाली सी लगती है........
बसंत कब आया कब गया मालूम नहीं....
इधर हवाओं में जब जब बेरुखी सी छाई तो...
...
अक्सर खिड़कियां अपने पर्दे को हटाकर कमरे के अंदर झांकती है तो उदास हो जाती है, तुम्हारा न होना कितना अखरता होगा उनको...
घर का आंगन भी उदास है जानती हो ना तुम्हारे पैरों के निशान अब फीकें पड़ रहे हैं इस पर... ये उन निशानों को हमेशा के लिए संजोकर रखना चाहता है, पर वक्त की रेत मिटाती जा रही है उनको.... बस उनको इंतजार है कभी तुम आओ और निशान फिर ताजा हो जायें... तुम्हारे हाथ की रंगोली तुम्हारे बिन रंगहीन लगती है..... अरे!! तुमने उस कहां था ना कि रंगोली की रेखाएं अपनी जिंदगी के सफ़र को तय करेगी,
मैं ढूंढ रहा हूं मगर वो रेखा नहीं मिल रही जो इस सफ़र में तुम्हें मेरे साथ रखें तो तुम आकर मेरी मदद कर दो ना...
मैं तुम्हारे बिन सिर्फ काली रेखाएं देख पा रहा हूं जो आगे अंतहीन अंधेरे की तरफ जाने का इशारा करती है... तुमने वो लाल पीली रेखाएं जानें किधर बनाई है... आकर ढूंढकर बता दो..... यह रंगोली भी तुम्हारी तरह एक पहेली बन गई है जो मुझसे नहीं सुलझ रही है.... आओ... सुलझा दो ज़रा... तुम्हारी जुल्फें तो मैं सुलझा लूंगा!!!!
और सुनो तो,
ये घर की हवाएं भी जलने लगी है लोग कहते हैं कि गर्मी आ गई है इसलिए ऐसा हो रहा है मगर मैं तो यह सोच रहा कि तुम नहीं हो इसलिए ऐसा हो रहा है.... तुम अगर यहां हवा में गीली जुल्फें लहराओ तो हवाएं अपने आप ठंडी होगी ना! इन हवाओं को भी तुम्हारा इंतज़ार है ताकि इनका रूखापन दूर हो सकें और इनमें ठंडक और खुशबू आ सकें।
देखो,
पतझड़ चल रहा है पेड़ पौधों से पते गिर रहें हैं बेहिसाब गिर रहें हैं.... इन सुखे पत्तों को जब हवा इधर उधर सरकाती है तो एक मधुर आवाज आती है मगर यह मधुर आवाज एक उदासी से भरी होती है। दुख की वजह बिछुड़ना, पत्तों का पेड़ से अलग होना!
मगर देखो ना,
ये पत्ते उदास हो कर भी मधुर धुन सुना रहे हैं!! मैं भी तो यहीं करता हूं ना!!!
......
चलो
गीत कोई गाये,
हवाओं को सुर बना लें,
पत्तो की खनखन को थाप बना लें,
आओ,
मुस्कुरा लें,
इस रूखे मौसम के
चेहरे पर
हंसी तो
बिखेर दें...
उदासियों की चादर फेंक,
आसमान में रंग भर दें कि
फिर
खुशियों की बारिश हो....
फिर पेड़ पौधे हरे भरे हो...
फिर चिड़िया चहकें
और
फिर
जिंदगी मेरी जन्नत हो!!!
.....
सुनो,
आज अमावस्या है,
चांद नहीं होगा आसमां में,
तुम छत पर आ जाना जरा...
मैं चांदनी देखना चाहता हूं
अमावस्या को भी!!

With love yours
Music

©® जांगिड़ करन KK
17-03-2018__06:00 AM

Thursday 1 March 2018

दोहे- होली

बादळ आज थु आवज्ये, बरसा दीज्ये रंग।
होळी खेले गोरड़ी, मैं भी खेलूं संग ।।

पिचकारी ले आवज्ये, लाज्ये रंग गुलाल।
मैं तो थारे रंग में, रंगस्यु मारा गाल।।

होली के रंग जांगिड़ करन के संग।
#Happy_Holi

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...