Thursday 30 June 2016

पत्थर

पत्थर  का  शहर  है,
है  पत्थर  दिल  लोग।
बन  जा तु  भी पत्थर,
वरना न जीने देंगे लोग।।

पत्थरों  की तो तासीर है,
पत्थर  से  ही  टकराना।
मगर  वो  पागल  है जो,
पत्थर से टकराते है लोग।।

पत्थर  से  बनी  मुर्ति को,
पूजता  है हर  कोई यहाँ,
मगर राह पड़े पत्थर को,
मारते है ठोकर सब लोग।।
©® जाँगीड़ करन KK™

Saturday 18 June 2016

रेत से ख्वाब

मैं अक्सर
भर लेता हुँ
अपनी मुट्ठी रेत से
हाँ ख्वाबों की रेत....
जानते हुए कि
मुट्ठी में रेत
रूकनी तो नहीं,
कण कण ही सही
फिसल जाना है इसे.....
और मैं
मुट्ठी को मजबूत
भी नहीं कर सकता
कहीं रेत का
दम न घुट जायें....
बस हर बार
फिर से भर लेता हुँ मुट्ठी
उसी रेत से
जानते हुए कि
फिर से फिसल जानी है...
मगर एक......
मगर एक आशा है कि
कभी तो प्रेम की
बारिश होगी
रेत पर
जब वो भीग जायेगी
तब शायद
मेरी मुट्ठी में
रूक जायेगी
और मैं बनाऊँगा
एक सपनों का महल उससे
वो रहेंगे फिर हम साथ साथ
सदा के लिये......
©®करन जाँगीड़ kk
10/06/2015_ 7:00 AM

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...