Monday 15 October 2018

Alone boy 29

रुक्सत जो कर गई,
हवाएं
इधर शहर में
घुटन सी होती है।
चुपचाप खड़ी ये
अट्टालिकाएं,
सूरज की
रोशनी को
तरसती है।
शौरगुल से
परेशान पिल्ला
दुबका है,
मोहल्ले की
सबसे
गंदी नाली में।
दीवारों को ताकता
कोई,
डायरी में लिखे
दो लफ्जों से
तस्वीर
बनाने की जुगत में है,
मगर
हर बार
तस्वीर धूंधली ही
नज़र आती उसको,
कई दफा फिर
कोशिश करता है,
और
अंत में
समझ आता है उसको,
कल्पनाओं की
तस्वीरें
सुंदर तो होती है,
मगर साफ
नहीं हो सकती।
जिंदगी की जो
भूल करी
वो भूल
माफ नहीं हो सकती....
किंचित
वो समझ गया सारा ही रहस्य,
तस्वीर को
साफ करने,
वो निकल पड़ा है,
लफ़्ज़ों के
समंदर को
छिपी तस्वीर लाने,
वो निकल पड़ा है
जिंदगी की भूल
का
परिणाम बनाने,
शायद ये
लफ्ज़
अब
उसकी दुनिया है......
...........
A letter to swar by music 51 to 75..
Coming soon...

#करन

Friday 5 October 2018

Alone boy 28

जैसे आसामां की
गोद में सोया
कोई ख्वाब,
पलकों के उस पार
कहीं कोई फुदकती है अब
आशाओं की डोर नहीं है
जो
बाँध लें उसको,
बस बंद आंखों में
कहीं दूर
आसमां के साये में
पंख फड़फड़ाते हुए से
नजर आते हैं।
इधर बादलों ने
घेरा है,
आंखों में समाकर कुछ
धुंधला सा
कर रहें तस्वीरों को,
मगर जब कभी
आंखें बरसकर साफ हो,
सब कुछ दिख
जाता है,
वहीं जो कई रोज पहले
किसी सपने में देखा करता था...
आसमां में बसते वो
दो तारे,
अक्सर एक दूसरे के
करीब आने
की
कोशिश में रहते, और
रात का घना अंधेरा
इस बात का गवाह होता....
मगर वक्त के
साथ
जानें क्यों
तारों की दूरियां बढ़ने लगी,
लगता कि कोई
एक तारे को
खींच रहा पीछे से....
मगर एक तारा अब भी
वहीं मौजूद, न किसी तारे से राग, न द्वेष,
बस निर्विघ्न
जिंदगी,
न किसी से कुछ कहता है, न सुनता है,
शायद अंधेरे से कुछ बात करता हो
अब भी।

©® करन जांगिड़
04.10.2018 .... 23:00PM

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...