Saturday 13 April 2019

परछाई 1


सुदूर किसी कौने में
झांक रही थी आंखें,
कुछ तलाश कर रही थी शायद,
तब
मन के किसी कोने में
ख्याल आये,
नीम का पेड़ वहीं,
पीपल भी वहीं,
बस बदली है
तो
मिट्टी की सड़क,
मिट्टी को
उस पक्की सड़क ने
ऐसे दबा दिया है जैसे
मेरे
अरमानों पर
वक्त की
चादर आ पड़ी थी,
खैर मैं हूं
जो
अब भी महसूस कर सकता हूं
सड़क के नीचे
दबी मिट्टी की महक को,
तेरे कदमों के
बनें निशां को,
तेरी जुल्फों के छिटकने से
मिट्टी पर बनें चित्रों को भी,
वो दूर
हैंडपंप की ठक ठक
मेरे कानों अभी भी
गूंज रही है.....
तुम न समझोगे
अरमानों की मिट्टी को,
तुम्हें तो
वक्त की पक्की
सड़कों ने
बदल के
रख दिया होगा ना....

©® Karan DC
13_04_2019___19:00PM

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