Friday 29 September 2017

A letter to swar by music 38

Dear swar,
.......
बरसात का दौर थम सा गया है, और उधर खेतों में फसल भी पकने को आई है तो खेत खाली किए जा रहे हैं, नदी के पानी में भी ठहराव सा आ गया है, मौसम भी थोड़ा समझ से परे है बिल्कुल तुम्हारी तरह ही, क्योंकि ठंड और गर्मी का मिश्रण सा है अभी तो बीमार होने की आशंकाएं भी ज़्यादा है, और फिर उजड़ा हुआ चेहरा, सुखे होंठ, सूझा हुआ नाक सबकुछ बड़ा अटपटा सा लगता है....
और उधर सूने होते खेत जैसे मेरे सपने उड़ा कर ले गया कोई, जैसे कि दिल बस खाली खाली सा कर गया कोई, नदी का जो पानी ठहरा तो लगा जिंदगी ठहर सी गई है और ठहरा पानी हो या जिंदगी..... जानती हो ना अच्छा नहीं लगता।
पर करें भी तो क्या?
नदी को बहते रहने के लिए बरसात की जरूरत है और मुझे चलते रहने के लिए.....
हां, तुम्हारी!!
अब बोलो आगे अकेला चलकर कहां जाऊं?
क्यों जाऊं?
किसके लिए जाऊं?
मगर.....
देखो मैं......... मुझे अहम नहीं है कि मैं बार बार खुद को दिखाता हूं कि मैं हुं,
पर मैं.. मुझे कुछ बातों का यकीन अब भी है,
रास्तों की हकीकत कुछ भी हो ख्वाबों में फूल खिलाना मेरी फितरत में है तो है....
और तुम तो हर उस ख्वाब में साथ रही जब कभी भी मैंने देखा हो......
बात ख्वाबों की है....
चाहें जागते देखूं या नींद में.....
अरे हां....
कल रात एक ख्वाब देखा,
मतलब कि आया...
अरे हां बाबा जो भी हो समझ तो गई ना......
तो सुनो.....
ख्वाब भी क्या ख्वाब था....
हम तुम अनजान थे बिल्कुल भी, न मुझे मालूम था कि तुम करता सोचती हो न तुम्हें मालूम था कि मैं किस तरह का इंसान हूं... एक दिन किसी कारणवश मैं तुम्हारे शहर में आया, बाजार से कुछ सामान लेना था शायद... उधर तुम भी अपनी मम्मी के साथ शॉपिंग(हां, तुम्हारी भाषा में यहीं बोलते हैं ना) करने आई हुई थी.....
मुझे शुरू से ही आईसक्रीम बहुत पसंद हैं तो मैं तो मौका देखता कि कब शहर हो आऊं ताकि आईसक्रीम खाने का मौका मिल सकें....
तो हुआ यूं कि उस दिन में जैसे ही आईसक्रीम पार्लर में घुसा तो एक लड़की ( यानि तुम) को आईसक्रीम वाले से बहस करते सुना, पर क्या बहस थी यार, और बहस की वजह सिर्फ छोटी सी थी आईसक्रीम खाने की चम्मच और कप प्लास्टिक के थे, और तुम एक ही रट लगाए थी इनसे शरीर को नुकसान कितना होता है.. एकबारगी तो मैंने भी सोचा कि कहीं तुम कोई ऑफिसर तो नहीं हो जो इस तरह उस दुकानदार से बात कर रही थी.... लेकिन बाद में पता चला कि तुम तो उस शहर की वासी हो और रोज ही उस दुकानदार से बहस करती हो कि ये कप और चम्मच बदल दो... और रोज आईसक्रीम तो खाकर ही जाती हो..... माजरा समझ से परे था... पर मुझे क्या?
मुझे तो आईसक्रीम खानी थी तो जाकर एक कुर्सी पर बैठ गया......
पर?
पर यह क्या?
तुम अचानक उधर से दौड़कर आई और बोली, "ओये मिस्टर! यह टेबल मेरी है?"
मैं तो बोलता भी क्या तुम्हें देखता रहा आगे तुमने क्या क्या कहां मालूम नहीं, पर जब तुमने अपने हाथ से मेरी आंखों के सामने चुटकी बजाई तो तंद्रा टूटी..... पर पता नहीं क्या हुआ कि मैं उठ ही नहीं पाया!
और तुम थोड़ी देर खड़ी रहकर कुछ बोली मुझे तो लास्ट में इतना सा सुनाई दिया idiot कहीं का....
फिर दुसरी टेबल पर जाकर मम्मी के साथ बैठ गई....
और चुपचाप आईसक्रीम खाने लगी मेरी नज़र अब भी तुम पे थी......
और वो दुकानदार तुमसे कुछ कह रहा था वो मुझे भी जानता था क्योंकि मैं अक्सर यहां आईसक्रीम खाने आता रहता हूं....
फिर....
तुम लोग तो आईसक्रीम खाकर चलें गये....
मैंने आईसक्रीम खाकर पैसे देने चाहें तो दुकानदार बोला कि पैसे तो वो देकर चली गई...
(अब यह ड्रामा समझ से परे लगा अचानक)
पर जल्द ही समझ आ गया क्योंकि दुकानदार ने बताया कि उसने आप लोगों को बताया कि मैं भी आईसक्रीम का बहुत शौकीन हूं और दुसरा जांगिड़ हूं.... मतलब तुम ने मेजबानी कर ली.....
वो भी बिना किसी जान पहचान के...
अजीब लगा... पर करता भी क्या?
कहां ढूंढता?
..............
सुनो,
मेरी नींद उड़ गई (घरवालों ने उठा दिया मुझे और आईसक्रीम की बजाय चाय पी)....
पर सुबह ही चेहरा वही....
टेबल भी...
हां,
कप प्लास्टिक का नहीं स्टील का गिलास है....
........
वो तो एक ख्वाब था नींद का.... जागते हुए भी तो मैंने हर पल तेरे ही ख्वाब देखें है!
पर!
ख्वाब तो ख्वाब होते हैं कहां पूरे होते हैं....
बस एक पंक्ति याद आ रही है....
....
रास्ते अजनबी नहीं मगर,
पैरों में थकान सी है.
तेरे शहर में आयें या नहीं,
धड़कन भी हैरान सी है।
......
बस....
दिल कहता है खुश रहना...
....
With love
Yours
Music

©® जांगिड़ करन kk
29_09_2017____11:00AM

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