Thursday 5 October 2017

A letter to swar by music 39

DeAr SwAr,
.........
हर सफर का मकसद हो यह जरूरी तो नहीं, कभी कभी तेरे शहर बस युही आ ही जाता हूं, हां...
कुछ यादें पुकारती है,
कोई जगह निहारती है,
कोई खोया हुआ ढूंढता है मुझको......
और फिर.....
मेरी आदत तुम्हें मालूम है ना....
एक सफर में जिंदगी का कोई सार न हो अक्सर तुमने भी देखा होगा कि उस सफर में लोग नहीं जाते हैं पर मैं ऐसा नहीं हूं, जो दिल की आवाज आई वहीं कर लेता हूं मैं...
नफे नुकसान की बात दिल कभी नहीं देखता!
आसान नहीं दिल को समझाना...
इसलिए फिर मैं निकल पड़ता हूं तेरे शहर की ओर....
जानें क्यों?
पर!!
बस निकल पड़ता हूं.......
......
अजनबी नहीं है ये रास्ते अब, हर जगह, हर स्टेशन, हर नदी नाला, हरेक ब्रेकर और तो और सड़क के गड्ढे तक याद है मुझे..... कोई आश्चर्य की बात नहीं यह!
.......
खैर सुनो,
मैं निकल पड़ा हूं घर से..
लग्जरी बस की सीट पर बैठकर.... मैं स्लीपर काहें नहीं लेता?
मालूम है ना तुम्हें (बाहर के नजारे न देख पाता मैं क्योंकि स्लीपर में तो नींद आ जाती है ना).......
अंधेरा होता है उस वक्त मगर क्योंकि मुझे सब याद है तो मैं अपने आप रास्ते भर नजारें देख लेता हूं।
......
तुम्हें बता दूं कि जब बस रवाना हुई तो शुरू से ही मेरी नज़र तुम्हारे शहर की ओर ही थी जैसे कि अभी आ ही जानें वाला है शहर, जबकि मुझे मालूम था कि सफर काफी लंबा होने वाला था!!
मैं पूरे सफर में आगे से आगे से आने वाले नजारों को देखता रहा......
सबसे पहले तो सड़क के दोनों तरफ मेरे गांव के बाहर से पेड़ पौधे नज़र आ रहे थे क्योंकि अभी अभी बारिश का दौर खत्म ही हुआ ही है तो हरियाली बहुत ही सुन्दर, पेड़ों के झुरमुट से चिड़िया की आवाजें....
वाकई, यात्रा मजेदार लगने लगी!
फिर जंगल ही जंगल.....
पत्थर,
चट्टानें......
मिट्टी के पहाड़!!!
और फिर एक विशाल नदी..... नदी क्या यह तो एक समंदर ही जैसी है ना... तुम्हें यहां पर आते वक्त बहुत डर लगता था ना कि बस कहीं अनियंत्रित होकर इसमें न चली जाएं.... तुम मेरी बाहों में छुपकर बैठ जाती थी ना उस वक्त...
और मैं असंमजस में रहता कि बाहर नदी की खूबसूरत धारा को निहारूं या तुम्हारे होने का अहसास खुद को कराऊं?
और तुम्हें मालूम है ना.....
चलो जानें भी दो...
खैर सुनो,
मैंने नदी की इस धारा को उसी वेग से बहते देखा जिस वेग से वक्त ने करवट ले ली थी.... बाहर नजारा खूबसूरत था पर मन में कुछ अजीब बैचेनी थी, तुम साथ नहीं थी ना....
खैर कुछ देर बाद गाड़ी फिर से एक हाइवे पर चल पड़ी....
अब कोई शहर आने वाला था यहां पर बस का स्टॉप रहता कुछ देर का, चाय पानी का .....
धीरे शहर की बिल्डिंगें नजर आने लगी, और बस स्टॉप पर बस रुक गई... पर मेरा मूड बिल्कुल भी उतरने का नहीं था मैं बस में बैठा रहा, में तो बस तुम्हारे शहर का इंतजार कर रहा था..
कुछ देर बाद फिर यात्रा शुरू हुई....
अब शहर के बाहर से फिर जंगल शुरू हो गया.....
दोनों तरफ लंबे लंबे वृक्ष...
घांस-फूस,
इसमें भागते हुए खरगोश......
कुछ याद दिलाते हैं...
खैर.....
एक और शहर आया...
तुम्हारे शहर से बड़ा....
पर बस यहां नहीं रूकी बाहर से बाईपास से निकल गई... अच्छा हुआ!....
अब आगे चट्टानों और पहाड़ों का क्षेत्र था....
याद होगी न तुम्हें ये चट्टानें...
और.....
यह क्या अचानक एक झटके के साथ ही बस रुक गई थी...
सबको नीचे उतारा गया..
पहिया पंचर था....
टाइम लगना था , मैंने एक यात्री को लिया और चट्टानों के ऊपर गया.... तुम्हें बता दूं कि वहां फोटो खींचे...
और
बस ठीक होने के बाद फिर से रवाना हुई....
अब एक मोड़ आया.....
जबरदस्त मोड़,
यहीं मेरी जिंदगी का भी सबसे हसीन मोड़ था....
मैं आज भी उस दुकान को निहारते हुए जाता हूं।
और उस मोड़ के बाद से ही तुम्हारे शहर की मुख्य सड़क शुरू होती है।
हां, सड़क अब बहुत खराब हो गई है ना... धूल उड़ाने लगी अब बस भी....
शहर के थोड़ी दूर पहले एक विशाल सागर जैसा कुछ आया था जिसकी लहरें तुम्हारे शहर को छूती है,
फिर खेल स्टेडियम........
और फिर,
तुम्हारे शहर में आखिरकार हम पहुंच ही गए...
सड़क के दोनों तरफ ऊंची ऊंची अट्टालिकाएं........
सड़क कितनी चौड़ी और शानदार,
सड़क के बीचों-बीच फूलों वाले पौधों की कतार,
नजारों की जैसे झड़ी लग गई थी.....
मुझे सब मालूम था पर हर बार सबकुछ नया सा लगता है...
अरे.....
तुम्हारा कॉलेज भी आ गया....
मैं वहीं उतर गया था,
शायद तुम कॉलेज में हो तो.....
लेकिन पता किया कि तुम वहां नहीं हो...
तुम्हारी सहेलियों से पूछा तो पता चला कि तुम पास ही एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने भी जाती हो...
सोचा कि शायद वहां हो तो वहां भी गया, वहां से मालूम हुआ कि तुम्हारे परिवार में किसी के कोई फंक्शन था तो तुम स्कूल भी नहीं आई थी!!
खैर,
मैं तो निकल पड़ा तुम्हारी एक झलक पाने.....
फटाफट रिक्शा पकड़ के आ गया उन गलियों में, सजावट काफी ज्यादा कर रखी थी मुझे अचानक से लगा कि मैं कहीं गलत जगह तो नहीं आ गया हूं....
पर तभी तुम घर से निकलकर सामने आ गई....
जानें किस काम से आई थी पर मुझे यूं सामने देखकर तुम हैरान हो गई थी ना.....
तुम्हें यकीन नहीं हो रहा था कि मैं ही था वहां...
खैर,
शायद तुम बहुत जल्दी में थी कोई काम होगा और मुझे भी कहां होश रहा जो कुछ पूछता, मैं तो बस तुम्हें देखता ही रहा जब तक कि तुम सामने से हट न गई....
वाह....
बाल आज भी उतने ही लंबे और घने बस मन में एक ही ख्वाब रहा है कि इनकी छांव तले सोया रहूं।
होठों पर वही नजाकत....
अरे यह क्या दुपट्टा उसी रंग का.... तुम्हें उस रंग से इतनी मोहब्बत कैसे हो गई...
कानों में आज भी वो ही बालियां....
और हेयर पिन भी उसी स्टाइल में जिस स्टाइल में जैसे कि मैंने तुम्हें एक बार लगाकर बताई थी मतलब कि तुम्हें पहले से मालूम था कि मैं आने वाला हूं वहां...
फिर.... फिर ऐसा नाटक क्यों जैसे कि तुम्हें कुछ मालूम न हो......
हां, तुम्हारी आदत है मुझे चिढ़ाने की जायेगी थोड़े ही।
खैर, तुम इतनी जल्दी में थी कि मुझे बिना कुछ बोले ही भाग गई... मैं कुछ देर तो वहां खड़ा रहा पर ज्यादा देर खड़ा रहता तो लोग क्या समझते इसलिए मैंने लौट जाना ही उचित समझा...
क्योंकि और तो कोई मुझे जानता ही नहीं था ना...
फिर पीछे से तुम फोन पर चिल्लाई तो मैं क्या करूं?
मैं बिन बुलाए कैसे रूकता?
खैर सुनो,
आज जब मैं लिख रहा हूं तो जहन में वो पल मौजूद है, वहीं मासूम चेहरा, नटखट अदा, लंबे घने बाल...
बिल्कुल चाँद....
अरे हां, याद आया!!!!
आज शरद पुर्णिमा है
मैं तुम्हारी तस्वीर देखूं कि चाँद?
हां,
कोशिश करता हूं कि कुछ तुम्हारी नजाकत को बयां करूं!
चलो कोशिश करता हूं मैं....

With love
Yours
Music
05_10_2017___19:25PM

©® जांगिड़ करन KK

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