Saturday 7 October 2017

Alone boy 25

कितने
क़रीने से
सजाता हूं मैं,
नरम मिट्टी से
सपने.....
एक कौने में
खुशबू,
दुसरे में
समर्पण,
तीसरा कौना
चाहत का,
चौथे में
जिंदगी......
बस इंतजार
किया था
प्रेम की
बूंदों का,
सपनों को
जमाने खातिर
मोहब्बत की
थपथपाहट का....
पर
वक्त जानें क्यों
अंधड़
लें आया
नफ़रत की
और
बिखेर गया
सपनों को,
ध्वस्त किया
अरमानों के
घरोदें को.....
मैं अवाक्
बस देखता रहा,
भावशून्य बन.....
मगर आंखों में
फिर से
वहीं
सपने
सजने लगे थे....
मालूम है मुझे
यही जिंदगी है!
......
©® Karan DC KK
07_10_2017__14:00PM

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