Sunday 8 January 2017

A letter to swar by music 18

Dear swar,
..................
"कुछ धुएं की फितरत है या नमी आँखों में,
सूरज की रोशनी भी मुझको चाँद सी लगे है।"
........................................
हां,
तो तुम्हें मेरा पिछला पत्र मिल गया है और तुमने बताया कि तुम्हारे शहर के दृश्यों से पत्र में वर्णित दृश्य काफी मिलते-जुलते हैं। अहा!!! मैं फिर तुम्हारे शहर की सैर कर आया मतलब?
मगर एक बात न मानती तुम, उन दृश्यों में खुद को नहीं देख पा रही हो? मगर क्यों?
मगर देखो ना!! मेरा पागल मन तो वहां तुम्हारे होने का अहसास कर रहा था। या शायद तुम झूठ बोल रही हो?
खैर छोड़ो!¡! तुम्हें पत्र अच्छा लगा जानकर बहुत खुशी हुई!!!
और अब आगे सुनो......
उस जगह पर ताल की ओर कुछ पदचिह्न दिखाई दिए मुझको, मैं तुम्हारे पदचिह्न ढूंढने की कोशिश करने लगा...  शायद तुम ताल के किनारे हो......
मगर शायद तुम वहां से जा चुकी थी, मगर तुम्हारी खुशबू वहां मौजूद थीं, तब भी....
और इस समय बहुत से पशु पक्षी ताल पर पानी पीने आयें हुए थे....
और तुम्हारी वो बकरियां भी पानी पीकर पहाड़ी की तरफ चलने लगी, तो तुम भी फिर फटाफट खेलना छोड़कर भागी...
शायद बकरियों की चिंता हो आई या मुझे देख कर शरमा के भागी। और ध्यान भी न रहा तुम्हें, अपना दुपट्टा झाड़ी में उलझा बैठी ना.... अब वापस आना ही था, मगर रुआंसी क्यों हुई जाती थी??
अच्छा!!!
दुपट्टा........ निकालें कौन?
अब एक नजर तुमने ताल की तरफ दौड़ाई, मैं समझ गया और भागा तुम्हारी तरफ।।
पर जानती हो ना हम भी ठहरे पक्के आवारा......... दुपट्टा छुड़ाकर साथ लिए चलते बने......
कानों में एक मिठ्ठी आवाज आई... अरे! दुपट्टा कहाँ लिए जाते हो ?
हम यही कह पायें.... तुमसे संभाला नहीं जाता, और हमारी मोहब्बत की निशानी है तो मेरे पास रहेगी।
तुम लगी चिल्लाने.... अरे!! मगर मैं घर ऐसे ही जाऊँगी क्या?
कह देना कि कोई आया था ले गया.... यहीं तो बोलना था ना!!
मगर!!! सुनो आशिक बाबू!! घरवाले डांटेंगे,  प्लीज दे दो...... लगभग रो ही देती!!
ओके!!! ले जाओ। मगर याद रहे, दुपट्टा भी हमारा दीवाना है, लौटकर वापस आयेगा.... हमने दुपट्टा हवा में लहराते हुए कहा था ना।।
.....................
और फिर तुमने दुपट्टा छीना, एक शर्मीली मुस्कान दिखाकर भागी.... मैं बस तुम्हें देखता ही रहा, जब तक की आँखों से ओझल नहीं हो गई।।
फिर मैं वापस ताल के पास आया, वहां पर गीली मिट्टी देखकर कुछ याद आया......
तुम्हें मालुम है ना इसी जगह पर हम गीली मिट्टी से घरौंदा बनाकर खेलते थे, गुड्डे गुडिया की शादी, सब याद है मुझे!!
वो घरौंदे और वो सपने कितने अच्छे थे, वो अपने ही मजे थे.... मगर समय की धारा सब बहा ले गई। न जानें कहां गए वो घरौंदे?
अब तो बनाता भी नहीं, मन भी नहीं करता, किसके लिए बनाउं? किसके सपने सजाउं?
कोई साथ हो तो उसे बताऊं!!
हां!! मैं सिर्फ उस ताल के किनारे बैठ कर अश्रु की दो बूंद गिरा आया... मेरी नम आंखों को ताल देख रहा था और मैं ताल का शांत पानी!!!  ताल का शांत पानी जैसे मुझे पुकार रहा हो, कि आओ ताकि मुझमें हलचल हो!
मगर मेरी जाना!!!!
अब वो हिम्मत, वो नटखटपन, वैसी नहीं रही, मैं अपनी मजबूर आँखों से मजबूर ताल को देखता ही रहा.........
न जानें कितनी देर तक!!!!!
और अचानक अलार्म की ध्वनि ने मेरी आंखें खोल दीं!!!
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मगर सुनो जाना...
मैं कल फिर देखुंगा, युही ताल, झाड़ियां...... तुम दौड़ते हुए आओगी ना!!!!
..........
With love
Yours only
Music
08/01/2017____15:00 pm

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