Saturday 15 December 2018

Alone boy 30

अक्सर
शिकायत रहती है
मेरे सारे दोस्तों को,
चाय से तुम्हारा
इतना
गहरा रिश्ता
कैसे?
हर पल तुम्हें
चाय की
याद सी क्यों रहती है.....
मगर मैं जवाब में
मुस्कुरा देता हूं बस,
कोई
फर्क सिर्फ पड़ता कि कोई
क्यों कर सवाल करता है?
मगर,
जब भी अकेले में सोचता हूं तो
चाय के साथ जुड़े
किस्से याद आते हैं,
साथ ही याद आती है,
तुम्हारे हाथों से
बनी वो आखिरी चाय भी
जिसको पी लेना मेरे बस में न था,
मैं आज भी
हर चाय के साथ वो
पल याद करता हूं,
याद करता हूं
उस अंतिम चाय से
उठते धुएं के उस पार
दिखती
मजबूर तस्वीर को,
याद करता हूं
उन लफ्जों को जो
तुमने खुद न बनाये पर
कहना तो
तुम्हें ही था........
अक्सर एक कप चाय से
तुम्हें
महसूस कर लेता हूं,
कभी खिड़की से,
कभी नीम पर,
कभी जंगल के उन पत्थरों पर.......
अंकित है जहां
तुम्हारे और मेरे
जिंदा होने के सबूत,
वक्त की गर्द ढक देगी हालांकि
इनको
मगर
चाय के कप उठते धूएं में
हर पल
कोई तस्वीर
मजबूरी की
मैं बनाता हूं
मिटाता हूं,
बनाता हूं
मिटाता हूं.......

©® जांगिड़ करन
15_12_2018

Note - 51 से बाद के लैटर के लिए एक पुस्तक छापने के की तैयारी में हुं पर अभी थोड़ा व्यस्त हुं, 2019 के अंत तक या 2020 में पुस्तक जरूर आ जायेगी 😜

1 comment:

  1. जब भी आपकी कोई नयी रचना पढता हूं दिल की गहराईयों से कुछ ऐसे शब्द निकलते है --
    वाह.. लाजवाब , शानदार , जानदार..जबर्जस्त
    गजब ..
    एक लम्बे अन्तराल के बाद भी कलम के पैनेपन में ज़रा भी कमी न आना बताता है कि आज भी सारे जज्बात जिंदा है .
    हार्दिक बधाई

    ReplyDelete

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...