Friday 18 December 2015

ओ हमजोली

आ हमजोली तेरे पहलुँ में सर रख के सो जाऊँ,
आज जमीं आसमाँ मिलने को है सबको बताऊँ।

कोई बात मौसम के मिजाज की हम कर लें,
आ सारी फिजाँ को अब हम बाहों में भर लें।
तुम हिरणी के बच्चे को पकड़ लेना जरा तो,
संग उसके पलों को हम तस्वीरों में कैद कर लें।
तेरी हिरणी सी आँखों में वहीं पर मैं खो जाऊँ ।
आज जमीं........................................

आओ कि इस झील में कुछ अठखेलियाँ कर लें,
इन मछलियों से भी जरा दिल की बात कर लें।
बैठ कर आम की छाँव में अरे ओ हमजोली,
सपनों की दुनियाँ में कुछ तो नये रंग भर दें।।
रख तु मेरी गोद में सर मैं तेरी जुल्फें सुलझाऊँ।
आज जमीं....

तेरी हथेली पे रख दुँ मैं हथेली अपनी,
फिर महसूस करूँ तेरी साँसों की धमनी।
चुम लुँ तेरे लबों को कुछ इस तरह से,
जैसे मिटानी हो बरसों की प्यास अपनी।।
फिर लबों से करन 'स्वर' तेरा ही गुनगुनाऊँ।
आज जमीं......................................

©® करन जाँगीड़
18/12/2015_22:10

No comments:

Post a Comment

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...