Friday 15 July 2016

अँधेरे का तलबगार

जानबुझकर गुनाह किया नहीं पर गुनहगार तो हुँ,
स्वर बिखर गये मेरे मगर उदासी  की झंकार तो हुँ।

तुम्हारी  जिंदगी में नहीं कोई अहमियत अब मेरी,
मगर याद है मुझे मैं ही तुम्हारा पहला प्यार तो हुँ।

बस्ती मैं  तेरी मुझे  भला पहचानेगा  कोई कैसे,
तेरी  जिंदगी  से  भी मैं गुमनाम  चेहरा  तो  हुँ।

ना चिराग ना ही किसी जुगनु की जरूरत है मुझे,
बिन चाँद तन्हा जीने को अँधेरे का तलबगार तो हुँ।

युँ अफवाह  तो  न उड़ाओ  कि  हार गया है 'करन',
मंजिल न मिली न सही मोहब्बत की राह पर तो हुँ।
©®जाँगीड़ करन kk
15-07-2016__18:40pm

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