Friday 26 August 2016

A letter to swar by music 9

Dear swar,
"प्रेम की धुन तुने ऐसी बजाई,
भोली सी राधा को बावरी बनाई।
काहे अब मुँह फेर लीनो कन्हाई,
जरा मेरी भी तो सुन हरजाई।।"
...........................................
हाँ तो देखो.....
मैं तुम्हें आज फिर लिखने बैठा हुँ क्योंकि मेरा स्वर तुम हो, वरना मेरे ये लफ़्ज किस काम के। बेशक तुम अभी दूर हो मुझसे मगर एक दिन तुम्हें आना ही है, तुम जानती हो ना कृष्ण और राधा का प्रेम जगत विख्यात है। हर किसी की जबान पर बस राधे कृष्ण, मगर तुम यह जानती हो इस अमर प्रेम की वजह क्या है? हाँ इस अमर प्रेम की वजह है राधा का त्याग, समर्पण और स्वीकारोक्ति!!
हाँ तो... कृष्ण ने राधा को छोड़ दिया और रूक्मण से शादी कर ली थी मगर राधा इंतजार करती रही कि कभी तो मुरारी वापस आयेंगे, कभी तो मेरी सुध लेंगे।
अब यहाँ मैं तुम्हारी राधा हुँ, विरहण राधा, तुम मेरे कृष्ण, जानता हुँ कि तुम्हें रुक्मण और भामा मिल जायेगी, पर मैं अब भी तुम्हारी राह ताकता रहता हुँ, कभी तो तुम बाँसुरी की धुन सुनाने आओगे जरूर...
हाँ मगर एक बात का ख्याल रखना, मैं जादुगर नहीं हुँ, ना ही राधा सी नटखट अदायें, चंचलता आदि है। पर मैं तुम्हें दिल से प्रेम करता हुँ, सदैव तेरे संग रहना चाहता हुँ... तुम न जानें क्या सोचती हो... मगर मेरा तो मन करता है कि मैं अभी तुम्हारे शहर आ जाऊँ और तुम्हारे कॉलेज के गेट पर खड़ा रहुँ, बस तुम्हारे आने के इंतजार में। मुझे मालुम है उस दिन तुम कॉलेज नहीं आओगी, तुम अब क्या चाहती हो यह तो नहीं पता मगर एक बात है तुम अब भी महसूस कर लेती हो ना मुझे कि मैं तुम्हारे शहर में आया हुँ। हाँ तो... देखो।। कभी आकर देखो.... हम वापस उस बगिया में जायेंगे जहाँ हम दोनों हो और चिड़िया की चहचाहट! हम उनमें पुराने दिनों को याद करेंगे, मगर तुम आओ तो.......
और सुनो मेरे कृष्ण,
तुम्हारी यह राधा, हाँ विरहण राधा सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे इंतजार में रहती है, तुम जानो समझो, मैं मजाक नहीं कर रहा हुँ, तुम शायद न सोचो, मगर मैनें देखा है... तुम्हारे संग... वो एक सपना... जब हम दोनों बुड्ढे हो जायेंगे और लकड़ी के सहारे सहारे फिर उस बगिया में जाकर पुरानी यादें ताजा करेंगे, चिड़िया का गीत सुनेंगे। तुम अभी तो खिलखिलाती हो ना तो तुम्हारे सफेद जग दाँत बहुत प्यारे लगते है, पर उस समय दाँत न होंगे और तुम खिलखिलाओगी तो हो ही, हाँ मुझे तब भी उतनी ही अच्छी लगोगी, मैं तुम्हारे चेहरे की झुर्रियों में खो जाना चाहुँगा ताकि तुमसे दूर न रहुँ।
हाँ...... मेरे कृष्ण(स्वर) मैं तुझमें समा जाना चाहता हुँ, सदा सदा के लिये.... कभी तुम मेरे द्वार आओ तो.... और तुम्हारे इंतजार में...

"मैं राधा बावरी कृष्ण संग प्रेम रचायो,
हुई वा भूल जो कृष्ण लुँ दिल लगायो।
लोग बाग न जाने मैं विरह की मारी हुँ,
बस कहत फिरत है प्रेम रतन धन पायो।।
                  (राधा विरहण)...............

With a bite of love
Yours
MUSIC

©® जाँगीड़ करन kk
26_08_2016___4:00 AM

Photo borrowed from Google with due thanks

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