Wednesday 24 August 2016

ख्वाब निराले

जिंदगी कुछ तेरे कुछ मेरे ख्वाब निराले,
जब लिखे वक्त ने अंधेरे तो कहाँ उजाले।

वो पल ज्यादा ही अजीब रहा होगा शायद,
कोई होले से बोला था मुझसे दिल लगा ले।

जब से  चुराई नींद मेरी  इक चिड़िया ने,
चाँद रोज कहता है कुछ तो नजर हटा ले।

कब होश रहता है ऐसे हालातों में जब,
वक्त के पाँव दबाते पड़ हो हाथों में छाले।

रहता क्यों तु हरदम ही गुमसुम सा करन,
कभी  तो किसी बच्चे सा  खिलखिला लें।
©® जाँगीड़ kk
24_08_2016____09:00AM

4 comments:

  1. वाह दादा लाजवाव

    ReplyDelete
  2. सूपर्ब..
    कोई जवाब नहीं..
    बेहद उत्कृट सृजन !
    जोरदार विन्यास..

    ReplyDelete
  3. शुक्रिया जी।।

    ReplyDelete

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...