Dear swar,
चार साल बाद आज फिर कान वो आवाज सुनने को बैताब थे, हां प्रिये,
चार साल पहले का वो दिन तुम्हें याद होगा, वहीं जगह, वहीं प्रोग्राम और वही हालात, हां!! कुछ पात्रों की कमी थी आज। आज साथ में सिर्फ गुड़िया ही थी जिसे वो घटना अच्छी तरह याद है...
अब तुम्हें याद दिलाता हूं मैं चार साल पहले की घटना, सराय के पास बैठे थे हम सब, और हमारे हिस्से में थी मात्र दाल( हां, प्रिये!! उस वक्त तो लापसी भी खत्म हो गई थी ना, कुछ हलवा वगैरह बनाया जा रहा था फिर), हां हम दाल भी कितने चटकारे से पी रहे थे, और तुम्हें हम पर हंसी आ रही थी। पता था हमें कि दाल में नमक इश्क का कम था हमें तो मालूम नहीं था वो तो तुमने ही कहां था कि करन जी मैं नमक लेकर आऊं?
और बिना मेरा जवाब सुने सरपट भागे और जानें कहां से लें आयें दोना नमक से भरा हुआ और यह क्या अरे! रूको यह काफी है, मगर तुम न रूकने वाली थी। हां, पर दाल का स्वाद जानें क्यों मीठा हो गया और दाल के नाम से घबराने वाला मैं केवल दाल को ही पीने लगा। इधर तुम जानें मुझमें क्या देख रहे थे और उधर दाल में मैं तुमको ही देख रहा था, नमक की जगह अपने प्रेम को मिलाते हुए और जब से फिसला जिंदगी में तो अब तक संभलना नहीं आया और अब तो संभलने का मन भी नहीं करता....
और आज जब चार साल बाद गुड़िया के साथ उसी जगह गया तो जिंदगी खुद ब-खुद यादों की तस्वीर सामने लें आई, आज लापसी(गेहूं के दलिये से बनी हुई) तो थी, हां पुड़ी की थोड़ी सी कमी थी मगर वो हमको महसूस नहीं हुई,
हां, आज भी दाल में नमक कम था मगर मैंने किसी को कहा नहीं लाने के लिए, बस इंतजार करता रहा कि कब आवाज आ जायें, "करन जी! मैं नमक लेकर आऊं"?
30_5_2017__20:30PM
और मैं, मेरी चिंता न कर मैं तो कर्ण हुँ हारकर भी अमर होना जानता हुँ
Tuesday 30 May 2017
नमक इश्क का
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