Saturday 26 March 2016

On the highway of life

जिंदगी के राजपथ पर
मैं चलता रहा हुँ।
कभी धूप में जलता रहा हुँ,
तो कभी बारिश में
भीगता रहा हुँ।

मेरे पाँवों में छालों का आवागमन रहा है,
कभी एक अश्रु से
इन्हें धोता रहा हुँ,
तो कभी तुम्हारी यादों
के स्टेशन पर छाँव देता रहा हुँ।।

अक्सर जमाना
बड़ी बड़ी लक्जरियों सा
आगे निकल जाता है,
मैं बस तुम्हारे साथ की आस में बिना किसी को हाथ दिये
चलता रहा हुँ।।

पास के ट्रैक से तुम
शताब्दी से निकल गई हो
मंजिल के लिये,
बिना मेरी ओर
ध्यान दिये,
और मैं बस तुम्हें ही
ताकता रहा हुँ।।

तुम वक्त से पहले
मंजिल पर पहुँच चुके हो,
मैं एक तन्हा राही हुँ,
पर निरंतर चलता तो रहा हुँ।
©® जाँगीड़ करन KK
26.03.2016.17:55 pm

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