Friday 15 April 2016

तेरी महफिल

महफिल में भी खुद को तन्हा पाया हुँ।
जाने खुद को किस मोड़ पे ले आया हुँ।।

ये ऊजाले ये चकाचौंध सब बैगाने है,
मैं अंधेरी गुफा में रहता इक साया हुँ।

जरूरतों से बदल जाते है रिश्तों के मायने,
हर मोड़ पर जमाने के लिये आजमाया हुँ।

अहसास खुद के होने का भी नहीं है मुझको,
क्या फिर भी मैं कोई चलती फिरती काया हुँ।

तुमने गौर से देखा नहीं अपने दिल में,
मैं और बस मैं ही तो इसमें छाया हुँ।

और तो मालुम ही नहीं क्या बात है 'करन',
पर सोचुँ तुझे ही और तेरा ही 'स्वर' गाया हुँ।
©® जाँगीड़ करन KK
14/04/2016_20:50 pm

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