Sunday 13 August 2017

A letter to swar by music 34

Dear Swar,
..................
बहारें तस्वीर से आयें या हकीकत से,
जिंदगी तो हर हाल में खिलखिलानी है।।
........
और देखो,
इधर बरसात के बाद रौनक ही रौनक छाई है, हर एक के चेहरे पर खुशी, हर तरफ हरियाली, नदी में बहता वो निर्मल पानी... कुछ कुछ तुम्हारे ख्यालों से मिलता जुलता है। देखो ना..... मिट्टी से कोई खुशबु निकल रही है जैसे।
नदी के पानी में अठखेलियां करते पंछी न जानें किस बात की याद दिलाना चाहते हैं, इनके परों से उछलते पानी की कलाकृतियां अपने आप में अद्भुत होती है, शाम को सूरज की लाल पीली किरणें जब नदी के बहते पानी पर पड़ती है तो जिंदगी के सभी रंगों को अद्भुत तरीके से प्रस्तुत करती है।
सुनो,
नदी के पानी की कल-कल जिंदगी के सुमधुर संगीत की याद दिलाती रहती है, क्या तुमने कभी अकेले में सुना है नदी के इस संगीत को, क्या कभी झरने से बात करने की कोशिश की है, क्या तुम्हें याद है नदी के पानी में हम दोनों अपने पैरों को डुबाये कुछ गुनगुनाते थे, चलो मैं ही बता देता हूं.......
...........
तु जब जब मुझको पुकारे, मैं दौड़ी आऊं नदी किनारे......
...........
हां, अब तो याद आया ही होगा.....
आवाज़ में तुम्हारी कैसी मासुमियत थी ना, अरे! वो तो अब भी है, बस मजबूरियों की बंदिश लगा दी तुमने अपनी जुबान पर.....
सुनो,
मैं अब भी वहां बैठ कर नदी की कल कल के साथ वही गीत गुनगुनाता है, किसी जवाब की प्रतीक्षा में मगर नदी की कल कल और हवा की सरसराहट के अलावा कुछ भी नहीं सुनाई देता.........
खैर मैं बैठ कर तुम्हें याद तो कर ही लेता हूं......
.....
अब सुनो,
तुमने अभी अभी कुछ कहां था मुझे, ऐसा मुझे लगा। हां, मेरे कानों में वही प्यारी सी आवाज आई... "चिशमिश"?????
अबे!!! तुम भी तो idiot हो ना....
और सुनो,
चश्मे की अपनी कहानी, पता है मैं हर रोज जब चाय पीता हूं तो चाय के कप से उठती भाप चश्मे के काँच पर छा जाती है, पता है तब चाय या कटोरी नहीं दिखती मुझे। हां, इस धुंध लगे काँच से जब धुंध हटती है धीरे धीरे तब ना!!! तब तुम्हारी तस्वीर बनाती जाती है और काँच बिल्कुल साफ होने पर चाय में भी तुम ही नजर आती हो, और मगर....
मगर यह क्या मैं ज्यूं ही कप को होठों से लगाने के लिए उठाता हूं तो तुम गायब... हां, ठीक है... पता है तब चाय का स्वाद और भी बढ़ जाता है!!!!
अरे हां याद आया!!! और idiot, चाय बनाना सीख गई या वहीं चासनी जितनी मिठी? और फिर कहना कि थोड़ा दूध और डाल दो ठीक हो जाएगी!
.......
और सुनो,
इस बारिश के मौसम में चश्मा पहने मैं जब बाइक पर कहीं जा रहा होता हूं तो पता है बारिश आ ही जाती है और चश्मे के काँच पर पानी आ ही जाता है कुछ पल मैं परेशान हो जाता हूं कि सामने देखूं कैसे?
और परेशान होकर मैं चश्मे को सर पे ऊपर चढ़ा लेता हूं पर यह क्या यह तो वापस नीचे खिसककर आंखों के सामने ठहरता है और साथ ही फ्रेम के कॉर्नर पर तुम दिखाई देती हो चश्मे के काँच से पानी साफ करते हुए।
बारिश रुक जाती है, चश्मा साफ है मैं तुम्हें देखने के लिए चश्मा उतार कर देखता हूं मगर तुम वहां नहीं हो,
तुम सच में वहां थी क्या?
या
यह मेरा भ्रम था!!
.......
और सुनो,
तुम्हें मालूम है ना जब भी तुम सामने आती हो मैं चश्मा उतार कर देखता हूं तुम्हें...
...
खैर तुम नहीं समझोगी, मैं तो युही कहता रहता हूं, मगर करूं भी तो क्या?
यही कर सकता हूं ना!!
......
दिल में बसी कोई तस्वीर जो है,
बिन नैन खोलें भी देख लेता हूं मैं
......
हां,
सुन idiot अपना ख्याल रखना...
...
With love
Yours
Music

©® जांगिड़ करन kk
13_08_2017__19:00PM

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