Tuesday 16 January 2018

A letter to swar by music 44

Dear Swar,
......
जिंदगी तेरी महफ़िल फिर छोड़ आये है,
तनहाई में महबूब को महसूस करने आये है।
........
सुनो प्रिये,
सर्दी का असर कुछ कम होने लगा है अब, यह अभी थोड़ी सुहानी सी लगने लगी है, रात भी अब कम लंबी होने लगी है, सूरज मामू भी आंखें खोल जल्द ही आ जाते हैं, खेतों में सरसों के पीले फूल मनोहर दृश्य प्रस्तुत करते हैं, पगडंडी पर जगह जगह पड़े पत्थरों और मिट्टी के छोटे छोटे ढेर कुछ अलग ही अहसास कराते हैं जैसे किसी ने सपनों का संसार यहां बसाया हो, शाम ढले घर लौटती गायों का स्वर भी कितना मनोरम लगता है, और रात आज अमावस्या की थी पर.......
मैं जब भी छत पर आता हूं अकेले में मुझे तो चांद नजर आ ही जाता है....
........
छितरी है चांदनी जो दिल की गहराई तक,
रात का अंधेरा भी उसको सुहाना लगें।।।।
........
खैर,
जिंदगी के अपने उसूल है जो हम सब पर लागू होते हैं, समय के साथ-साथ सालभर में खेल, खान-पान, तौर तरीके बदल जाते हैं, यह वक्त का ही तो फेर था....
अभी मकर संक्रांति थी, सभी पतंग उड़ानें में व्यस्त थे... मैंने इससे पहले कभी पतंग नहीं उड़ाई थी!!!
तुम्हें तो मालूम है ना कि मैं तो बचपन से गिल्ली डंडा, सतोलिया या कंचे खेलने में माहिर था यह पतंग उड़ाना कभी सीखा ही नहीं।
पर क्या करूं,
जब सब उड़ा रहे थे तो मुझे भी उड़ाना ही था, शूरु में तो पतंग उड़ाना भी ऐसा लगा जैसे किसी प्लेन को क्रेश होने से बचाना पर जल्दी ही मैं सीख गया.....
मकर संक्रांति के दिन यूंही छत पर से पतंग उड़ा रहा था मैं आकाश साफ था हवायें भी शांत थी.....
बस चारों तरफ नजर आ रहे थे तो पतंग, ये कटी, वो कटी, अरे देखो वो इतनी ऊपर, अरे यह भी कट गई।
रंग बिरंगी पतंगों से सजा आकाश किसी दुल्हन से कम नहीं लग रहा था और इन पतंगों पर पड़ती सूरज की किरणें तो इसके रूप पर चार चांद लगा रही थी।
और मैं तो पतंग उड़ाते उड़ाते इसी ख्याल में खो गया कि जैसे कि यह तेरा रूप हो.........
खैर,
देखो तो!!!!!
मैं जब पतंग उड़ा रहा था तो पतंग बार बार तुम्हारे घर की दिशा की ओर जा रहा था,
पता नहीं पतंग को कहां से सब कुछ पता चल गया कि तुम्हारे बिन यहां सब सूना सूना है.....
मैं बार बार खींच कर दूसरी तरफ मोड़ता हूं पर यह सब पतंगों से अलग होकर बार बार फिर से उसी तरफ आ जाता है शायद यह भी मेरी तरह तो नहीं हो गया है तुम्हें देखने की मंशा लिए हो।
मैं भला क्यों मना करता मैंने भी ढील दे दी जितनी उसने चाही...... और वो सुदूर आकाश में तुम्हारे घर की दिशा में कहीं खो गया पता नहीं बहुत दूर जाने से नज़र भी नहीं आ रहा था मैंने भी फिर उसकी डोर को खुद ही काट दिया.....
देखना तुम जरा कहीं आया हो तो..
शायद उस तालाब किनारे आकर इमली के पेड़ पर अटक गया हो,
या
आपकी स्कूल की छत पर आ गिरा हो,
या
उस पगडंडी पर जा गिरा हो जिस पर से गुजरते हुए आप पनघट पर पानी लेने जाती है।
हां,
देखना जरा......
पतंग पर मुस्कुराता हुआ एक चेहरा बना हुआ है और उसकी पूंछ भी तुम्हारे सबसे प्रिय रंग की लगाई है मैंने।
हां....... मिल जाए तो संभाल कर रखना!!!
।।।।।।।।।
यह तो हुई मेरी बात,
तुम सुनाओ,
मैंने सुना है आजकल तुम बहुत ही गंभीर रहने लगी हो, मुझे तो हंसी आती है सुनकर कि गंभीर और वो भी तुम।
पर सुना है तो सच ही होगा......
पर सुनो,
इधर वक्त मेरे साथ बहुत ही गंभीर है एक पल, एक दिन या एक साल सब ही मेरी परिस्थिति का मखौल उड़ाते हैं....
मुझे हराने की बात करते हैं, मगर सुनो ना!!!!
मेरी ताकत तो तुम हो ना,
मैं तुम्हारे दम पर ही तो अड़ा हुआ हुं....
बस, मेरे हारने से पहले लौट आना।
!!!!!
तुम्हें पुकारती है जिंदगी की आस कोई,
फकत श्वास से जीना दूभर सा लगें......
!!!!!
हां,
अपना और अपनी मम्मी का ख्याल रखना।

With love
Yours music

©® जांगिड़ करन kk
16_01_2018___6:00AM

No comments:

Post a Comment

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...