Thursday 4 January 2018

A letter to swar by music 43

Dear swar,
Happy New.........
& Also happy winter....
........
जिंदगी धुंध से
परे
जिंदगी को
खोजती है।
रात आंखों में
चांद
की
दस्तक
यह चांदनी
किसकी जो
नींद
खोलती है।
पर्दे पर
जो
हाथ लगा
यूं
लगा कि जैसे
घूंघट हो उठाया,
मैं तो बस
चांद देखता रहा,
वक्त की बातें
हैं
बेबसी
कहां बोलती है........
!!!!!!!!
हां........
तुम्हें आया कुछ समझ में......
मैं तो इतना ही कहना चाहूंगा कि गली में आज चांद निकला।
...…....
हां तो
सुनो ना पार्टनर......
कल रात थकान के बाद मैं गहरी नींद में सो रहा था, न सर्दी की परवाह ना ही परवाह थी वक्त के चलाये कुचक्र की!!!
बस......
आंखें बंद थी!!!!
कि अचानक.......
आंखों के सामने कुछ हिलता हुआ सा लगा.....
जैसे कोई खिड़की के पर्दे को
हिला रहा हो......
पर्दे की
आती ठंडी हवा ने
आंखों को
कैसा सुकून दिया.....
मैं जागते में उसे
बयां नहीं
कर सकता...... बस उस खिड़की की ओर नजर गड़ाए देखें जा रहा था!!!! और फिर..... हौले से एक हाथ पर्दे के इस पार आ पहुंचा था!!! हां, पहचानने में देर नहीं लगी मुझको!!!
न वो हाथ भूल सकता हूं न हाथ पर बंधी हुई घड़ी.....
घड़ी की चैन में दोनों ओर दिल की आकृति, हर कड़ी की अगली कड़ी से उलझी हुई अंगुली.....
जैसे कि दोनों दिलों को मिलाने की कोशिश में लगी हुई हो!!!!
और फिर.........
पर्दा हटा जैसे ही!!!
मेरे आंखों में एक चमक सी आई!! जैसे चांदनी की किरणें मेरे चेहरे से आ टकराई हो.......
पता है!!
उस वक्त घर की रेलिंग पर खड़ा खड़ा जानें किस ख्याल में खो गया कि गिरते गिरते ही बचा था!!!
।।।।।।।।।।।।
खैर......
बंद आंखों में सपने देखने का मजा ही कुछ और ही है....
वो भी देख लेता हूं जो शायद जागती आंखों से न पाऊं या न ही सोच पाऊं.....
अब देखो ना!!!!
उस वक्त खिड़की से झांक कर कुछ कहना चाह रही थी पर मैं किसी के साथ खड़ा था तो तुम्हें भी लाज आ गई....
बस तुम भी देखती रही मुझे और मैं तुमको...
और फिर.....
तुम्हें न जाने क्या सुझा कि छत से नीचे उतरकर मेरे घर की ओर चल दी, जानें क्या चल रहा था तुम्हारे मन में....
मैं तो बस तुम्हारे पीछे पीछे आ रहा था!!!
तुम्हारे स्वागत के लिए मुझे आगे होना चाहिए था पर जानें क्यों मैं पीछे रहा......
हां......
पीछे से तुम्हारे चलने के अंदाज को देखता रहा कि वाह... आज भी वही नटखटपन था....
खुलें बाल जब कंधे पर इधर उधर बिखरते हैं तब तो तुम गजब की लगती हो!!!
तुम घर पहुंच कर....
जानें क्या क्या करने वाली थी!!! मैं सोच सकता हुं,।
अरे यह क्या?
मोबाइल??
मेरा मोबाइल क्यों चैक क्यों कर कर रही थी? जानें तुम क्या ढूंढ रही थी उसमें?
कुछ मिला भी या?
खैर!!!
तसल्ली हो गई होगी तुम्हें भी.....
!!!!!!
मैं भी न।।
क्या लेकर बैठ गया हुं......
।।।। पर क्या करूं?
बंद आंखें जो देखती है वहीं तो तुम्हें लिख सकता हूं.....
जागती आंखों में तो तुम्हें देखें कितने बरस बीत गए गिनना मेरे बस में भी नहीं!!!
और मैं गिनता भी नहीं.....
बस......
इतना सा मालूम है नींद में होऊं या नहीं चेहरा हरपल तुम्हारा ही नजर आता है मुझे.....
........
खिड़की के उस पार भी
इस पार भी।।।
हवा से
खिड़की के खड़खड़ाने की आंधी
आवाज भी
तेरे होने का अहसास कराती है!!!
और कोई छाया सी
जब दिखती है
मैं
गुनगुना लेता हूं.....
।।।।
तुम आयें तो आया मुझे याद
गली में आज चांद निकला....
......
ठंड काफी है अपना ख्याल रखना!!!
......
With love
Yours
Music

©® Jangir Karan KK
04_01_2018___15:00PM

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