Monday 19 February 2018

शून्य या अनंत

मैं
शून्य हुं
या
हुं अनंत......
खुद को भी
मालूम नहीं!!
पेड़ से
टूटकर पता
गिरता है....
हर तरफ से अकेला,
दर्द से कराहता..
बस
सूखकर पीला पड़ता जाता है....
जानें किसकी आस में
फिर भी
इधर उधर उड़ता
भटकता है।
खुद के वजूद को
बचाने खातिर
हर क्षण वो
लड़ता है....
पता नहीं
कोई
पशु कब चबा जायें उसको
और
शुन्यता को चला जायें वो....
या
कोई
जलाकर राख बना दें..
वो तो फिर भी
सही है..
जलना जरा मुश्किल है,
पर
अनंत युहीं नहीं
बना जाता....
राख होकर
हर जगह बिखर जाना है..
हर पौधे में
समाकर
खुद को
बचायें रखना है....
बस
देखना अब यह है
नियती
किस ओर
लें जाती है
शुन्य होने को
या
अनंत का
मार्ग दिखाती है........
मैं
पता टूटकर जानें
किसकी
तलाश
करता हुं.....
छलने का ही दौर है,
खुद को ही
छलता हुं....
©® जांगिड़ करन kk
19-02-2018__07:00AM

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