Saturday 3 October 2015

विषपान

ख्वाब जो छुटे हुए है पीछे उन्हें पुकार लुँ,
एक लम्हा बचपन का फिर से गुजार लुँ|

ऐ वक्त थोड़ा सा तो और ठहर जा,
मैं ऊनकी बिखरी हुई जुल्फें सँवार लुँ|

ये उदसियाँ ही भरी है महफिलों में,
हो जो मुस्कान थोड़ी सी मैं भी बुहार लुँ|

कई दफ़ा दर्द दिया है मैनें लोगों को,
देकर मुस्कान सबको मैं भूल अपनी सुधार लुँ|

विषपान करने को कोई भी तैयार नहीं 'करन'
चल खुद ही हलाहल को हलक में ऊतार लुँ|

©® करन जाँगीड़

No comments:

Post a Comment

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...