Monday 31 July 2017

A letter to swar by music 32

Dear swar,
.......
मौसम ने पुकार सुनी है मेरी शायद,
यह सुनी सी नदी भी कल कल करने लगी।
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सुनो,
मैंने अपने पिछले एक पत्र में जिक्र किया था ना कि मौसम भी तुम्हारी तरह बेरूखा हुआ जाता है शायद... मगर देखो ना!!
सावन आया है, हां!! सावन तो जिंदगी के लिए खुशियों की सौगात लेकर आया... तेरी जूल्फों सी घनी काली घटाएं, तेरी मुस्कान सी झमाझम बारिश, तेरी लहराती चाल सी यह बल खाती हुई नदी......
............
गीत कोई गुनगुनाना सीखें तो नदी हाजिर है,
इसके सुर में सुर मिला कर गाओ तो जरा।।।।
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हां प्रिये,
पिछले कई दिनों से सबके चेहरे पर चिंता की लकीरें थी कि बारिश होने के आसार कम है तो जानें क्या होगा अब!! मैंने कहा था कि हर चेहरे पर उदासी है, हां!! मैं भी तो उदास था मौसम की इस बेरूखी से!!
मगर अब!! अब जब मौसम ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है तो सबके चेहरे खिल से गये है, हर तरफ खुशी के गीत गाए जा रहें हैं, सबकी जिंदगी में खुशनुमा पल आया है.....
हां!! मैं भी तो खुश हूं, सबके चेहरे पर जो खुशी देखता हूं तो खुश होना लाज़मी भी है.....
पर!!
पर सुनो जान!! यह सावन भी वैसा ही है जैसा कि पिछला सावन था, बिन तुम्हारे यह वैसा ही सूना सूना है..
तुम जानती हो ना......
और सुनो,
सावन के इस रूप को और ज्यादा गहरा रंग देने के लिए पेड़ पौधों ने भी अपना रूप दिखाना शुरू कर दिया है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली.....
और फूल वाले पौधों पर फूलों ने भी खिलना शुरू कर दिया है....
और देखो...
उधर पेड़ों के झुरमुट से किसी के चहकने की आवाज आई है, तुम तो नहीं हो उधर,
मगर ये आंखें उस ओर टकटकी लगाए देखती रही,
जानें कब तक..
.........
देखो ना!!!
नदी के बीचों-बीच जो वो पत्थर है ना, हां! वहीं पत्थर जिस पर बैठकर कभी हम तुम जिंदगी के सवालों को हल करने की सोचते थे.. हां!! वहीं पत्थर!! उसके चारों तरफ पानी भर गया है, ज्यादा गहरा नहीं है। उतना ही पानी है जितने में हम तुम पार कर उस पत्थर पे जा सकें, बिल्कुल उतना ही जितना कि उस वक्त भरा हुआ था जब हम पहली बार उस जगह गये थे। तुम्हें तब भी डर लगा था ना, मगर मैं बोला था कि डरना नहीं.... मैं हूं ना!!!!
सुनो,
तुम फिर आओ ना.....
फिर वहीं पर जाकर बैठते हैं, कुछ सवाल बाकी है ऐसे जिनके जवाब तब ही मिल सकते हैं जब तुम साथ हो....
सुनो!! आओ ना!!!! पानी में एक साथ पैर रख कर कुछ देर बेवजह ही बैठे रहेंगे, बड़ी राहत मिलती है इससे, तुम्हें भी मालूम है ना?
आओ ना!! फिर उस पानी में हथेलियों से छपाक छम करें, और तुम्हें मालूम है इसी के साथ तुम्हारे पाजेब की धुन कितनी मधुर लगती थी, जैसे प्रकृति का सबसे सुरीला संगीत हो....
आओ ना!! मैं फिर नदी के उस कल कल के संगीत के साथ तुम्हारी मधुर आवाज को सुनते हुए तुम्हारी बांहों में सोया रहना चाहता हूं......
सुनो!!!!
तुम आ जाओ ना!!
........
मुझे मालूम तुमको नहीं आना है, पर मेरी जिंदगी के हर पल में यह आदत बन चुकी है....
मैं तो कहता ही रहूंगा....
और अंत में आज ही के दिन लिखे letter no. 8 से ये पंक्तियां फिर गुनगुना लेता हूं.....
.....
जब तुमको न आना था तो क्यों यह सावन आया है,
रहना है युहीं तन्हा तो क्यों चिड़ियों का कलरव लाया है।
कैसी जिंदगी है क्यों है यह बेबसी का आलम यहाँ पे,
कभी समझ आयेगा बस ये ही मैनें दिल को समझाया है।।
...........
With love
Yours
Music

©® जांगीड़ करन KK

#नोट-चित्र के अलावा सब काल्पनिक है।
#चित्र- आज ही उसी नदी की धारा में खींचे हुए।

3 comments:

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  2. सावन आया झूम के सर क्या बात है।
    लाज़वाब

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