Thursday 28 January 2016

माँ कहाँ हो तुम

जो पल चला गया है वो कभी लौटकर नहीं आया,
गौरैया भी उदास है आज उसने गीत नहीं गाया।

बहला के देख चुका हुँ दिल को हजार बहानों से,
बचपन का सा मजा फिर भी कहीं नहीं आया।

कैसी भागदौड़ में गुम सुम हुआ सा जाता हुँ मैं,
दर्पण भी बोला मुझसे कई दिनों से नहीं मुस्कुराया।

आज कार का सफर भी उदासी भरा लगता है,
पिता के कंधे पे मेले में जाने सा मजा नहीं आया।

कैसी बैचेनियाँ दिल में घर कर चुकी है न जानें,
कई दिनों से 'स्वर' खुशी का कोई नहीं गुनगुनाया।

हर एक दर पर सजदा कर के देख चुका है 'करन',
माँ के चरणों सा सुकुन फिर भी कोई दे नहीं पाया।

©® जाँगीड़ करन kk
28/01/2016_22:30 pm

चित्र- साभार गुगल

No comments:

Post a Comment

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...