Monday 20 July 2015

माँ सुन रही हो ना

कोई ख्वाब मेरा जिंदा दफऩा देता है यहाँ,
सीने में दर्द तो होता है ना माँ,

मेरी आँखों का समंदर तो सूख चुका है अब,
फिर भी कोई रूला देता है ना माँ,

जिंदा रहने की कोई सूरत ही नहीं दिखती,
फिर भी देख जिंदा रह लेता हुँ ना माँ,

यह जख्म जहाँ का बहुत तकलीफ देता है 'करन',
मुझे अपनी गोद में बुला लो ना माँ!!
©® karan DC  20-07-2015

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