Thursday 9 July 2015

तो क्या हर्ज है

फुलों की चाह रखते है यहाँ लोग सभी,
मैं गर काँटों की तमन्ना करूँ, तो क्या हर्ज है!

चाँद भी जा छिपा आज बादलों के पीछे,
मैं जुगनुँ की रोशनी ले चलुँ, तो क्या हर्ज है!

यहाँ हर कोई छुपा हुआ है मुखोटे में,
मैं चेहरा दिखा के चलुँ, तो क्या हर्ज है!

दुनियाँ डरती है आज जिसकी तपन से,
उस सुरज को निगलने चल पडु़ँ, तो क्या हर्ज है!

यहाँ सब डुबे हुए है गम के गीतों में,
मैं 'स्वर' जुनुन का गुनगुनाओं, तो क्या हर्ज है!!
©® karan DC (09-07-2015)

No comments:

Post a Comment

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...