Sunday 19 February 2017

ख्वाबों का गीत

नसों में है दर्द भरा पर  मुस्काने आया हुँ,
वक्त तेरे जख्मों को ठेंगा दिखाने आया हुँ।

अक्सर तेरे घावों से पथ का राही घायल है,
अपनी पीड़ा भूलकर मरहम लगाने आया हुँ।

स्वार्थ  के  बोझ  से दब  रही दुनियाँ को,
परहित का आज फिर संदेश सुनाने आया हुँ।

जग  में  नफरत तुम क्यों घोल  रहे हो,
भाईचारे की नैया से प्रेम उठाकर लाया हुँ।

बदला बदला सा तो मेरा स्वर है करन,
अपने टूटे ख्वाबों से गीत बनाने आया हुँ।
©® जाँगीड़ करन kk
19/02/2017__11:00AM

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