Thursday 23 March 2017

उम्मीद का सूरज

मैं  तरन्नूम  में  खुशबू  भर  देता  हुँ,
बिन  लफ्ज़  के  गुनगुना  लेता  हुँ।

कहां खोया है चाँद अमावस्या को,
अँधेरे में  मैं मालुमात  कर लेता हुँ।

आकाश भर सपने हैं मेरे दिल में तो,
मगर किसी अहसास को जता देता हुँ।

जिंदगी की उम्मीद जब खत्म हो जायें,
तो भी मैं कोई सूरज नया ढूँढ लेता हुँ।

कभी आईना जरा गौर से देखना तो स्वर,
मैं करन हुँ खुद को तुझमें बसा लेता हुँ।।
©® जाँगीड़ करन kk
22_03_2017__7:00AM

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