Friday 31 March 2017

अलविदा जिंदगी

कहां तो,
साँसें बची है,
कहां कोई ख्वाब जिंदा है,
बस शायर के
लफ़्जों में
कोई अहसास उनिंदा है,
आकाश रोयें,
या जंगल करहायें,
मगर शायर हुँ मैं
चेहरे पे
मुस्कान जिंदा है,
शहर में
कोई
दंगा हुआ है शायद
मेरे गांव में
प्रेम का
पैगाम जिंदा है,
तो तुम जा रहे हो,
खुश रहना सदा,
मेरा क्या है,
मैं करन
मेरी तो बस आस जिंदा है।

©® जाँगीड़ करन kk
31/03/2017__8:00AM

1 comment:

Alone boy 31

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