कहां तो,
साँसें बची है,
कहां कोई ख्वाब जिंदा है,
बस शायर के
लफ़्जों में
कोई अहसास उनिंदा है,
आकाश रोयें,
या जंगल करहायें,
मगर शायर हुँ मैं
चेहरे पे
मुस्कान जिंदा है,
शहर में
कोई
दंगा हुआ है शायद
मेरे गांव में
प्रेम का
पैगाम जिंदा है,
तो तुम जा रहे हो,
खुश रहना सदा,
मेरा क्या है,
मैं करन
मेरी तो बस आस जिंदा है।
©® जाँगीड़ करन kk
31/03/2017__8:00AM
 
  
 
 
behad lazwaab
ReplyDeletebeautifull
very very nice