Saturday 26 November 2016

हो जा सयाना

बेतरतीब  जिंदगी का फ़साना है,
कुछ तुम्हें कुछ मुझे आजमाना है।

लाख दिलों को घायल कर दें,
गौरी  का  कैसा शरमाना  है।

वक्त के बेरहम हाथों से सब को,
इक  बार तो गुजर के जाना है।

कितनी  पीर  को सहता है दिल,
इस  बात  से जग अनजाना है।

मात पिता इक सच्चे साथी,
मेरा तो बस यहीं बताना है।।

चल करन अब छोड़ दें आशा,
हो  गया  अब  तो सयाना है।
©®जाँगीड़ करन kk
26-11-2016__11:30AM

2 comments:

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...