Wednesday 9 November 2016

चाँद का टुकड़ा

हाँ!! मैं अब भी मेरी छत पर बैठा उस खिड़की को निहार रहा हुँ, कि शायद किस पल तुम उससे झाँकने का इरादा कर लो! वैसे देखो ऊपर आसमाँ में चाँद भी अपने पुरे शबाब पर है, और तुम भी तो........ उस समय युँ चौदहवीं चाँद सी नजर आती थी, उस खिड़की से झाँकती हुई, और मैं अपनी सुधबुध खोयें सिर्फ तुम्हें देखता था, एकटक।
हाँ।। मुझे वो दिन अब भी याद है जब मैं गली में खेलता तो तुम ऊपर से झाँकती, पता होता मुझे कि तुम देख रही हो, मगर मैं उस तरफ नहीं देखता था, नहीं नहीं!!! मुझे खुद के विश्वामित्र होने का घमंड नहीं था, मैं तो बस इसलिये ऊपर नहीं देखता था क्योंकि अगर एक बार हमारी नजरें मिल जाती तो तुम वहाँ से फिर चली जाती थी, यह मुझे अच्छा नहीं लगता था, मैं चाहता था कि तुम वहीं खिड़की पे खड़ी रहो इसलिये मैं बस तुम्हें न देखकर केवल तुम्हें सोच लेता था, जैसा कि अब भी सोच रहा हुँ!!
पता है मुझे मैं जब भी अच्छा खेलता तो तुम अपनी आँख को हल्के से बंद करके ऐसे इशारा करती कि जैसे यह मेरी नहीं तुम्हारी जीत हो, हाँ... मुझे मालुम है.... मेरी हार तुम्हें बर्दाश्त नहीं थी ना, मैं जब भी हारता तो तुम नाक सिकोड़ती और कभी कभी तो मुझे जताने के लिये अपनी बहिन पर चिल्लाती कि कोई काम ढंग से नहीं होता तुमसे!! मगर मैं इस ईशारे को भी बखुबी समझ जाता मेरी जान!!
तुम्हें यह तो मालुम है ना मैं सुबह ऊठकर घर की चौखट पर बैठ जाता, नजरें  खिड़की पर कि कब तुम वहाँ से झाँकोगी, हाँ!!! तुम्हें लेट ऊठने की आदत है मैं जानता हुँ। मगर मैं तब तक कोई काम न करता जब तक कि तुम्हें खिड़की से झाँकते हुए न देख लुँ।।
जब तुम सुबह ऊठकर बिना मुँह धोयें खिड़की के पास आकर एक लंबी से अंगड़ाई लेती थी ना, बस मत पुछो, कसम से चाँद की चमक भी उस समय फींकी से लगती थी।। और उस समय तो सूरज की लाल किरणें जब तुम्हारे सुनहरें बालों पर पड़ती तो वो नजारा तो कुछ और ही था..... हाँ मेरे चाँद!! तुम्हें शायद मालुम नहीं मगर मैं याद दिला दुँ, उस खिड़की पर खड़ी रहकर मुझे देखकर एक नौटंकी जरूर करती थी, अपनी कुछ जुल्फों को हाथ की एक अंगुली में लपेटकर अपने होठों लगाने का, तुम्हें याद है ना कुछ। कभी तुम खिड़की पर खड़ी रहकर अपनी एक तरफ की जुल्फों को कान के ऊपर से निकालते हुए पीछे ले जाती!!
हाँ!!! तो मेरे चाँद........
तुम्हें कुछ याद आया.................
तुम्हें न सही मगर मुझे अब भी याद है, वो खिड़की भी, वो छत भी, और चाँद भी........
अभी तो मैं आसमाँ के चाँद को देख रहा हुँ... तुम्हारी तस्वीर से उसका मिलान करते हुए...
#करन
08.11.2016__21:00PM

4 comments:

  1. वाह दादा क्या कमाल का लिखा अपने

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया दादा

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  2. वाह क्या खूब लिखा है गुरूजी मजा आ गया

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